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शीतादि-शुक शीताद्वि-पु० [सं०] हिमवान् पर्वत, हिमालय पर्वत । । शील-पु० [सं०] चारत्र, चालचलन, मनकी स्थायी वृत्ति, शीताभ-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।
स्वभाव; सद्वृत्ति, शुद्ध चरित्र; सत्स्वभाव; रागद्वेषविहीशीतोष्ण-वि० [सं०] ठंढा और गरम ।
नता, तटस्थ व्यवहार, चालचलन संकोचीप्रकृति,स्वभाव, शीत्कार-पु० [सं०] रतिकालमें संभोग्य स्त्री द्वारा की गयी मुरौवत । वि० प्रवृत्त, उन्मुख स्वभाववाला, (समासमें)। अव्यक्त, अस्फुट ध्वनि; ('सी सी' ध्वनि) ।
मु०-तोड़ना-बेमुरौवत होना, निःसंकोच हो रिआयत, शीन-पु० [अ०] अरबी-फारसी वर्णमालाका एक वर्ण जो। दया आदि न करना। (आँखाम)-न होना-बेमुरौवत देवनागरीके तालव्य 'श'का काम करता है । मु०-काफ होना, करताका व्यवहार करना। -निभाना-किसीके दुरुस्त न होना-उच्चारण शुद्ध, अस्खलित न होना। द्वारा अपना अनिष्ट होनेपर भी पूर्वकी भाँति ही उसके शीभर-पु० [सं०] शीकर, जलकी फुहार । वि० साथ सवृत्तिपूर्वक व्यवहार करना; सत्स्वभावको न आनंददायक ।
छोड़ना। -मर जाना-संकोच, सद्भाव, सद्वृत्ति आदि: शीर-पु० [फा०] दूध, क्षीर । -खोर-वि० दे० 'शीर- का किसी व्यक्तिसे निकल जाना, दुर्वृत्त होना; बेमुरौवत ख्वार' । -स्वार-वि० दूधपीता (बच्चा)।-(२)मादर- होना। -रखना-मुरौवत न छोड़ना, सद्व्यवहार पु० माँका दूध । वि० हलाल, जायज (ला०)।
रखना, करना। शीरां-पु० [फा०] चाशनी, किवाम; किसी चीजको घोंट- शीलवान(वत्)-वि० [सं०] अच्छे शील या आचरण
छानकर प्रस्तुत किया हुआ पेय (बादामका शीराँ)। वाला, सुशील, नेकचलन । शीरा-पु० दे० 'शीराँ'।
शीश-पु० दे० 'शीर्ष। शीराज़ा-पु० [फा०] किताबकी जुजबंदीके बंद जो पुश्तेके शीशमहल-पु. वह कमरा या भवन जिसमें हर तरफ दोनों ओर लगा दिये जाते हैं; पुस्तक और पुट्ठोंपर की शीशे जड़े हों। जानेवाली सिलाई; (ला०) प्रबंध; शृंखला । -बंद-वि० शीशम-पु० एक पेड़ जिसकी लकड़ी मेज, कुसी आदि (पुस्तक) जिसकी सिलाई, जिल्दबंदी हो चुकी हो। मु०- | बनानेके काम आती है, शिंशपा। बँधना-किताबके जुजोंकी सिलाई होना; बिखरी हुई शीशा-पु०[फा०] काँच, आईना; काँचकी सुराही, बोतल। चीजोंका इकट्ठा, शृखलित किया जाना । -बिखरना- मु०-(शे)में उतारना-भूत-प्रेतको शीशे बोतलमें विशृखलित हो जाना, बिगड़ जाना।
उतार लेना; वश में कर लेना। शीराज़ी-वि० [फा०] शीराजका । पु० शीराजका रहने- शीशी-स्त्री० शीशेका छोटा पात्र जिसमें दवा आदि रखी वाला; गोला कबूतरका एक भेद; एक शराब ।
जाय। शीरौं-वि० [फा०] मीठा, मधुर, प्यारा, प्रिय । स्त्री० शंग-पु० [सं०] वटवृक्षा प्राचीन भारतका एक ब्राह्मण फरहादकी प्रेयसी।-कलाम,-ज़बान-वि० मधुरभाषी, सुंदर भाषा बोलनेवाला । -बयान-वि० मधुरभाषी।
शंटि, शंठी-स्त्री० [सं०] शुष्काईक, सूखा अदरक, सोंठ । -बयानी-स्त्री० मधुरभाषण, मीठा बोलना।
शुंड-पु० [सं०] जवान हाथीके गंडस्थल, कनपटीसे बहनेशीरीनी-स्त्री० [फा०] मिठास मिठाई (चढ़ाना, बाँटना)।
वाला मद, दान; हाथीकी सूंड़। शीर्ण-वि० [सं०] कुम्हलाया हुआ; सड़ा-गला, नष्ट; टूटा- शंडक-पु० [सं०] शराब उतारनेवाला, शोडिक रणभेरी। फूटा, चिथड़े चिथड़े हुआ; छितराया हुआ, विकीर्ण, कृश;
शंडा-स्त्री० [सं०] हाथीकी सूंद सुरा; मद्यपानगृह । शुष्क । -काय-वि० कृश शरीरवाला।
शुंडापान-पु० [सं०] मद्यशाला । शीर्णता-स्त्री०, शीर्णत्व-पु० [सं०] शीर्ण होनेका भाव
शुंडाल-पु० [सं०] हाथी । या धर्भ; कृशता; टूटा-फूटा होना।
शंडिका-स्त्री० [सं०] गलेका कौआ, घाँटी; दे० 'शंडा । शीर्ष-पु० [सं०] सिर मस्तक, माथा,ललाट किसी वस्तुका झुंडी(डिन्)-पु० [सं०] शौडिक, मद्य बेचनेवाला हाथी । सिरा, सबसे ऊपरी हिस्सा; खातेकी मद; (वरटेक्स) किसी शुभ-पु० [सं०] एक दानव जो गवेष्ठीका पुत्र और प्रह्लादत्रिभुजकी आधाररेखाके ऊपरका वह विंदु जिसपर दो का पौत्र था (यह दुर्गा द्वारा मारा गया था)।-घातिनी, सरल रेखाएँ दो ओरसे आकर कोण बनायें। -च्छेद -नाशिनी,-मर्दिनी-स्त्री० दुर्गा । -पु० सिर काटनेकी क्रिया, मस्तकछेदन । -ब्राण-पु० शंशुमार-पु० [सं०] ( स नामक जलजंतु । शिरस्त्राण । -पट,-पटक-पु. शिरमें बाँधनेका कपड़ा, शुऊर-पु० [अ०] शान; बुद्धि ढंग, सलीका ।-दार-वि० पगड़ी, साफा आदि । -रक्ष-पु० शिरस्त्राण । -विंद
जिसे कामका ढंग आता हो, तमीजदार।। पु० सिरके ऊपर सबसे ऊँचा स्थान; मोतियाबिंद (जेनिथ)
शुक-पु० [सं०] सुग्गा, तोता; वस्त्र, पोशाक; व्यास दे० 'ऊर्ध्व विंदु'।-स्थान-पु० माथा सिर: सर्वोच्च स्थान ।
मुनिके पुत्र, शुकदेव ।-तरु-पु. सिरीसका पेड़ ।-तुंड-स्थानीय-वि० मूर्धन्य, सर्वोच्च, प्रधान, श्रेष्ठ । पु० सुग्गेकी चोंच । -देव-पु० कृष्णद्वैपायन वेदव्यासके शीर्षक-पु० [सं०] सिर सिरा; सिरकी रक्षा करनेवाली पुत्र । -दुम-पु० दे० 'शुकतरु'। -नलिका न्यायवस्तु (लोहेका टोप आदि); सिरकी हड्डी,शिरोस्थि; पगड़ी, पु० लोभवश फँसनेकी रीति (पक्षी फँसानेकी लासा लगी, टोपी आदि सिरपर देनेकी वस्तु; किसी निबंध, ग्रंथ | नलिनी, नलिका लगाकर उसके पास चारा रख देते हैं,
आदिके विषयका परिचायक शब्द, शब्दसमूह जो इन- सुग्गा (या पक्षी) चारेके लोभसे नलिनीपर बैठता है और (निबंध, ग्रंथ आदि)के ऊपर रखा जाता है (हेडिंग)। । उसके पंजे लासे में फंस जाते है। लोभवश फँसनेकी इसी
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