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रमनीय-रस
रमनीय * - वि० दे० 'रमणीय' ।
रमल - पु० [अ०] फलित ज्योतिषका प्रकार- विशेष जिसमें पासे फेंककर उसके बिंदुओंके अनुसार फलका अनुमान करते हैं (भारत में इस विद्याका प्रवेश मुसलमानों द्वारा हुआ) ।
रमसरा - पु० ऊखके खेतका एक पौधा । रमा - स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; पत्नी; सौभाग्य; संपत्ति; वैभव; शोभा । -कांत - धव-पु० विष्णु । - नरेश* - पु० विष्णु । - निकेत, - निवास - पु० विष्णु । पति, - रमण - पु० विष्णु ।
रमाना- स० क्रि० लगाना, जोड़ना ( रास ); पोतना; मुग्ध करना, मोहित करना; अनुरक्त बनाना; रोकना, ठहराना; अनुकूल बनाना । रमित* - वि० मुग्ध, लुभाया हुआ । रमेश, रमेश्वर - पु० [सं०] विष्णु । रमैती - स्त्री० काम लेकर बदले में काम करनेकी प्रथा ('हूँड़ या पैठ'); ऐसे काम में लगने वाला दिन । रमैनी - स्त्री० बीजकका दोहों-चौपाइयोंसे युक्त भाग । रमैया * - पु० रामः ईश्वर ।
रम्माल - पु० [अ०] रमल फेंककर फलित कहनेवाला, ज्योतिषी, नजूमी |
रम्य - वि० [सं०] सुंदर, मनोहर, रमणीय, मनोरम । रम्हाना - स० क्रि० गायका बोलना, रँभाना, घाड़ना । - पु० [सं०] वेग, तेजी; प्रवाह; * धूल, रज । रयन * - स्त्री० दे० 'रथनि' ।
रयना* - अ० क्रि० बोलना, रव करना; अनुरक्त होना, प्रेममग्न होना; रँगना, रंगसे भींगना; मिलना । रयनि* - स्त्री रजनी, रात ।
रयत - स्त्री० दे० 'रयत' ।
रवकना - अ० क्रि० झपटना, लपकना; उछलना, उमगना । रचण-पु० [सं०] रव, शब्द; कोयल; ऊँट; विदूषकः भाँड़; काँसा; * रमण । वि० शब्द करता हुआ; गरम, तप्त अस्थिर, चंचल | - रेती - स्त्री० [हिं०] यमुनातटकी रेतीली भूमि, कृष्णका विहार-स्थल । रखताई - स्त्री० रावत (राजा) होनेका भाव, प्रभुता,
स्वामित्व |
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रवन * - वि० रमण करनेवाला । पु० पति, भर्ता, स्वामी;
रमण ।
रखना * - अ० क्रि० शब्द करना, बोलना; रमना; क्रीडा, रमण करना । पु० रावण ।
रवनि, रवनी * - स्त्री० रमणी, सुंदरी, स्त्री ।
रवन्ना - पु० रवाना होनेका, राहदारीका परवाना, जानेवाली चीजके साथ रहनेवाली चुंगीकी रसीद, प्रमाणपत्र; कागज जिसपर रवाना किये हुए मालका विवरण हो; घरेलू काम-काज करने या सौदा लानेवाला ड्योढ़ीदार | रवा - पु० छोटा टुकड़ा, कण, दाना (चाँदी, चावल, चीनी, मिश्रीका रवा ); घुँघुरुका छर्रा; बारूदका दाना; सूजी । -दार - वि० दानेदार, खेवाला । -भर-अ० जरासा, बहुत थोड़ा ।
रवा - वि० [फा०] उचित, ठीक; प्रचलित; पूरा करनेवाला (समास में) । - दार - वि० हितैषी, शुभचितक; संबंध, लगाव रखनेवाला । - रवी - स्त्री० जल्दी; भाग-दौड़ । रवाज - पु० [फा०] चलन, रीति, प्रथा, परिपाटी । रवानगी - स्त्री० [फा०] प्रस्थान, प्रयाण | रवाना - वि० [फा०] प्रस्थित, चला हुआ; भेजा हुआ । | रवाब- पु० दे० 'रवाव' |
रवाबिया - पु० लाल, बलुआ पत्थर; दे० 'रवाबिया' । रवायत - स्त्री० [अ०] कहानी; कहावत । रवि - पु० [सं०] सूर्य; अग्निः सरदार; आक, मदार; लाल अशोक; पहाड़; धृतराष्ट्रका एक पुत्र; बारहकी संख्या । - कर- पु० सूर्यकिरण । -कांतमणि-पु० सूर्यकांत मणि - कुल - ५० सूर्यवंश | -कुलमणि - पु० राम । -जपु० शनि दे० 'रवितनय' । -जा- स्त्री० यमुना । - तनय, - नंद, - पुत्र - पु० सावर्णि मनुः वैवस्वत मनुः यमराज; शनि; अश्विनीकुमार; सुग्रीव; कर्ण । - तनया, - तनुजा, - नंदिनी - स्त्री० यमुना । - पूत* - पु० दे० 'रवितनय' । - बिंब - पु० सूर्यका मंडल; माणिक्य । - मंडल - पु० सूर्यके चारों ओर दिखाई देनेवाला लाल मंडल, सूर्यका बिंब । मणि, रत्न- पु० सूर्यकांतमणि । - वार, - वासर - पु० इतवार, आदित्यवार । -वंशी( शिन् ) - पु० सूर्यवंशमें उत्पन्न पुरुष, सूर्यवंशी । - सारथि - पु० अरुण । -सुअन* - पु० दे० 'रवितनय' । - सुत, - सूनु - पु० दे० 'रवितनय' ।
रर* - स्त्री० रट, रटन ।
ररना* - अ० क्रि० रटना, बार-बार एक ही बात कहना । स० क्रि० पुकारना - 'कब जननी कहि मोहि ररै' - सू० । ररिहा * - वि० ररनेवाला; गिड़गिड़ाकर माँगनेवाला, माँगनेकी धुन लगानेवाला । पु० उल्लूकी जातिका एक पक्षी, रुरुआ, रटुआ ।
रलना* - अ० क्रि० एकमें मिलना । मु० - मिलना - घुलना-मिलना, एक हो जाना ।
रलाना* - स० क्रि० एकमें मिलाना, सम्मिलित करना । रली - स्त्री० क्रीडा, विहार; खुशी, प्रसन्नता; + एक प्रकारका अन्न, चेना ।
रविश - स्त्री० [फा०] बगीचेकी क्यारियोंके बीच चलने के लिए पतला रास्ता; चाल, रफ्तार; ढंग, तौर; रस्म; रवैया ।
रल* - पु० रेला, धक्कमधक्का; धावा; हल्ला |
रवैया - पु० चलन, प्रथा; तौर तरीका |
रव - पु० [सं०] ध्वनि; शब्द; शोर, भनभनाहट, गुंजार; रशना - स्त्री० [सं०] कांची, करधनी; रस्सी; जिह्वा; लगाम | * रवि, सूर्य; + जहाजकी चाल, गति । रशनोपमा - स्त्री० [सं०] दे० 'रसनोपमा' |
रश्क- पु० [फा०] जलन, डाह, कुढ़न, ईर्ष्या, हसद । रश्मि - स्त्री० [सं०] किरण; रस्सी, डोरी; घोड़े की लगाम । रस - पु० [सं०] स्वाद, रसनेंद्रियका ज्ञान, संवेदन ( इनकी संख्या ६ है - मधुर, अम्ल, लवण, कटु, कषाय और तिक्त); ६ की संख्या (न्या० ) ; खाये हुए अन्नका प्रथम परिणाम; तत्त्व, सार; मन में उत्पन्न होनेवाला वह भाव जो काव्यपाठ, अभिनय दर्शन आदि से होता है, विभाव, अनुभाव
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