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पलोटना-पशु बेलते हैं । मु०-निकलना-खूब पीटा जाना, गहरी मार पवनारमज-पु० [सं०] हनूमान; भीमसेन । पड़ना। -निकालना-खूब पीटना परेशान करना। पवनाश, पवनाशन-पु० [सं०] साँप । वि० हवा पीकर पलोटना*-स० क्रि० (पैर) दबाना। अ०क्रि० लोट-पोट रहनेवाला।
करना; भारी शारीरिक कष्टसे तड़फड़ाना छटपटाना । पवनाशी(शिन्)-वि० [सं०] हवा पीकर रहनेवाला । पलोथन-पु० दे० 'पलेथन' ।
पु० साँप । पलोचना*-स० क्रि० (पैर) दबाना; सेवा-शुश्रुषा करना।। पवनास्त्र-पु० [सं०] एक प्रकारका अस्त्र जिसका प्रयोग पलोसना*-स० क्रि० साफ करना, धोना; फुसलाना। | करनेपर बहुत तेज हवा या आँधी चलने लगती थी, पल्लव-पु० [सं०] नया और कोमल पत्ता; घासकी पत्ती; | पवनबाण (पु०)। कली; कंकण, वलय। -ग्राही(हिन)-वि० जिसमें पवनी-स्त्री० [सं०] झाड़ + दे० पौनी । पल्लव लगे हों या लग रहे हों; अपूर्ण,अधूरा (शान); अधुरी पवमान-पु० [सं०] वायु, हवा; गार्हपत्य अग्नि । जानकारीवाला।
पवर*-वि० प्रवर । स्त्री० ड्योढ़ी। पल्लवना*-अ० कि० पल्लवित होना।
पवरिया*-पु० ड्योढ़ीदार, पौरिया । पल्लवाद-पु० [सं०] हिरन ।
पवरी-स्त्री० दे० 'पीरी'। पल्लवित-वि० [सं०] जिसमें पल्लव लगे हों; विस्तृत | पवर्ग-पु० [सं०] नागरीमें 'प'से 'म'तक पाँच अक्षरोंका बढ़ाया हुआ; लाखमें रँगा हुआ; रोमांचयुक्त।
समूह। पल्लवी(विन्)-वि० [सं०] जिसमें नये पत्ते निकले हों। | पवाँडा-पु० जी उबा देनेवाला लंबा आख्यान; बहुत बढ़ापु० वृक्ष।
कर कही हुई बात एक तरहका गीत । पल्ला-पु० कपड़ेका छोर, दामन; दूरी; दुपलिया टोपीका | पवारना, पवारना*-सक्रि० फेंकना छींटना, छितराना।
आधा हिस्सा; अन्न बाँधकर ले जानेका टाट या गोनी | पवारी -स्त्री० लोहा छेदनेका लोहारोंका एक आला । किवाड़; तराजूकी एक ओरकी डलिया, पलड़ा; कैचीके पवाना*-स० क्रि० खिलाना, भोजन कराना। दो हिस्सों में कोई एक तीन मनका बोझ। वि० दे० । पवि-पु० [सं०] बज्र वाणी; बाण । -धर-पु० इंद्र। 'परला। (पल्लेदार-पु० गल्ला ढोने या तौलनेवाला । पविताई*-स्त्री० पवित्रता, शुद्धता । -दारी-स्त्री० पल्लेदारका काम । मु०-छूटना- पवित्र-वि० [सं०] शुद्ध, निर्मल, स्वच्छ, पुनीत; व्रत, छुटकारा मिलना, पिंड छूटना। छुड़ाना-छुट्टी पा लेना, शौच आदिसे शुद्ध । पु० शुद्ध करनेवाली वस्तु, शुद्धतापिंड छुड़ाना ।-झुकना-किसी पक्षका अधिक बलवान् की साधनरूप वस्तु (छलनी आदि); कुश; कुशकी बनी होना। -पकढ़ना-सहारा लेना ।-पसारना-किसीके | हुई पवित्री जिसे धार्मिक कृत्य करते समय अनामिकामें सामने दामन फैलाना, किसीसे कुछ भीख माँगना ।। पहनते.हैं। -धान्य-पु० जौ। -पाणि-वि० जिसके -भारी होना-दे० 'पल्ला झुकना' । (पल्ले)पड़ना-हाथ | हाथमें कुश हो। लगना, मिलना । (किसीके)-बंधना-विवाहित होना, पवित्रात्मा (मन)-वि० [सं०] जिसकी आत्मा पवित्र न्याही जाना; सौंपा जाना (किसीके)-बाँधना- हो, जिसका अंतःकरण शुद्ध हो । ब्याहना; जिम्मे करना या लेना। -से वाँधना-जिम्मे | पवित्रारोप(ह)ण-पु०[सं०] यज्ञोपवीत धारण करना; भक्तों करना; ब्याह देना।
द्वारा विष्णु आदि देवताओंको यज्ञोपवीत पहनानेका कृत्य । पल्लि, पल्ली-स्त्री० [सं०] छोटा गाँव, पुरा, टोला; कुटी; | पवित्रित-वि० [सं०] शुद्ध किया हुआ । छिपकली।
पवित्री-स्त्री० [सं०] कुशकी बनी हुई अँगूठी जैसी वस्तु जिसे पल्लिका-स्त्री० [सं०] छोटा गाँव, टोला; छिपकली। धार्मिक कृत्य करते समय अनामिकामें पहनते हैं, पैंती। पल्ली*-पु० 'पलव'; अनाज बाँधनेका टाट आदि । पवित्रीकरण-पु० [सं०] पवित्र या शुद्ध करना। पल्वल-पु० [सं०] छोटा जलाशय, छोटा तालाब । पशम-पु० [फा० 'पश्म'] नरम बाल; बहुत उम्दा और पर्वरि*-स्त्री० ड्योढ़ी।
नरम ऊन जो अधिकतर पंजाब, कश्मीर और तिब्बतकी पवरिया*-पु० दे० 'पँवरिया।।
भेड़ोंसे प्राप्त होता है। पुरुष या स्त्रीकी जननेंद्रियपरके पव-स्त्री० दे० 'पौ' । पु० [सं०] वायु, हवा; सूप आदिसे | बाल; बहुत तुच्छ वस्तु । मु०-उखाड़ना-व्यर्थ समय अनाजकी भूसी आदि निकालना; शुद्धीकरण ।
बिताना थोड़ा भी नुकसान न पहुँचा सकना। -न पवन-पु० [सं०] हवा; वायुके अधिष्ठातृदेव; अनाज उखड़ना-कुछ भी करते-घरते न बनना । -न सम
आदि साफ करना; छलनी; कुम्हारका आवाँ पानी झना-कुछ भी न गुनना। .. विष्णुः गृह्याग्नि पाँचकी संख्या। वि० शुद्ध, निर्मल , | पशमीना-पु० कश्मीर में बननेवाला एक तरहका बहत -कुमार-पु० हनूमान् भीमसेन ।-चक्र-पु० बवंडर । | मुलायम ऊनका कपड़ा। -चक्की-स्त्री० [हिं०] हवाकी शक्तिसे चलनेवाली चक्की। पशु-पु० [सं०] चार पैरों और पूँछसे युक्त जानवर, - -ज,-तनय,-नंद,-नंदन,-पुत्र-पु० दे० 'पवन- चौपाया (जैसे-सिंह, बाघ, बैल, ऊँट, बकरा आदि) जंत. कुमार'। -पति-पु० वायुके अधिष्ठातृदेव ।-पूत-वि० | प्राणी; वह जंतु जिसकी यशमें बलि दी जाय, बलिपश; वायुसे पवित्र किया हुआ। * पु०दे० 'पवनपुत्र' ।-बाण मूर्ख, विवेकहीन मनुष्य । -कर्म (न)-पु०,-क्रिया-पु० दे० 'पवनास्त्र' । -सुत-पु० दे० 'पवनकुमार'। | स्त्री० पशुका बलिदान; मैथुन । -चर्या-स्त्री० पशु जैसा
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