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रस-रसायन और संचारीके योग द्वारा व्यंजित स्थायी भावसे उत्पन्न | बाँधना और भस्म करना 1-संस्कार-पु० पारेका बंधन, चित्तवृत्ति-विशेष, आनंद (सा०): नौकी संख्या (सा); मूर्छन, मारण आदि अठारह संस्कार । -सार-पु० आनंद, प्रेम; द्रव, तरल पदार्थ; जल; शराब; वेग जोश; मधु । -सिंदर-पु० पारे, गंधकके योगसे निर्मित एक इच्छा; केलि, कामक्रीड़ा; गुणः फलों, वनस्पतियोंका रसौषध । जलीय अंश जो कूटने, दबाने या निचोड़नेसे निकलता रसद-पु० [फा०] अनाज, खानेका सामान; भत्ता, राशन; है। शोरबा, रसा; शरबत; ईखसे निकाला जानेवाला रस; हिस्सा, बखरा सेनाके लिए खाद्य सामग्री। वृक्षका निर्यास; लासावीर्य; राग; विष; दूध; अमृत रसना-* अ० क्रि० रसमग्न होना; प्रफुल्ल होना; तन्मय गंधरस; शिलारस; पारा; हिंगुल; शिंगरफ, धातुओंको होना; पूर्ण होना; + धीरे-धीरे बहना, टपकना । स० क्रि० फूंककर तैयार किया हुआ भस्म । -कर्म (न्)-पु० कोई द्रव पदार्थ धीरे-धीरे छोड़ना, टपकाना । स्त्री० [सं०] पारे द्वारा रस तैयार करनेकी क्रिया (आ०वे०)।-कैलि- जीभ, रसस्वाद (न्या०); एक ओषधि, रास्ना मेखला, स्त्री० विहार, क्रीडा; हँसी, दिल्लगी। -खीर-स्त्री० करधनी रस्सी; लगाम चंद्रहार । -रव-पु० पक्षी (दाँत [हिं०] मीठा भात । -गंध,-गंधक-पु० रसौत; शिंग- न होनेसे जीभसे ही बोलनेवाला)। रफ; बोल नामक गंधद्रव्य । -गुनी -पु० रसश, काव्य, | रसनीय-वि० [सं०] स्वाद लेने या चखने योग्य; स्वादिष्ठ । संगीतका ज्ञाता। -गुल्ला-पु० [हिं०] छेनेसे बनायी रसनेंद्रिय-स्त्री० [सं०] रसना, स्वादकी इंद्रिय, जीभ । जानेवाली एक मिठाई । -न-पु० सुहागा। -ज-पु० रसनोपमा-स्त्री० [सं०] उपमाका एक भेद जिसमें उपगुड़, रसौत; शराबकी तलछट । -जात-पु० रसौत । माओंकी एक श्रृंखला रहती है और उपमेय उपमान होता -ज्ञ-वि० रसका शाता; कुशल, निपुण; काव्यमर्मश । | जाता है। -ज्ञा स्त्री० जीभ, गंगा। -ज्येष्ठ-पु० शृंगार रस | रसमसा-वि० दे० 'रस'के साथ । मधुर, मीठा रस। -द-वि० सुखद, आनंददायका स्वा- | रसमि*-स्त्री० रश्मि, किरण, प्रकाश, आभा । दिष्ठ । पु० चिकित्सक । -दार-वि० [हिं०] जिसमें रस | रसरी*-स्त्री० रस्सी, डोरी। हो, शोरबेदार; रसवाला (आम, नीबू आदि); स्वादिष्ठ । रसवंत*-वि० रसभरा, रसीला । पु० रसिक प्रेमी; रसज्ञ । -धातु-स्त्री० पारा; शरीरकी सात धातुओं में से एक । | रसवंती-स्त्री० रसौत । -धेनु-स्त्री० दानके निमित्त निर्मित गुड़की गाय ।। रसवत-स्त्री० दे० 'रसौत'। -नाथ-पु० पारा । -नायक-पु० पारा; शिव । रसवत्ता-स्त्री० [सं०] रसीलापन, रसयुक्त होना; माधुर्य, -पति-पु. पारा शृंगार रस राजा पृथ्वी; चंद्रमा। मिठासः सुंदरता । -पर्पटी-स्त्री० पारेको शोधकर बनाया जानेवाला एक रसवान (वत)-वि० [सं०] रसवाला, जिसमें रस हो। रस (आवे०)। -प्रबंध-पु० नाटक; प्रबंधकाव्य, वह रसाँ, रसा-वि० [फा०] पहुँचानेवाला, दूर जानेवाला कविता जिसमें एक विषय अनेक परस्पर असंबद्ध पद्यों में | (जैसे-चिट्ठीरसौं)। हो। -भरी-स्त्री० [हिं०] एक फल, मकोय ।-भस्म- रसांजन-पु० [सं०] रसौत ।। पु० पारेका भस्म । -भीना-वि० [हिं०] आनंदमें मग्न | रसा-स्त्री० [सं०] भूमि, पृथ्वी; नदी; जिह्वा । -तल-पु० आर्द्र, तर । -मसा*-वि० आनंदमग्न, रंगमें मस्त | पृथ्वीके नीचेके सात लोकोंमेंसे छठा। मु०-तल पहूँ। -'गोपी औ गोपालको अति रसमसो समाज'-हरिश्चंद्र चाना-बरबाद कर देना, मटियामेट करना ।। पसीनेसे भरा, श्रांत; तर, गीला। -माता*-स्त्री० दे. रसा-पु० शोरबा, झोल (तरकारी आदिका)। -दार'रसमातृका'। -मातृका-स्त्री० जीभ । -मारण-पु० वि० झोल, शोरबेवाला । पारा मारने, शुद्ध करनेकी क्रिया। -मुंडी-स्त्री० [हिं०] | रसाइन-पु० दे० 'रसायन' । एक बँगला मिठाई। -मैत्री-स्त्री० दो रसोंका उपयुक्त | रसाइनी*-पु० रसायनी, रसायन विद्या जाननेवाला, मेल (जैसे-कडुआ-तीता, तीता-नमकीन, शृंगार-हास्य | कीमियागर । इ०)। -राज-पु. शृंगार रस; रसीत; पारा; ताँबेके | रसाई-स्त्री० [फा०] पहुँच; दाखिला । भस्म, गंधक, पारे आदिके योगसे बनायी जानेवाली एक रसात्मक-वि० [सं०] रसयुक्त; सुंदर । औषधि । -राय-पु० दे० 'रसराज'। -वाद-पु० रसाध्यक्ष-पु० [सं०] मादक द्रव्योंकी जाँच-पड़ताल तथा रसालाप, प्रेम, आनंदकी बातचीत; छेड़छाड़, झगड़ा; विक्रयकी व्यवस्था करनेवाला राजकर्मचारी। बकवाद । -वाहिनी-स्त्री० भोजनसे बने रसको फैलाने- | रसाना*-अ० क्रि० आनंद लूटना--'राधा ब्रज मिश्रित वाली नाडी (आ००)। -विक्रयी (यिन)-पु० मधु- जस रसनि रसाइये'-नागरी। विक्रेता, शराब बेचनेवाला ।-विरोध-पु० रसोंका अनु- रसाभास-पु० [सं०] किसी रसका अनुचित प्रकरण या चित मेल (जैसे-तीता-मीठा, कडुआ-मीठा इ०-आश्वे०); स्थानपर वर्णन; एक अलंकार । एक पद्यमें दो प्रतिकूल रसोंकी स्थिति (जैसे-शृंगार-रौद्र, रसायन-पु०[सं०] पदार्थोंका तत्त्वगत ज्ञान, दे० 'रसायनहास्य-भयानक इ०-सा०)।-शार्दूल-पु. एक आयुर्वेदोक्त शास्त्र'; जराव्याधिनाशक औषधि ( जैसे-विडंगरस, रस जो प्रसूताके लिए उपयोगी है। -शास्त्र-पु० रसा- ब्राह्मीरस इ०); ताँबेसे सोना बनानेका कल्पित योग यन-शास्त्र । -शोधन-पु० सुहागा पारेको शुद्ध करना। धातुओंको भस्म करने, एक धातुको दूसरी धातुमें परि-संरक्षण-पु० पारेको शुद्ध करना, मूच्छित करना, वर्तित करनेकी विद्या ।-ज्ञ-पु० रसायनविद्याका जानने
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