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कष्ट देना; सूर्य; भल्लातक वृक्ष; एक नरक; ग्रीष्मः सूर्यकांत | प्रसाद चढ़ानेका रिवाज | मणि; विरहसे उत्पन्न संताप | वि० उष्ण -कर, - दीधिति - पु० सूर्य । -च्छद-पु० सूर्यमुखी फूल । - तनय - पु० यम; शनि; कर्ण; सुग्रीव; शमीवृक्ष । - तनया - स्त्री० यमुना । -मणि-पु० सूर्यकांत मणि । तपनांशु - पु० [सं०] सूर्य; सूर्यरश्मि ।
तपना - अ० क्रि० धूप, आँच आदि से गरम होना; तापमें पड़ा रहना; किसी वस्तुकी प्राप्तिके लिए कष्ट सहना; सूर्यका प्रखर होना; किसीका प्रभुत्व छाना या आतंक फैलना; * तप करना । * स० क्रि० पकाना - 'सूरज जेहि कै तपै रसोई' - प० ।
तपनि * - स्त्री० ताप, जलन ।
तपनी + - स्त्री० कौड़ा, अलाव ।
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तपवाना - स० क्रि० तप्त कराना । तपश्चरण- पु०, तपश्चर्या - स्त्री० [सं०] तपस्या । तपसा - स्त्री० ताप्ती नदीका दूसरा नाम । तपसाली - वि० जिसने बहुत तपस्या की हो । तपसी -* पु० दे० 'तपस्वी' । स्त्री० एक मछली । तपस्या-स्त्री० [सं०] तप; (ला० ) किसी अभीष्टकी सिद्धिके लिए उठाया जानेवाला कष्ट । तपस्वी ( स्विन् ) - वि० [सं०] तपस्या करनेवाला; कष्ट उठानेवाला; दीन दुखिया । पु० नारदः संन्यासी । तपस्विनी - स्त्री० [सं०] तपस्या करनेवाली स्त्री; जटामासी । तपा* - पु० तपस्वी । वि० तपश्चर्या में संलग्न | तपाक - पु० [फा०] प्रेम; उत्साह |
तपाना - स० क्रि० तप्त करना; कष्ट पहुँचाना ।
तपावंत * - पु० तपस्वी ।
तपाव-पु० तपनेकी क्रिया या भाव, गरम होना । तपित - वि० [सं०] गरम किया हुआ; शुद्ध किया हुआ (सोना) ।
तपिया* - पु० तप करनेवाला ।
तपिश - स्त्री० [फा०] गरमी, तपन ।
तपी - पु० तपस्वी, साधु ।
तपेदिक - स्त्री० [फा०] जीर्ण ज्वर, यक्ष्मा |
तपेला * - पु० भट्टी |
तपोधन- वि० [सं०] तप ही जिसका धन हो, तपस्वी । तपोनिधि - वि० [सं०] तपस्वी । पु० धर्मप्राण व्यक्ति । तपोनिष्ठ - वि० [सं०] तपमें जिसकी निष्ठा हो । तपोबल - पु० [सं०] तप द्वारा प्राप्त शक्ति । तपोभंग - पु० [सं०] तपश्चर्याका भंग होना । तपोभूमि- स्त्री० [सं०] तप करनेका स्थान | तपोमय - वि० [सं०] तपवाला; तपस्या करनेवाला । तपोमूर्ति - पु० [सं०] परमेश्वर; तपस्वी । तपोलोक - ५० [सं०] ऊपर के सात लोकों में छठा लोक । तपोवन - पु० [सं०] तपस्वी लोगों के रहनेका वन; तपस्या करने योग्य वन ।
तपोवृद्ध - वि० [सं०] जिसे तपस्या के कारण श्रेष्ठता प्राप्त हो
तपनांशु-तग़ा
तप्त - वि० [सं०] तपाया हुआ; गरम; दुःखित; जिसने तपस्या की हैं; पिघला हुआ; ऋद्ध ।
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तप्प* - पु० तप ।
तफ़रीह - स्त्री० [अ०] मनबहलाव; दिल्लगी; ताजगी । तक़रीहनू - अ० [अ०] मनबद्दलावके रूपमें; हँसीसे । तफ़सील - स्त्री० [अ०] अलग करना; ब्योरा । तलावत- पु० [अ०] अंतर, फर्क; फासला ।
तब - अ० उस समय; बाद में; इस वजहसे । -भी-अ० फिर भी, तिसपर भी ।
तबक- पु० [अ०] तह; परत; सोने-चाँदी आदिका वरक; बड़ी रकाबी । - गर-पु० सोने-चाँदी आदिके पत्तर बनानेवाला ।
तबका - पु० [अ०] तख्ता; मंजिल; तह; खंड; लोक; आदमियोंका समूह; जमीनका छोटासा टुकड़ा; पद, दरजा । तब किया - पु० दे० ' तबक़गर' । वि० जिसमें परत हो । तबदील - स्त्री० [अ०] बदलना, एक स्थानसे दूसरे स्थानपर
जाना ।
तबदीली - स्त्री० कर्मचारीका एक जगहसे दूसरी जगह भेजा जाना; परिवर्तन |
तबर - पु० [फा०] कुल्हाड़ी; एक शस्त्र ।
तबर्रा - पु० [अ०] किसीके प्रति घृणा प्रकट करना; धिक्कारना; शियोंका अलीसे पहलेके तीन खलीफाओंका कोसना । तबल - पु० [अ०] बड़ा ढोल नगाड़ा |
तबलची - पु० तबला बजानेवाला ।
तबला - पु० ताल देनेका चमड़ेसे मढ़ा एक बाजा । मु०खनकना, ठनकना - तबला वजना; नाच-रंग, गानाबजाना होना ।
तबलिया - पु० तबला बजानेवाला, तबलची । तबलीग़- स्त्री० [अ०] धर्मप्रचार |
तबाह - वि० [फा०] बरबाद, नष्ट |
तबाही - स्त्री० [फा०] नाश, बरबादी |
तबीअत तबीयत - स्त्री० [अ०] जी, मन, दिल; समझ । -दार - वि० भावुक, सहृदय । मु० - आना-आसक्त होना । -फिरना - जी हटना ।
तबीब- पु० [अ०] चिकित्सक, हकीम |
तबेला - पु० अस्तबल, घुड़साल - 'रारि सी मची है त्रिपुरारिके तबेला में - भूधर ।
तब्बर* - पु० दे० ' तबर' |
तभी - अ० उसी समय; इसीलिए ।
तमंचा - पु० [फा०] पिस्तौल |
तमःप्रवेश- पु० [सं०] अँधेरे में टटोलना; किंकर्तव्यविमूढ़ता । तम - पु० [सं०] अंधकार; पैरका अगला भाग; तमोगुणः
राहु |
तम ( स् ) - पु० [सं०] अंधकार; भ्रम; सत्त्वादि तीनों गुणोंमें से एक; अविद्या के पाँच स्वरूपों में से एक (सांख्य०) । तमक - पु० आवेश; उद्व ेग; रोष; झुंझलाहट; जोश । तमकना - अ० क्रि० आवेशमें आना; रुष्ट होना; क्रोधका आधिक्य दिखलाना |
तपोव्रत - पु० [सं०] तपस्या-संबंधी व्रत |
तपौनी - स्त्री० मुसाफिरों को लूट चुकनेपर ठगोंका देवीको तमग़ा पु० [तु०] विद्यार्थी, सिपाही आदिको पुरस्कार के
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