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कसक-कहगिल काबू, दाब; रोक; जाँच; तलवारकी लचक; अर्क, सार; और बिके। कसाव । * अ० कैसे, क्योंकर । -का-काबूका, बसका। | कसवाना-स० क्रि० कसनेका काम कराना। मु०-में रखना-रोक या दबावमें रखना ।। | कसहड़-पु. काँसेके बरतनोंके टुकड़े ।
रह-रहकर होनेवाली पीड़ा, टीसः खटक; | कसहँडा-पु०, कसहँडी-स्त्री० देग या बटलोईके आकारअरमान, अभिलाषा पुराना वैर; हमददीं।
का एक बरतन । कसकन-स्त्री० कसकनेकी क्रिया, कसक ।
कसाई-पु० [अ०] मांस-विक्रेता; गोमांस बेचनेवाला, कसकना-अ० क्रि० पीड़ा होना, टीसना सालना । बूचड़ । वि० बेरहम, बेदर्द । -खाना-पु. वह स्थान कसकुट-पु० ताँबे और जस्तेके मेलसे बनी एक धातु। । जहाँ मांसके लिए पशुओंका वध किया जाय। मु०-के कसन-स्त्री० कसनेकी क्रिया, कसाव कसनेकी रस्सी कुश। खूटे बँधना-निर्दय व्यक्तिके पाले पड़ना; बेदर्दसे ब्याहा कसना-स० कि० बंधन या तनावको कड़ा करना; ढीली जाना। चीज, गाँठ, फंदे आदिको कड़ा करना; खींचकर बाँधना; कसाकसी-स्त्री० तनातनी, वैर-विरोध । मुश्के बाँधना; जकड़ना; पेच, पुरजेको कड़ा बैठाना | कसाना-अ० क्रि० कसैला स्वाद हो जाना; धातुका कसाव (चुस्त बैठनेवाली चीजको) पहनना,बाँधना (वदी, चपरास | उतर आनेसे बिगड़ना । स० क्रि. कसवाना । आदि); कद् आदिको रेतना; दाम अधिक लेना; ट्रंसकर कसार-पु० चीनी मिला भूना हुआ आटा, पँजीरी; tढूँढी। भरना; घोड़े, हाथीको चारजामा, हौदा रखकर (सवारीके कसाला-पु० कष्टकर श्रम; कष्ट । लिए) तैयार करना; सोनेको कसौटीपर घिसना; परखना; | कसाव-पु० कसैलापन; कसनेका भाव; तनाव; * कसाई । * क्लेश देना; तपाना; व्यंग्य, कटाक्षभरी उक्तिका लक्ष्य | कसावट-स्त्री० तनाव, खिचाव । बनाना (फबती कसना)। अ०क्रि०तंग, चुस्त होना; बंधन, कसीटना*-स० क्रि० कसना; रोकना । फंदा आदिका कड़ा होना; खिंचना; कसा,जकड़ा जाना। | कसीदा-पु० दे० 'कशीदा'। पु० कसने, बाँधनेका साधन; बेठन, खोल । कसकर-अ० | क़सीदा-पु० [अ०] उर्दू-फारसीका वह पद्य जिसमें किसीमजबूतीसे, जकड़कर पूरा-पूरा; जोरसे बेरहमीसे । की प्रशंसा या (क्वचित् ) निंदा की गयी हो। कसनि*-स्त्री० दे० 'कसन' ।।
कसीस-पु०एक लौहजन्य पदार्थ । स्त्री निर्दयता कोशिश । कसनी-स्त्री० वह रस्सी जिससे कोई वस्तु कसी जायः क भी*-वि० कुसुमके रंगका; इस रंगमें रंगा हुआ। बेठन; अगिया; कसौटी; जाँच; कसावका पुट, हथौड़ी। कसूमर-पु० दे० 'कुसुम' । कसब-पु० [अ०] अर्जन, कमाना; पेशा,धंधा; वेश्यावृत्ति। कसूर-पु० दे० 'कुसूर'।-मंद-वि० दे० 'कुसूरमंद'। कसबा-पु० [अ०] छोटा शहर ।
कसेरा-पु० एक हिंदू जाति जो काँसे आदिके बरतन बनानेकसबाती-वि० नगरवासी, नागरिक ।
बेचनेका धंधा करती है । कसबिन-स्त्री० दे० 'कसबी' ।
कसेरू-पु० एक प्रकारके मोथेकी जड़ जो छीलकर खायी कसबी-स्त्री० वेश्या, व्यभिचारसे जीविका कमानेवाली। जाती है। -खाना-पु० वेश्यालय ।
कसया*-पु० कसने या जकड़नेवाला; परखनेवाला। कसम-स्त्री० [अ०] शपथ, सौगंध शपथपूर्वक की हुई प्रतिज्ञा। | कसैला-वि० जिसमें कसाब या कसैलापन हो। मु०-उतारना-शपथके बंधन या प्रभावसे अपने आपको कसैली -स्त्री० सुपारी । मुक्त करना (लड़के); रस्म-अदाई; कहनेभरके लिए कुछ कसोरा-पु० मिट्टीका बना प्याला जो छिछला होता है। करना । (किसी बातकी)-खाना-किसी बातके करने | कटोरा । या न करनेकी प्रतिज्ञा करना।-खानेको-नाममात्रको। कसोटी-स्त्री० एक काला पत्थर जिसपर सोना घिसकर कसमस-पु०, स्त्री० कसमसाहट ।
परखा जाता है; परखा जाँच (ला०)। कसमसाना-अ० कि. भीड़के कारण आपसमें रगड़ खाते कस्तूर-४० कस्तूरी मृगः कस्तूरी-जैसा एक पदार्थ जो हुए हिलना, कुलबुलाना; ऊबकर हिलना-डोलना; घब- | बीवर नामक जंतुकी नाभिसे निकलता है। डाना, बेचैन होना; हिचकना।
कस्तूरिका-स्त्री [सं०] कस्तूरी। कसमसाहट-स्त्री० कुलबुलाहट; बेचैनी, घबराहट । कस्तूरिया-वि० कस्तूरीका; कस्तूरीसे मिलकर बना; कसमा कसमी-स्त्री० दोनों ओरसे कसम खाना । कस्तुरीके रंगका । पु० कस्तूरी-मृग । कसर-स्त्री० [अ०] कमी, न्यूनता; घाटा; वैर; | कस्तूरी-स्त्री० [सं०] एक सुगंधित पदार्थ जो एक तरहके विकार । मु०-करना,-रखना-(किसी बातके करनेमें) | नर हिरनकी नाभिके पासकी गाँठमें पैदा होता और दवा कमी रखना, कोताही करना । -खाना-घाटा सहना । के काम आता है ।-मृग-पु० वह हिरन जिसकी नाभि-निकलना-क्षतिपूर्ति होना; बदला मिलना। -निका- | के पासकी गाँठ(नाफा) में कस्तूरी पैदा होती है। लना-बदला लेना; घाटा या कमी पूरी करना। कस्साब-पु० [अ०] बूचड़ । -खाना-पु० बूचड़-खाना । कसरत-स्त्री० [अ०] शरीरको पुष्ट, बलवान् बनानेवाली कहूँ*-प्र० को, के लिए । अ० दे० 'कहाँ। क्रियाएँ, व्यायाम, वजिशा बहुलता, आधिक्य । कहकहा-पु० [अ०] खिलखिलाकर हँसना, जोरकी हँसी। कसरती-वि० कसरत करनेवाला; कसरतसे बनाया हुआ। कहगिल-स्त्री० [फा०] मिट्टी में भूसा, पुआलकी कुट्टी आदि कसरहट्टा-पु० कसेरोंकी हाट, वह बाजार जहाँ बरतन बने| सानकर बनाया हुआ गारा
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