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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०३ उत्कर्ष - पु० [सं०] ऊपर खींचना, उठाना; ऊपर चढ़ना, उन्नति; श्रेष्ठता; समृद्धि; इफरात । उत्कल - पु० [सं०] वर्तमान उड़ीसा; बहेलिया । उत्का* - स्त्री० उत्कंठिता नायिका । उत्कीर्ण - वि० [सं०] छितराया हुआ; खुदा हुआ; छिदा हुआ । उत्कृष्ट - वि० [सं०] उन्नत; श्रेष्ठ; उत्तम । उत्कोच - पु० [सं०] घूस, रिश्वत । उत्क्रांति - स्त्री० [सं०] उत्क्रमण; क्रमिक उन्नति या विकास । उत्क्रोश- पु० [सं०] शोर-गुल; घोषणा; कुररी पक्षी । उत्खनन - पु० [सं०] खुदाई; खोदकर बाहर निकालना । उत्खात - वि० [सं०] खोदा हुआ; उखाड़ा हुआ; खोदकर निकाला हुआ; नष्ट किया हुआ । पु० छेद, बिल; गढ़ा । उत्तंग* - वि० दे० 'उत्तु ंग' | उत्तंस - पु० [सं०] कर्णपूर, कर्णाभरण; शेखर; शिरोभूषण; आभूषण; * दे० 'अवतंस' । उत्त - * पु० अचरज; संदेह । अ० उधर । | उत्तप्त - वि० [सं०] बहुत ज्यादा गरम; दुःखी; क्रुद्ध । उत्तम - वि० [सं०] सबसे अच्छा, श्रेष्ठः प्रधान । - पुरुष - पु० बोलनेवालेका सूचक सर्वनाम ( मैं, हम ); ईश्वर | -साखपत्र-पु० [ हि० ] ( गिल्टएज्ड सिक्यूरिटीज़ ) वे साखपत्र या प्रतिभूतियों जो बिलकुल सुरक्षित मानी जाती हों तथा जिनके डूब जानेका कमसे कम खतरा हो । व्यावसायिक संस्थाएँ, व्यापारी आदि इनमें रुपया लगाना शौकसे पसंद करते हैं ( प्रथम श्रेणीके साखपत्र ) । उत्तमता - स्त्री० [सं०] श्रेष्ठता; अच्छाई । | उत्तमोत्तम - वि० [सं०] अच्छे से अच्छा, सर्वश्रेष्ठ । उत्तर- वि० [सं०] उत्तर दिशा-संबंधी; ऊपरवाला; ऊँचा; पीछे आनेवाला, पिछला ; श्रेष्ठ (लोकोत्तर); अतीत... से अधिक ( अष्टोत्तर शत ); वाम; शक्तिशाली; पार करने या किया जानेवाला । पु० दक्षिणकी उलटी दिशा; शुमाल, जवाब: बदला; वादका जवाब, बचाव; भविष्यत् काल । अ० पीछे; बाद । -काल- पु० आनेवाला समय, भविष्यत् काल । -च्छद - पु० बिछावनकी चादर; आवरण । - तिथित, - तिथीय- वि० ( पोस्ट डेटेड) जिसपर बादकी तिथि डाली गयी हो (वह प्रलेख, धनादेश आदि) । - ०धनादेश - पु० (पोस्ट डेटेट चेक) वह धनादेश जिसपर बादकी तिथि डाल दी गयी हो अतः जिसका भुगतान तुरंत न होकर उक्त तिथिको ही या उसके बाद संभव हो सके । - दाता (तृ), १- दायक - वि० जवाब देनेवाला, जिम्मेदार | - दायित्व - पु० जवाबदेही, जिम्मेदारी | - दायी (यिन् ) - वि० जवाब देनेवाला, जिम्मेदार | पट पु० दुपट्टा, चादर । - पद - पु० समासका अंतिम पद । ७- क Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्कर्ष - उत्थान -वादी ( दिन ) - - प्रत्युत्तर - पु० सवाल-जवाब, बहस हुज्जत । - प्रदेश - पु० दिल्ली पंजाब और बिहार के बीचका प्रदेश, जिसे पहले संयुक्त प्रांत कहते थे। - प्राप्य - भोग्य - वि० (रिवर्शनरी) जो बाद में, प्रायः मृत्युके उपरांत दिया जाय; जो प्राप्य हो जानेपर भी तुरंत न दिया जाकर पूरी अवधि समाप्त हो जानेपर या मृत्यु हो जानेपर ही मिले। - वय, - वयस - स्त्री० बुढ़ापा । - घस्त्र - पु० ऊपर पहननेका वस्त्र; दुपट्टा, उपरना । पु० प्रतिवादी, मुद्दालेह । उत्तरण - पु० [सं०] पार होना; उतरना; पानीसे निकलना । उत्तरा - स्त्री० [सं०] उत्तर दिशा; एक नक्षत्र; अभिमन्युकी पत्नी जिससे परीक्षितका जन्म हुआ । - खंड-पु० भारतवर्षका उत्तरी, हिमालय के पासका भाग। - फाल्गुनीस्त्री० एक नक्षत्र । - भाद्रपदा - स्त्री० एक नक्षत्र । उत्तराधिकार - पु० [सं०] किसीके (मरने या हटने के बाद उसकी संपत्ति, पद आदि पानेका हक, वरासत । उत्तराधिकारी (रिन् ) - वि० [सं०] किसीके ( मरने या हटने के ) बाद उसकी संपत्ति, पद आदि पानेका हकदार, वारिस | उत्तराभास - पु० [सं०] झूठा जवाब; बहाना; टालमटूल । उत्तरायण - पु० [सं०] सूर्यका मकर रेखा से उत्तर (कर्क रेखा)की ओर जाना; वह छः महीनेका काल जब सूर्यकी उत्तरकी ओर गति रहती है । उत्तराद्ध, उत्तरार्ध - पु० [सं०] देहका कमर से ऊपरका भाग; पिछला, अंतकी ओरका आधा भाग (पूर्वार्धका उलटा ) । उत्तराशा - स्त्री० [सं०] उत्तर दिशा । उत्तरापाढा - स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र । उत्तमताई*-स्त्री० उत्तमता । उत्तमर्ण, उत्तमर्णिक - पु० [सं०] महाजन, ऋण देनेवाला। उत्तरीय, उत्तरीयक- वि० [सं०] उत्तरका; ऊपरका | पु० उत्तमांग- पु० [सं०] सिर । उत्तमा- वि० स्त्री० [सं०] भली, नेक। - दूत - स्त्री० वह दूती जो नायक या नायिकाको बातोंसे मना ले । नायिका - स्त्री० वह नायिका जो प्रतिकूल पतिके साथ भी अनुकूल आचरण करे । दुपट्टा, उपरना ओढ़नी । उत्तरोत्तर - अ० [सं०] अधिकाधिक दिन-दिन अधिक; लगातार 1. उत्तान - वि० [सं०] ताना, फैलाया हुआ; पीठके बल लेटा हुआ, चित; सीधा (खड़ा); | - पाद - वि० जिसकी टाँगें फैला दी गयी हैं । पु० ध्रुवका पिता । उत्ताप - पु० [सं०] तेज गरमी ; दुःखः क्लेश; चिंता; क्षोभ । उत्तारण- पु० [सं०] पार उतारना; उद्धार करना; विष्णु । उत्ताल - वि० [सं०] ऊँचा; प्रबल; प्रचंड; भयंकर; विशाल | उत्तीर्ण - वि० [सं०] पार पहुँचा हुआ; जिसका उद्धार किया गया हो; कर्तव्य से मुक्त; परीक्षा में पास; चतुर, अनुभवी । उत्तरंग - वि० [सं०] बहुत ऊँचा, गगनस्पशीं । उत्तेजक - वि० [सं०] उभारने, बढ़ावा देनेवाला; काम, क्रोध आदिको भड़कानेवाला । उत्तेजन पु० [सं०] उभारना, भड़काना; बढ़ावा देना । उत्तेजना - स्त्री० [सं०] बढ़ावा; प्रेरणा; रोष; क्रोध । - जनक - वि० भड़कानेवाला; क्रोधोत्पादक | उत्तोलन - पु० [सं०] ऊपर उठाना; तानना; तौलना । - यंत्र - पु० (क्रेन) रेलके डब्बे, भारी गाँठें आदि ऊपर उठानेवाला, सारसकी चोंच जैसा यंत्र । उत्थवना* - स० क्रि० आरंभ करना; उठाना । उत्थान - पु० [सं०] उठना; उठान; उन्नति, बल-वैभवको For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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