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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८९ रुद्रावास-रूप रुद्रावास-पु० [सं०] काशी कैलास; श्मशान । बेटा । वि० वीर, बहादुर, छिपा हुआ गुणी । रुधिर-पु० [सं०] रक्त, खून, लहू लाल वर्ण, मंगल ग्रह। रुहठि*-स्त्री० रूठना। -पायी(थिन् )-वि० खून पीनेवाला। पु० राक्षस । रुहिर*-पु० रक्त, लहू, रुधिर । -पित्त-पु० रक्तपित्त । रुहेलखंड-पु० अवधके पश्चिम-उत्तरवाला प्रदेश । रुधिराशन-वि० [सं०] रुधिर पीनेवाला । पु० राक्षस । रुहेला-पु० रुहेलनिवासी; पठानोंकी एक जाति । रुनझुन-स्त्री० नूपुर आदिकी झनकार । रूँदना-स० कि० दे० 'रौंदना'। रुनाई-स्त्री० लालिमा, सुखी । बैधना-स० क्रि० (रक्षाके लिए) काँटेदार पौधों आदिसे रुनित -वि० बजता, झनकार करता हुआ। घेर देना, बारी या घेरा बना देना; रास्ता बंद कर देना। रुनुक-झुनुक-स्त्री. नूपुर आदिकी लगातारकी झनकार । रू-पु० [फा०] चेहरा, मुँह; शकल, सूरत; सामनेका रुनुझुनु*-स्त्री० नूपुर आदिकी झनकार । हिस्सा, आगा; ऊपरी भाग, सिरा; कारण, वजह ध्यान; रुपना-अ० क्रि० जमना लगाया, गाड़ा या रोपा जाना; बहाना, हीला, टालमटोल । अड़ना, डट जाना। रूई-स्त्री० दे० 'रुई। रुपमनी-वि० स्त्री० रूपवती, सुंदर-"एकसों एक चाहि | रूक्ष-वि० [सं०] जो कोमल, चिकना न हो। पु० वृक्ष । रुपमनी'-प०। रूख-पु० वृक्ष, पेड़ । * वि० रूखा। रुपया-पु० भारतका मुख्य सिक्का (चाँदीका बना); धन- रूखना*--अ० क्रि० रूठना, नाराज होना । संपदा । -पैसा-पु० धन-दौलत । -वाला-वि० धनी, | रूखरा-पु० वृक्ष । वि० दे० 'रूखा'। अमीर । मु०-उठाना-रुपया खर्च करना । -उड़ाना- रूखा-वि० जिसमें चिकनापन न हो ( जैसे-रूखे बाल); रुपया खर्च, बरबाद करना ।-ठीकरी करना-अनावश्यक बिना तेल-घीका बना हुआ, अरुचिकर, स्वादहीन (भोजन;) खर्च करना। -पानीमें फेंकना-पैसा बरबाद करना। नीरस, शुष्क; खुरदरा; स्नेहहीन, प्रेमशून्य; कठोर; रुपहला-वि० चाँदीके रंगका, चाँदी जैसा । विरक्त, उदासीन । -पन-पु. रुखाई, रूखा होना; रुपैया -पु० दे० 'रुपया। नीरसता; कड़ाई, कठोरता; स्वादहीनता; उदासीनता । रुबाई-स्त्री० [अ०] चार मिसरोंका एक उर्दू-फारसी छंद । -सुखा-वि० बिना घी और मसालेका बना, सादा रुमंच-पु० दे० 'रोमांच' । (भोजन)। मु०-पड़ना-शील-संकोच-रहित होना, रुमांचित-* वि० दे० 'रोमांचित' । बेमुरौवत होना; तीखा पड़ना, नाराज होना। रुमा-स्त्री० [सं०] सुग्रीवकी पत्नी । रूचना*-अ० क्रि० दे० 'रुचना'। रुमाल-पु० दे० 'रूमाल'। रूज-पु० [अं०] कलई करनेकी एक बुकनी। रुमावली*-स्त्री० दे० 'रोमावली' । रूझना*-अ०क्रि० दे० 'अरुझना', 'उलझना'। रुराई*-स्त्री० सौंदर्य, शोभा। रूठ, रूठन-स्त्री० रूठना, नाराज होना, क्रोध । रुरु-पु० [सं०] काला हिरन; एक ऋपि; एक वृक्ष । रूठना-अ०क्रि० अप्रसन्न, नाराज होना। रुरुआ-पु० एक प्रकारका बड़ी जातिका उल्लू । रूठनि*-स्त्री० दे० 'रूठन' । रुरुक्षु-वि० [सं०] रूखा, रुक्ष, जो चिकना न हो। रूड़, रूड़ो*-वि० उत्तम श्रेष्ठ । रुलना -अ० क्रि० इधर-उधर फिरना, हिलना-डुलना; रूढ-वि० [सं०] उत्पन्न, संजात प्रचलित, प्रसिद्ध अविदबा रह जाना--'मनकी मसूमें मन हीमें रुलि जाति | भाज्य, अकेला; (वह संख्या) जो विभक्त न हो; चढ़ा हैं'-रला। हुआ, आरूढ़; *गँवार, उजड्ड; कठोर, कड़ा। पु० वह रुलाई-स्त्री० रोना; रोनेकी इच्छा या प्रवृत्ति । शब्द जो समुदायशक्तिसे अर्थबोधक हो, जिसका खंड न रुलाना-स० क्रि० किसीको रोने में प्रवृत्त करना; भटकाना, हो (यौगिकका विलोम-जैसे घट, गौ इ०); प्रकृति प्रत्ययफिराना; बरबाद करना । युक्त अर्थके स्थानपर दूसरे अर्थका प्रकाशक शब्द । रुवाई-स्त्री० दे० 'रुलाई। -यौवना-स्त्री० एक प्रकारकी मध्या नायिका । रुष्ट-वि० [सं०] क्रुद्ध, कुपित, नाराज । रूढा-स्त्री० [सं०] प्रचलित अर्थ में विनियुक्त लक्षणा(सा०)। रुष्टता-स्त्री० [सं०] रुष्ट होनेका भाव, अप्रसन्नता। रूढि-स्त्री० [सं०] जन्म, उत्पत्ति प्रसिद्धि, ख्याति प्रथा, रुसना*-अ० कि० दे० 'रूसना' । चाल; चढ़ाई, चढ़नेका भावः वृद्धि उभार, उठान; शब्दरुसवा-वि० [फा०] निंदित; जलील, लांछित; अपमानित की शक्ति जो यौगिक न होने पर भी अर्थ स्पष्ट करती है। बदनाम । * पु० बदनामी। रूप-पु० [सं०] आकार; सूरत, शकल; दृश्य पदार्थ, वस्तु रुसवाई-स्त्री० [फा०] फजीहत; बेइज्जती; बदनाम।। (विशेष वर्णसे भिन्न); प्रकृति, स्वभाव; वेश; सौंदर्य; शरीर रुसित*-वि० रुष्ट, अप्रसन्न । विभक्ति, प्रत्ययके योगसे बना शब्दका रूपांतर, स्वरूप; रुसूम-पु० दे० 'रसूम'। देश-कालका भेद, दशा; लक्षण, चिह्न, आकार; विकार, रुसुल-पु० [अ०] खुदाकी तरफसे पैगाम लानेवाला व्यक्ति, भेद, रूपक; * रूपा, चाँदी। वि० समान, अनुरूप; रूप. पैगंबर, रसूल । वान्-'समय समय सुंदर सबै रूप-कुरूप न कोइ'-बि० । रुस्ट*-वि० दे० 'रुष्ट'। -गर्विता-स्त्री० नायिका जिसे अपने रूपका गर्व हो । रुस्तम-पु० [फा०] फारसका प्रसिद्ध पहलवान, जीलका -जीविनी-स्त्री० वेश्या ।-जीवी(विन)-पु० बहुरुपिया। For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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