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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रबंध-प्रभु मुख प्रसन्न दीखता हो। सूर्य-बिब; दुर्गा; कुबेरकी पुरी; सूर्यकी एक पत्नी; एक प्रबंध-पु० [सं०] प्रकृष्ट बंधन; ( अविच्छिन्न) क्रम; ग्रंथ, अप्सरा नहुषकी माता; एक वृत्त । -कर-पु० सूर्य कथा आदिकी रचना; निबंध; आयोजन, व्यवस्था । शिव; अग्नि, चंद्रमा, समुद्र मदारका पौधा; मीमांसाके -अभिकर्ता--पु० ( मैनेजिंग एजेंट्स ) वह कंपनी या एक प्रसिद्ध आचार्य जो 'गुरु' नामसे विख्यात है।-कीट व्यावसायिक संस्था जो निर्धारित वेतन या पारिश्रमिक -पु० जुगनू । -मंडल-पु० देवताओं, महात्माओं लेकर किसी अन्य संस्था, कारखाने आदिके प्रबंधका आदिके मुखके चारों तरफका वह दीप्तिमंडल जो चित्रों काम, उसके संचालकोंके विधिविहित निश्चयके अनुसार, या मूत्तियों में देख पड़ता है। ग्रहण करे। -कर्ता (तू)-पु० प्रबंध करनेवाला । | प्रभाउ*-पु० दे० 'प्रभाव' । -कारिणी-वि० स्त्री० किसी सभा, संघ इत्यादिके प्रभाग-पु० [सं०] भागका भाग, टुकड़ेका टुकड़ा; भिन्नका निश्चयोंको कार्यरूप देनेवाली या उसकी ओरसे प्रबंधकार्य भिन्न (जैसे-१/३ का १/५)। करनेवाली (समिति)। -काव्य-पु० (मुक्तकका उलटा) प्रभात-पु० [सं०] सबेरा, प्रातःकाल प्रभासे उत्पन्न सूर्यका वह काव्य जिसमें किसीके जीवनकी विशेष घटनाओंका पुत्र । -फेरी-स्त्री० [हिं०] कोई उत्सव मनाने या किसी क्रमबद्ध चित्रण किया गया हो। -संपादक-पु० बातका प्रचार करनेके उद्देश्यसे जुलूस बनाकर विशेष (मैनेजिंग एडिटर) संपादकीय विभागकी व्यवस्था आदिकी प्रकारके नारे लगाते हुए भोर में वस्तीमें धूमना । देखभाल करनेवाला संपादक। -समिति-स्त्री०किसी प्रभाती-स्त्री० सबेरे गाया जानेवाला एक प्रकारका गीत । सभा या संस्थाका प्रबंध करनेवाली समिति । प्रभार-पु० [सं०] (चाज) किसी विभागादिके कार्यका भार प्रबंधक-पु० [सं०] दे० 'प्रबंधकर्ता'। या जिम्मेदारी । प्रबल-वि० [सं०] प्रकृष्ट बलवाला, बहुत बली; प्रचंड, प्रभारी(रिन)-वि० [सं०] (इनचार्ज) जिसके ऊपर उग्र, जोरका; भारी, महान् । किसी विभागादिके कार्यका भार या उत्तरदायित्व हो । प्रबलिहका, प्रवलिहका-स्त्री० [सं०] पहेली।। -राजदूत-पु० ( शाहें डफेयर.) अस्थायी रूपसे राजप्रबाल-पु० [सं०] नया कोमल पत्ता, नव-पल्लव; मूंगा; दूतका काम संभालनेवाला व्यक्ति उप-राजदूत, छोटे देशोंवीणाकी लकड़ी, वीणादंड । -पद्म-पु० लाल कमल । में नियुक्त राजदूत । -सदस्य-पु० (मेंबर इनचाज) वह -भस्म (न्)-पु० मूंगेका भस्म । सदस्य जिसपर किसी कार्य या पदका भार (उत्तरदायित्व) प्रबास*-पु० दे० 'प्रवास' । डाला गया, सौंपा गया हो। प्रबाह*-पु० दे० 'प्रवाह'। प्रभाव-पु० [सं०] उद्भव, उत्पत्ति सामर्थ्य, शक्ति, विक्रम प्रबाह-पु० [सं०] हाथका अगला भाग । सूर्यका एक पुत्र सुग्रीवका एक मंत्री; राजकीय शक्ति, प्रषिसना*-अ० क्रि० प्रवेश करना, घुसना। राजाका कोश और दंडसे उत्पन्न तेज, प्रताप; फल, परिप्रबीन -वि० दे० 'प्रवीण' । स्त्री० अच्छी वीणा । णाम; असर; दबाव; विस्तार । -कर-वि० असर डालनेप्रबीर*-वि० दे० 'प्रवीर'। वाला। -शाली(लिन)-वि० अधिक प्रभाववाला। प्रबद्ध-वि० [सं०] जागा हुआ, जाग्रत् प्रवोधयुक्त पंडित, प्रभाववान(वत्), प्रभावी (विन)-वि० [सं०] शक्तिज्ञानी; खिला हुआ, विकसित; ( जादू आदि) जिसका शाली; प्रतापी, (प्रभावी होना = लागू होना।) असर पड़ने लगा हो; सजीव । प्रभावान् वत्)-वि० [सं०] दीप्तियुक्त ।। प्रबोध-पु० [सं०] जागना, जागरण; सचेत होना (ला०); प्रभावान्वित-वि० [सं०] प्रभावसे युक्त प्रभावित । यथार्थ शान, तत्त्वज्ञान; सांत्वना, ढाढ़सा सतर्कता। प्रभावित-वि० [सं०] जिसपर प्रभाव पड़ा हो। प्रबोधक-पु०[सं०] जगानेवाला; सचेत करनेवाला (ला०), प्रभास-पु० [सं०] दीप्ति, प्रकाश; एक प्राचीन तीर्थ, शानदाता; ढाढ़स बंधानेवाला; राजाको प्रातःकाल जगाने- सोमतीर्थ; एक वसु । वाला, स्तुतिपाठक। प्रभासना*-अ० क्रि० भासित होना, प्रतीत होना, दिखाई प्रबोधन-पु० [सं०] जगना; जगाना; सचेत होना तत्त्व- पड़ना। ज्ञान; बोध कराना, समझाना; गंधको फिर तेज करना। प्रभिन्न-वि० [सं०] भिन्न; जो अलग हो; विभक्त जो प्रबोधना-स० क्रि० जगाना; सचेत करना; समझाना- टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया हो; बहुत अधिक भेदवाला; बुझाना कोई बात सिखाना; ढाढस बँधाना, तसल्ली देना। परिवर्तित; विकृत; ढीला किया हुआ; भिदा हुआ; खिला प्रबोधनी-स्त्री० [सं०] दे० 'प्रबोधिनी' । हुआ; मतवाला (हाथी)। पु. वह हाथी जिसके गंडस्थलसे प्रबोधिनी-स्त्री० [सं०] देवोत्थान एकादशी; दुरालभा। मद चू रहा हो, मतवाला हाथी। -करट-वि० (वह प्रभंजन-पु० [सं०] तोड़-फोड़, वायु, हवा, प्रचंड वायु हाथी) जिसके फटे हुए कुंभस्थलसे दान बह रहा हो। वि० तोड़-फोड़ करनेवाला । -सुत-पु० हनूमान् । प्रभीत-वि० [सं०] बहुत डरा हुआ। प्रभव-पु० [सं०] उत्पत्ति, जन्म; उत्पत्तिका कारण प्रभु-पु० [सं०] अधीश्वर, स्वामी; अन्नदाता; शासक; उत्पत्तिका स्थान; मूल, जड़, साठ संवत्सरोंमेंसे एक। सर्वशक्तिमान् , ईश्वर विष्णु; शिवः ब्रह्मा; इंद्रा राजा, प्रभविष्णु-वि० [सं०] प्रभावशाली, शक्तिशाली। स्वामी या श्रेष्ठ पुरुषका संबोधन । वि० शक्तिशाली; योग्य, प्रभविष्णुता-स्त्री० [सं०] प्रभावोत्पादकता । दक्ष प्रचुर, स्थायी मुकाबलेका । -भक्त-वि० जो अपने प्रभा-स्त्री० [सं०] तेज, चमक, दीप्ति प्रकाश किरण; स्वामीका सच्चा सेवक हो, जो अपने स्वामीमें अनुरक्त हो, For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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