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सिवा-सीजना
८५० सिवा-अ० [अ०] अलावा, छोड़कर, अतिरिक्त । वि० साँग-पु. गाय, बैल, भैसे, मेढ़े, हिरन आदिके सिरके अधिक, बढ़ा हुआ। * स्त्री० पार्वती; शृगाली।
दोनों ओर निकली हुई कड़ी नुकीली शाखा जैसी चीज सिवाइ-१० दे० 'सिवा' ।
जिससे वे दूसरे प्राणियोपर आघात करते हैं, शृंग, विषाण सिवान-पु० सीमांत, सरहद गाँवकी सीमावती भूमि । सींगका बना हुआ बाजा, सौगी। मु०-कटा(तुड़ा)कर सिवाय-अ०, वि० दे० 'सिवा'।
बछड़ों में मिलना-बूढ़ा या बड़ी उम्रका होकर भी बच्चोंसिवार-पु० एक जलीय पौधा, शैवाल ।
के से काम करना, उनकी सुइबत करना । मु०-निकसिवाल-पु० दे० 'सिवार'।
लना-(ला०) सनक जाना । -पूंछ गिरा देना-अति सिवाला-पु० शिवालय, मंदिर ।
दीन बन जाना। -समाना-स्थान, मौका मिलना, सिविका*-स्त्री० दे० 'शिविका'।
ठिकाना दिखाई देना (जहाँ सींग समाये वहाँ चले जाओ)। सिविर*-पु० दे० 'शिविर' ।
(सिरपर, में)-होना-कोई विशेषता, कोई विशेष सिवैयाँ-स्त्री० दे० 'सिवई'।
चिह्न होना (क्या बेवकूफके सिरमें सींग होते हैं)। सिष, सिष्य*-पु० दे० 'शिष्य'।
सींगड़ा-पु० सींगका बना हुआ चोंगा जिसमें बारूद रखते सिष्ट*-स्त्री० बंसीको डोरी । वि० दे० 'शिष्ट' ।
हैं, बारूददान; सींगी। सिस*-पु० दे० 'शिशु'-'दन चंदके लखनको सिस सींगी-स्त्री०हिरनके सींगका बना हुआ बाजा; सूराखदार ज्यों बिरझत नैन'-रतन।
सींग जिसे शरीरपर लगाकर खराब खून निकालते है। सिसकना-अ० क्रि० भीतर ही भीतर रोना, खुलकर न मु०-लगाना-सींग लगाकर रक्त चूसना । रोना; सिसकी भरना; व्याकुल होना।
साँच-स्त्री० सींचनेकी क्रिया, सिंचाई । सिसकारना-अ० कि० मुँहसे सीटीकी सी आवाज निका-साँचना-सक्रि० पेड़-पौधोंको पानी देना, सिंचाई करना; लना; शीत्कार करना । स क्रि० (कुत्तोंको) आक्रमण तर करना; छिड़कना। करनेके लिए बढ़ावा देना, लहकारना।
सीव, साँव-स्त्री० सीमा, हद । मु०-चरना-जोरसिसकारी-स्त्री० मुँहसे निकाली हुई सीटीकी सी आवाज;/ जबरदस्ती करना, कष्ट पहुँचाना । लहकारनेकी क्रिया शीत्कार ।
सी-अ० 'सा'का स्त्रीलिंग रूप, सश, समान । स्त्री० सिसकी-स्त्री० सिसकनेकी आवाज; शीत्कार ।
पीडाकी हलकी अनुभूति होने या सरदी लगनेपर मुहँसे सिसिर*-पु० दे० 'शिशिर'।
निकलनेवाली आवाज, सीत्कार। सिसु*-पु० दे० 'शिशु'। -पाल-पु० दे० 'शिशुपाल'। सीउ*-पु० दे० 'शीत'। -मार-पु० दे० 'शिशुमार'।
सीकर-पु० [सं०] पानीका छोटा, जलकण, शीकर, स्वेदसिसुता*-स्त्री० बचपन, शैशव ।
बिंदु * गीदड़-'सीकर स्वान कागका भोजन तनकी यहै सिस्टि*-स्त्री० दे० 'सृष्टि'।
बड़ाई-बीजक । * स्त्री० सिकड़ी, जंजीर । सिस्य*-पु० दे० 'शिष्य' ।
सीकल-पु० दे० 'सैकल', सिकली; डालका पका सिहरन-स्त्री० सिहरनेकी क्रिया, कंपन ।
हुआ आम। सिहरना-अक्रि० काँपना; ठंढसे काँपना भयभीत होना, सीकस*-पु० ऊसर, बंजर भूमि । दहल जाना; रोमांच होना ।
सीका-पु.शिरोभूपण दे० 'छाँका'। सिहरा-पु० दे० 'सेहरा' ।
सीकाकाई-स्त्री० एक वृक्ष जिसकी फलियोंका झाग बाल सिहराना-स० क्रि० कँपाना; भयभीत करना; सहलाना। मलनेके काम आता है। अ० क्रि९ दे० 'सिहलाना' ।
सीख-स्त्री० सिखावन, शिक्षा; सलाह । मु०-लेनासिहलाना-अ०क्रि०ठंढा होना सरदी खाना ठंढ पड़ना। शिक्षा, उपदेश ग्रहण करना। सिहरी-स्त्री० कँपकँपी; भय; रोमांच, जूड़ीका बुखार । सीख-स्त्री० [फा०] लोहेकी सलाख या छड़ जिसपर सिहाना*-अ० क्रि० ईर्ष्या करना; ललचना; देखकर कबाब भूनते हैं; सूआ; छड़के आकारकी लकड़ी जिससे प्रसन्न होना; मुग्ध होना । स० क्रि० ईर्ष्या या तृष्णाकी। बोरियोंका मुँह बाँधते हैं। दृष्टिसे देखना प्रशंसा करना।
सीखन*-पु० सिखावन, सीख । सिहारना*-स०क्रि० हूँढना ढूँढकर लाना।
सीखना-स० कि. किसी विषयका ज्ञान प्राप्त करना, सिहिटि*-स्त्री० सृष्टि ।
पढ़ना; किसी हुनर या कलाकी शिक्षा प्राप्त करना, सिहोड़, सिहोरी-पु० थूहर, सेहुँड ।
अभ्यास करना (सितार सीखना); शिक्षा ग्रहण करना, सीक-स्त्री० मँजकी जातिके एक तृणकी तीली जिसकी अनुभव प्राप्त करना (आदमी कुछ खोकर सीखता है)। झाड़ बनाते हैं। किसी घासका लंबा-पतला डंठल; नाकमें | सीखा-पढ़ा-वि०शिक्षित, जानकार; चतुर । पहननेकी कील ।
सीखा-सिखाया-वि० शिक्षित, कुशल; किसी कला या सीका-पु० पेड़-पौधोंकी बहुत पतली टहनी । दे० 'छीका' | हुनरका जानकार । सीकिया-वि० सीकसा पतला । पु० एकधारीदार कपड़ा। सीग़ा-पु० [अ०] साँचा; विभाग; क्रियाका रूप (काल, -पहलवान-पु० बहुत दुबला-पतला आदमी जो अपने पुरुष, प्रयोग आदिकी दृष्टिसे); शीओंका निकाह । आपको बली समझे (व्यंग्य) ।
| सीजना-अ० क्रि० दे० 'सीझना'।
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