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ठहर-ठीका
३०६ ठहर*-पु० स्थान, जगह; चौका, लीपी हुई जगह । ठाम*-पु० दे० 'ठाँउँ'; शरीरकी मुद्रा, अंगविन्यास । ठहरना-अ० क्रि० रुकना; टिकना; बना रहना; अस्थायी ठाय-स्त्री० दे० 'ठाँय' (स्त्री०) । पु० दे० 'ठाँव' । रूपसे रहना; पक्का होना तय होना; थमना; प्रतीक्षा ठाला-पु० बेकारी; आयकी कमी; काम-धंधेका मंद पड़ करना।
जाना । वि० बेकार, निठल्ला । ठहराई-स्त्री० ठहरानेकी क्रिया या मजदूरी; कब्जा। ठाली-वि० बेकार, निठला । * स्त्री० धीरज, ढाढ़स । ठहराऊ-वि० ठहरनेवाला, टिकाऊ ।
ठाहर*-पु० जगह; ठहरनेका स्थान; ठिकाना। ठहराना-स० क्रि० रोकना; स्थिर करना; टिकाना; तय ठिगना-वि० कम ऊँचा, छोटे कदका, नाटा । करना; पक्का करना (ठहरना' कार०)। * अ० क्रि० ठिकठन*-पु० व्यवस्था, प्रबंध.। ठहरना, टिकना, रुकना।
ठिकना*-अ० कि० दे० 'ठिठकना' । ठहराव-पु० ठहरनेका भाव; स्वर या तानका विराम ठिकरा-पु० दे० 'ठीकरा'। (संगीत); रुकाव; निर्णय ठहरौनी; समझौता।
ठिकाना-पु० स्थान; वासस्थान रहने या ठहरनेकी जगह, ठहरौनी-स्त्री० दहेज आदिके लेन-देनकी प्रतिज्ञा या । मुकाम; अवलंब गुजर करनेका स्थान; नियत या अनुकूल निश्चय।
स्थान; उपाय, व्यवस्था सीमाभरोसा विश्वास; जागीर । ठहाका-पु० जोरकी हँसी । मु०-लगाना-अट्टहास मु०-लगना-आश्रयस्थान या जीविकाका अवलंब प्राप्त करना।
होना । -लगाना-नौकरी या रहनेका स्थान ठीक ठहियाँ-स्त्री० स्थान, जगह ।
करना । -(ने)आना-ठीक रास्तेपर आना, असलियतठाँ, ठाँई-स्त्री० दे० 'ठाँव' । अ० तई, प्रति पास । पर पहुँचना । -कीबात-युक्ति-संगत बात, कामकी बात। ठाउँ*-पु० दे० 'ठाँव' । अ० निकट, पास ।
-पहुँचाना-अभीष्ट स्थानतक पहुँचा देना। -लगनाठाँठ-वि० रसहीन; (गाय आदि) जो दूध न देती हो। उचित स्थानपर पहुँच जाना; काममें आना; मर जाना। ठोठर*-पु० ठठरी।।
-लगाना-मार डालना खत्म कर देना । ठाँय-पु० दे० 'ठाँव' । स्त्री० बंदूक छुटनेकी आवाज । ठिठकना-अ० क्रि० चलते-चलते सहसा रुक जाना; स्तब्ध ठाँव-पु० स्थान, जगह: अवसर, मौका।
होना; ठक रह जाना । ठाँसना-स० क्रि० हँसना या कसकर भरना। अ० क्रि० ठिठुरना-अ० क्रि० सीसे सिकुड़ जाना। ढाँसना।
ठिठोली-स्त्री० दे० 'ठठोली। ठाकुर-पु० देवप्रतिमा (विशेषकर विष्णुकी); परमेश्वर; ठिनकना-अ० क्रि० (बच्चोंका) बनावटी तौरसे रोना । अधीश्वर, स्वामी; क्षत्रियोंकी उपाधि; जमींदार; नाई। ठिरना-अ० क्रि० बहुत अधिक सदी पड़ना; ठिठुरना। -द्वारा-पु० ठाकुरजीका मंदिर, पुरीस्थित जगन्नाथजीकाटिलना-अ० कि० बलपूर्वक ढकेला जाना; आगे खिसकाया मंदिर । -बाड़ी-स्त्री० देवस्थान ।
या बढ़ाया जाना; तेजीसे धुसना; धंसना। ठाट-पु० रोक या रक्षाके काम आनेवाला बाँसका ढाँचा; ठिलाठिल*-अ० कसमसाते हुए; धक्कमधक्केके साथ । सजधज; शान; सितारका तार; डिल्ला; * तैयारी; आयो- ठिलिया-स्त्री० मिट्टीका छोटा घड़ा, गगरी। जन; जनसमूह, भीड़; वेशरचना; झुंड; अधिकता। ठिलुआ-वि० निठला, बेकार, जिसे कोई काम न हो। -बाट-पु० तड़क-भड़क । मु०-बदलना-भेष बदलना; ठिल्ली-स्त्री० दे० 'ठिलिया। बड़प्पन जताना।
ठिहारी*-वि० स्त्री० पक्की, स्थायी न टूटनेवाली। स्त्री० ठाटना-स० क्रि० ठाट करना; सजाना; आयोजन करना।। .निश्चय, ठहराव। ठाटर-पु० टट्टर; ठठरी; बाँसकी बनी कबूतरोंकी छतरी ठीक-वि० उपयुक्त युक्तिसंगत; यथार्थ; अच्छा; मनोनुकूल; * सजधज, सजावट।
उचित अभ्रांत; शुद्ध, सही; दुरुस्त; जमा चाहिये वैसा, ठाटी*-स्त्री० दे० 'ठट' ।
न ढीला, न कसा न कम, न ज्यादा न इधर, न उधर ठाठ-पु० दे० 'ठाट'।
नियत, बँधा हुआ; पूरा-पूरा । अ० सीधे मुनासिब ढंगसे, ठाठना*-स० कि० दे० 'ठाटना'।
उचित रीतिसे; हूबहू । पु० निश्चय; व्यवस्था, प्रबंध; ठाठर-पु० दे० 'ठाटर'।
जोड़, योग । -ठाक-पु० व्यवस्था, प्रबंध, बंदोबस्त । ठाढ़, ठाढ़ा*-वि० खड़ा; उन्नत; बिना टुकड़ा किया हुआ; वि० नियत; दुरुस्त ।।
रचित । मु० (ठाढ़ा)देना-टिकाना; ठहराना। ठीकड़ा-पु० दे० 'ठीकरा'।। ठाढ़ेश्वरी-पु० दिनरात खड़े रहनेवाले साधु ।
ठीकमठीक-अ० विलकुल ठीक; पूर्णरूपसे, एकदम, ठादर-पु० राड़, झगड़ा-'देव आपनो नहीं संभारत बिलकुल । करत इंद्रसों ठादर'-सू० ।।
ठीकरा-पु० मिट्टीके बरतन या खपड़ेका टुकड़ा; भिक्षापात्र ठान-स्त्री० ठाननेका भाव, करनेका हद निश्चयः हाव- | (ला०) रुपया-पैसा निकम्मी चीज ।
भावके साथ अंगसंचालन कार्यविशेषकी तैयारी कार्यारंभ। ठीकरी-स्त्री० छोटा ठीकरा; चिलमपर रखनेका मिट्टीका ठानना-स० क्रि० करनेका दृढ़ निश्चय करना; छेड़ना; तवा । कार्यविशेषको तत्परतासे प्रारंभ करना।
ठीका-पु० नियत समय अथवा दरपर कोई काम करने ठाना*-स० क्रि० दे० 'ठानना'; दे० 'ठयना'। __ या करानेका इकरार कर आदि वमूल करनेका जिम्मा ।
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