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हिसाबी-हुंकार मिलना । -साफ करना-हिसाब चुकता करना ।-से- आचरणका । -नायक-वि० जिसका नायक अधम हो अंदाजासे, परिमित मात्रामें, किफायतसे (हिसाबसे खर्च (नाटक)। -पक्ष-पु० तर्क द्वारा समर्थित न होनेवाला करो, चलो); क्रमसे, "मात्रामें (जिस हिसाबसे ज्वर पक्ष, तर्क, दलीलकी दृष्टिसे कमजोर पक्ष । वि० अरक्षित । बढ़ेगा."); हिसाबके मुताबिक । (किसीके)-से-'"की -बल-वि० निर्बल, कमजोर । -बुद्धि,-मति-वि० दृष्टिसे,"के विचारसे । -से चलना-नाप-तौलकर काम बुद्धिहीन, मूढ़, मूर्ख ।-यान-पु. बौद्ध मतकी दो शाखाकरना; किफायतसे खर्च करना ।
ओंमेंसे एक (इसकी दूसरी शाखाका नाम 'महायान' है)। हिसाबी-वि० हिसाब जाननेवालाहिसाबसे चलनेवाला। -योनि-वि० बुरे खानदानमें उत्पन्न, नीच जातिका । हिसार-पु० [अ०] घेरा, इहाता; परकोटा; किला । मु०- -रस-पु. काव्यगत एक दोष जो रसविरोधी भावके करना-घेरा डालना। -बाँधना-घेरा डालना; चारों प्रसंगकी नियोजनासे होता है। -रोमा (मन्)-वि०
ओर सैनिकोंकी पाँत या कोई दूसरी रोक खड़ी कर देना। केशहीन, गंजा। -वर्ग,-वर्ण-वि. नीच जातिका हिसिषा -स्त्री० ईर्ष्या-'जो ऐसहि हिसिषा करहिं नर | शूद्रवर्णका । -वाद-पु० दोषपूर्ण तर्क; विरोधी बात, विवेक अभिमान'-रामा०; स्पर्धा; किसीसे चढ़ा-ऊपरी तक कमजोर दलील; दोषी प्रमाण, साक्ष्य । -वादीकरनेकी भावना, होड़।
(दिन)-वि० परस्पर विरोधी बातें कहनेवाला, (ऐसा हिस्सा-पु० [अ०] भाग, अंश खंड; बाँट, बखरा; विभाग; व्यक्ति या गवाह) जिसकी पूर्वापर कही बातें असंगत हों, अंशाधिकार, साझा; अंग (बदनके किसी हिस्से में)। विरुद्धार्थवादी। -बखरा-पु०अंश,भाग। [मु०-बखरा होना-बटवारा हीनता-स्त्री०, हीनत्व-पु० [सं०] सदोषता; राहित्य, होना, जायदादका हिस्सेदारों में बँट जाना] । -रसदी- अभाव; नीचता; बुराई । अ० हिस्सेके अनुसार, जितना जिसके हिस्से में आये । हीनांग-वि० [सं०] अंगहीन, विकलांग । -(स्सेदार-पु० अंशका अधिकारी, जिसका किसी हीनोपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद जिसमें संपत्ति या रोजगारमें हिस्सा हो, साझी। -दारी-स्त्री० बड़ेकी उपमा छोटेसे दी जाय । हिस्सेदार होना, साझा । मु०-लेना-शिरकत करना, हीय, हीयरा, हीया*-पु.दे० 'हिय', 'हियरा', 'हिया'। भाग लेना। -(स्से)करना-बाँटना । -में आना- हीर-पु० सार अंश, गूदा; वीर्य, शक्ति; [सं०] एक रत्न, बाँटेमें पड़ना, बटवारेसे मिलना।
हीरा; वज्र; शिव; सिंह; सर्प । हिहिनाना*-अ०क्रि० दे० 'हिनहिनाना'।
हीरक-पु०[सं०] हीरा नामक रत्न; एक वृत्त ।-जयंतीहाँग-स्त्री० दे० 'हिंगु' ।
स्त्री. (डायमंड जुबिली) किसीके शासन, विवाहित जीवन हीछना*-अ०कि० इच्छा करना, चाहना; कामना करना। आदिके साठवें वर्षका उत्सव; किसी संस्था आदिकी हाँछा*-स्त्री० इच्छा, कामना ।
स्थापनाका साठवाँ वार्षिकोत्सव ।। हीताल-पु० [सं०] हिंतालवृक्ष ।
हीरा-पु० एक बहुमूल्य रत्न जो अत्यंत कठिन और प्रायः हाँस-स्त्री० घोड़ेकी हिनहिनाहट ।
श्वेत कांतियुक्त होता है, हीरक; (ला०) उत्तम व्यक्ति या हाँसना-अ० क्रि० घोड़ेका हिनहिनाना।
वस्तु । -आदमी-पु० बहुत नेक आदमी, भलामानुस । हाँसा -पु०हिस्सा, भाग ।
-कसीस-पु० गंधकके योगसे उत्पन्न लोहेका विकार । ही-अ० इसका प्रयोग निश्चय, सीमा, कमी, अकेलापन, -मन-पु. लोककथाओंमें वर्णित तोतेकी एक कल्पित अनन्यता आदिके अवसरोंपर होता है। सभी अवस्थाओं में जाति । मु०-खाना-आत्महत्या करनेके विचारसे हीरेयह किसी बातपर जोर देने तथा निश्चयके लिए हो प्रयुक्त | का कण खा लेना; ईर्ष्यासे जान देना। -चाटना-हीरा मिलता है । * पु० हिय, हृदय । * अ० कि० थी। चाटकर मर जाना । -(२)की कनी खाना, चाटनाहीअ*-पु० दे० 'हिय'।
दे० 'हीरा खाना'। हीक-स्त्री० एक प्रकारकी दुर्गध जिससे प्रायः मतली आती | हीलना*-अ० कि० दे० 'हिलना'। है। हिचकी। मु०-मारना-बार-बार बुरी महक फेंकना, हीला-पु० [अ०] बहाना, बनावट; वसीला; रोजगार, गंधाना।
काम; + कीचड़ । -हवाला-पु० टालमटोल । -(ले) हीचना*-अ० कि. हिचकिचाना, किसी कामके करने में गर,-बाज़,-साज़-वि० बहाने बनानेवाला।-गरी,आगा-पीछा देखना।
बाज़ी,-साज़ी-स्त्री० बहानेबाजी, फरेब । मु०-निकहीछना-अ० क्रि० दे० 'हौंछना'।
लना-उपाय निकल आना। -होना-बहाना होना; हीन-वि० [सं०] अधम, नीच, निंद्य, गर्दा रहित, वर्जित | नौकर होना; कोशिश होना। परित्यक्तः निम्न कोटिका; जिसकी आर्थिक स्थिति बुरी हीसका*-स्त्री० ईर्ष्या प्रतिद्वंद्विता । हो, दीन; दबता हुआ, कमजोर अनुपयुक्त पद, मार्ग, हीही-स्त्री० जोरसे हँसनेकी ध्वनि, उच्च हास्य-ध्वनि स्थान आदिसे च्युत, भ्रष्ट; सदोष; अधूरा; क्षीण ।। हीनता प्रदर्शित करते हुए हँसना । -कर्मा(मन्)-वि० नीच काम करनेवाला । -कुल-हुँ-अ० बात करते समय बात सुनने या उस बातकी वि० नीच कुलका, कलंकित वंशका । -क्रम-पु० स्वीकृतिका सूचक शब्द, हाँ; * दे० 'हूं'। काव्यगत एक दोष जिसमें वर्णित विषयोंके क्रमका
करना-अ० कि० दे० 'हुंकारना' । निर्वाह न हुआ हो। -चरित-वि० कदाचारी, बुरे हुंकार-पु० [सं०] दर्पयुक्त होकर 'हुँ' शब्द करना;
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