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सिरई-सिवई दिलेरीसे मौतका सामना करना। -हिलाना-सिरको सिर्का-पु० दे० 'सिरका' । ऊपर-नीचे या अगल-बगल हिलाना (प्रशंसा, स्वीकृति, सिर्फ़-वि० [अ०] खालिस; अकेला; केवल । अ० केवल । अस्वीकृति आदिकी सूचनाके लिए)। (किसीका सिल-स्त्री० शिला, चट्टान मसाला आदि पीसनेकी पत्थरकिसीके)-हाना-पीछा न छोड़ना, पीछा करना; बार- की चौकोर पटिया; इमारतमें लगानेकी गढ़ी हुई पटिया बार किसी चीजका आग्रह करके परेशान करना; उलझ पूनी बनानेकी काठकी पटरी । पु० उंछ वृत्ति । -बट्टापड़ना, झगड़ा करना। (किसी बातके)-होना- पुसिल और लोदिया। -वट-पु० सिल; सिल और समझ लेना, ताड़ लेना।
बट्टा । स्त्री० दे० क्रममें। सिरई-स्त्री० सिरहानेकी पाटी।
सिलगना*-अ० क्रि० दे० 'सुलगना' । सिरका-पु० [फा०] धूपमें सड़ाकर खमीर उठाया हुआ सिलप-पु० दे० 'शिल्प' । ईख, अंगूर आदिका रस ।
सिलपट-वि० चौरस, बराबर साफ, चौपट । पु० चप्पल । सिरकी-स्त्री० सरकंडा, सरहरी; सरकंडेकी बनी हुई टट्टी। सिलवट-स्त्री० शिकन, सिकुड़न । पु० दे० 'सिल में । सिरगा*-पु० घोड़ोंकी एक जाति ।
सिलवाना-स० क्रि० किसीसे सीनेका काम कराना। सिरजक*-पु० सृष्टिकर्ता, बनानेवाला ।
सिलसिला-* वि० आर्द्र, चिकना-'ऐसी सिलसिली ओप सिरजन*-पु० निर्माण, सृष्टि करना। -हार-पु० सुंदर कपोलनकी खिसिल सिसिल परै दीठि जिन परतें'कर्तार, निर्माता, स्रष्टा।
सुंदर । पु० [अ०] कड़ी, शृखला; बेड़ी; पंक्ति; क्रम, सिरजना*-स० कि० उत्पन्न करना, रचना, बनाना तरतीब, वेशा कुरसीनामा लगाव, संबंध(जोड़ना,तोड़ना)। संचय करना । स्त्री० सृष्टि, रचना ।
-(ले)वार-वि० क्रमयुक्त, तरतीबवार । सिरजित*-वि० रचा हुआ, सृष्ट ।
सिलह-पु० [अ०] हथियार, आयुध । -खाना-पु० सिरस, सिरिस-पु० दे० 'शिरीष'।
अस्त्रागार । -पोश-वि. हथियारोंसे लैस, शस्त्रसन्नद्ध । सिरहाना-पु० दे० 'सिर में ।
सिलहिला-वि० पंक आदिके कारण चिकना, जिसपर पैर सिरा-पु० अंतका भाग, छोर; शुरूका भाग; ऊपरका फिसले, पिच्छल ।
भाग; अगला भाग नोक । -(२)का-परले दरजेका। सिला-* स्त्री० दे० 'शिला'। पु० फसल कटनेके बाद सिरा-स्त्री० [सं०] रक्तनलिका, धमनी, नाड़ी; नाड़ी जैसा खेतमें गिरे हुए दाने उंछ वृत्ति; फटकनेके लिए रखा जलका तंग सोता, जलकी संकीर्ण प्रणाली नसोंकी तरह हुआ गल्लेका ढेर ।-जीत-पु० दे० शिलाजतु'।-रसएक दूसरीको काटनेवाली रेखाएँ; डोल। -जाल-पु० पु० सिल्क वृक्ष; उसका निर्यास ।-वट-पु०दे० क्रममें । नाड़ियोंका जाल; आँखकी कोशिकाओं (सूक्ष्म धमनियों), सिलाई-स्त्री० सीनेका काम या मजदूरी; सीयन, टाँका; का शोथ। -प्रहर्ष-पु० दे० 'सिराहर्ष'। -हर्ष-पु० सीनेका ढंग।
नाड़ियोंका पुलको आँखके डोरोंकी लालीका बढ़ जाना। सिलाना-स० कि० दे० 'सिलवाना'; दे० 'सिराना' । सिराजी-पु० शीराजका घोड़ा।
सिलाबी-वि० सैलाबी, गीला, नम । सिरात-स्त्री० [अ०] रास्ता, सड़कमुसलमानोंके विश्वासा- सिलावट-पु० पत्थर काटनेवाला, संगतराश ।
नुसार कयामतके दिन दोजखपर बनाया जानेवाला पुल । सिलाह-पु० [अ०] हथियार, आयुध । -ख़ाना-पु० सिराना*-अ० क्रि० ठंढा होना; बीतना, समाप्त होना शस्त्रागार । -पोश,-बंद-वि० हथियारबंद । -'चरचहिं सिगरी रेन सिरानी'-प्रागनि दर होना। | सिलाही-पु० सैनिक, सिपाही । उत्साह ढीला पड़ना; शांत होना, हार मान लेना । स० सिलिप-पु. शिल्प, कारीगरी । क्रि० ठंढा करना; पानीमें डुबाना-'तुलसी भाँवरके परे सिलीपट-पु० [अ० 'स्लीपर'] लकड़ी आदिकी वह
नदी सिरावत भौर'-तुलसी; खतम करना; बिताना। पटिया जिसपर रेल बिछायी जाती है। सिरावन-पु० हेगा, पाटा, पटेला ।
सिलीमुख-पु० दे० 'शिलीमुख' । सिरावना*-स० क्रि० दे० 'सिराना'।
सिलेट-स्त्री० दे० 'स्लेट' । सिरिख*-पु० दे० 'शिरीष'।
सिलोच*-पु० एक पर्वत जो रामको जनकपुरकी यात्राके सिरिश्ता-पु० दे० 'सरिश्ता' (समास भी)।
मार्गमें मिला था। सिरी-स्त्री० * लक्ष्मी, ऐश्वर्य; शोभा, सौंदर्य रोली, सिलौट, सिलौटा-पु० सिल; सिल और बट्टा ।
सिरका एक गहना। -पंचमी-स्त्री. वसंत पंचमी।। सिलौटी-स्त्री० भाँग आदि पीसनेकी छोटी सिल । सिरीस-पु० दे० 'शिरीष'।
सिल्क-पु० [अं॰] रेशम रेशमी वस्त्र । सिरोपाउ*-पु० दे० 'सिरोपाव' ।
सिल्ला-पु. कटनीके बाद खेतमें गिरे हुए दाने खलिसिरोपाव-पु० सिरसे पेरतकका पहनावा जो बादशाहकी | यानमें गिरा हुआ अन्न । ओरसे सम्मानार्थ मिलता था, खिलअत ।
सिल्की-स्त्री. उस्तुरा आदि तेज करनेका पत्थर: पत्थरसिरोमनि*-पु० दे० 'शिरोमणि' ।
| की पटिया; फटके जानेवाले अनाज या भूसेका ढेर ।' सिरोरुह -पु० दे० 'शिरोरुह' ।
सिव*-पु० दे० 'शिव'। -लिंग-पु० दे० 'शिवलिंग। सिरोही-पु० तलवारके लिए प्रसिद्ध राजपूतानाका एक सिवई-स्त्री० आटे या मैदेके सुखाये हुए लच्छे जिन्हें घीमें स्थान । स्त्री० तलवार एक चिड़िया।
| तलनेके बाद चीनीके साथ दूधमें पकाकर खाते हैं ।
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