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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शासनिक विपर्यय - शिकरा तथा तुर्की के अधिकार में जो उपनिवेश या क्षेत्र थे, उनपर उनके स्वशासनयोग्य होनेतक शासन करनेका ब्रिटेन, फ्रांस आदिको राष्ट्रसंघ द्वारा दिया गया आदेश । शासनिक विपर्यय- पु० [सं०] (डेटा) शासन व्यवस्था में एकाएक एवं बलपूर्वक किया गया परिवर्तन; बलात् सत्तापद्दरण | ७७४ शाहंशाह - पु० शाहका शाह, सम्राट, राजाधिराज । शाहंशाही - स्त्री० शाहंशाह, राजाधिराजका पद या कार्य । शाह - पु० [फा०] स्वामी; राजा, बादशाह; मुसलमान फकीरोंकी पदवी; ताश और गंजीफेका एक पत्ता; शतरंजका एक मुहरा । ( कर्मधारय समासमें बड़ा, प्रधान, श्रेष्ठका अर्थ देता है - 'शाहकार', 'शाहरग' इ० ) -कारपु० किसी कलाकारकी सबसे अच्छी कृति । खर्चवि० शाहकी तरह, बहुत अधिक खर्च करनेवाला । - जादगी - स्त्री० शाहजादा होनेकी स्थिति, काल; शाहजादेकी किशोरावस्था । - जादा-पु० बादशाहका बेटा, राजकुमार । - तरा-पु० पितपापड़ा। दरा- पु० गाँव या बस्ती जो शाही महल या किलेके नीचे या सामने हो । - बंदर - पु० देशविशेषका प्रधान बंदरगाह । -रगस्त्री० गलेसे होकर जानेवाली बड़ी रग । -राह-स्त्री० राजमार्ग, चौड़ा और आम रास्ता । शासनीय - वि० [सं०] शासन या नियंत्रणके योग्य; दंड्य । शासित - वि० [सं०]जिसका शासन किया गया हो;दंडित । शासिता (तु) - वि० [सं०] शासन करनेवाला; दंड देनेवाला । शासिनिकाय - पु० [सं० ] ( गवर्निंग बॉडी ) ( किसी विद्यालय, चिकित्सालय आदिका ) प्रबंध या नियंत्रण करनेवाले व्यक्तियोंका समूह या मंडल । शास्ता (स्तु) - पु० [सं०] शासक; राजा; शिक्षक, गुरु । शास्ति - स्त्री० [सं०] शासन; आशा; दंड; राजदंड । शास्त्र - पु० [सं०] धर्म, दर्शन, विज्ञान, साहित्य, कला आदि-संबंधी ग्रंथ जिनके द्वारा मानव समाज तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रोंकी स्थिति और रक्षाकी प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से शिक्षा मिलती है; ज्ञानकी कोई शाखा । - कार - कृत - पु० शास्त्र-निर्माता; शास्त्रकर्ता ऋषि । - कोविद - वि० शास्त्रोंका विशेष ज्ञान रखनेवाला । - चक्षु - पु० व्याकरण जो शास्त्रोंके अध्ययन के लिए नेत्र (परम आवश्यक वस्तु) है । -चर्चा- स्त्री० शास्त्रका अध्ययन, मनन, अनुशीलन; शास्त्रपर विचार-विमर्श । - ज्ञ - वि०, पु० शास्त्रका जाननेवाला । -दर्शी (र्शिन् )पु० वह व्यक्ति जिसने शास्त्र देखा, सुना है, शास्त्रका जानकार, शास्त्रज्ञ । - प्रवक्ता, - वक्ता ( क्तृ ) - पु० शास्त्रोपदेशक; आचार, व्यवहार आदिके संबंध में शास्त्रपर दृष्टि रखते हुए निर्णय देनेवाला, घोषणा करनेवाला व्यक्ति । - वित्, -विद् - वि०, पु० शास्त्रज्ञ । - विधान - पु०, - विधि - स्त्री० आचार, व्यवहार-संबंधी शास्त्रोक्त आदेश, अनुशासन | - विमुख - वि० जो शास्त्राध्ययन न करता हो; शास्त्रोंसे जिसे चिढ़ हो । - विरुद्ध वि० जिसका विधान शास्त्र में न हो, अशास्त्रीय; अवैध । -विहितवि० शास्त्रानुमोदित, शास्त्र सम्मत । - संगत, -सम्मतवि० दे० 'शास्त्र-विहित' - सिद्ध - वि० शास्त्र द्वारा प्रमाणित; शास्त्रानुकूल । शाखाचरण - पु० [सं०] शास्त्रादेशका पालन; शास्त्रका शिकंजवीन - पु० दे० 'सिकंजबीन' । अध्ययन, मनन, अनुशीलन । शास्त्रानुमोदित - वि० [सं०] दे० 'शास्त्र विहित' । शास्त्रानुशीलन- पु० [सं०] शास्त्रका अध्ययन, मनन । शास्त्रार्थ - पु० [सं०] शास्त्रका अर्थ, तात्पर्य, अभिप्राय; नुमोदित; वैज्ञानिक | शास्त्रोक्त - वि० [सं०] शास्त्र द्वारा कथित; शास्त्र-विहित । शास्त्र - वि० [सं०] शासन-योग्य; शिक्षणीय; दंडनीय । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाहाना - वि० [फा०] बादशाह के लायक, राजसी, राजोचित; बहुत बढ़िया । पु० शहानी चूड़ियोंका जोड़ा । - जोड़ा - पु० दूल्हे को पहनाया जानेवाला सुर्ख जोड़ा; सुर्ख पोशाक । -मिज़ाज-पु० राजसी, नाजुक मिजाज । शाहिद- पु० [अ०] शहादत देनेवाला, गवाह | बि० सुंदर । शाही - वि० [फा०] बादशाहका; शाहाना | शिंगरफ-पु० ईंगुर । शिंगरफी - वि० इंगुर जैसा लाल । शिघाण- पु० [सं०] काँच, शीशेका पात्र; फेन, गाज; लौहमल, जंग; नासिकामल; कफ, श्लेष्मा | शिघाणक - पु० [सं०] नासिकामल; कफ, बलगम । शिंजन पु० [सं०] नुपूर आदिकी झनकार; मधुर ध्वनि, आवाज । शिंजित - वि० [सं०] झंकृत, झनझनाता हुआ, ध्वनि करता हुआ; बजता हुआ । शिजिनी - स्त्री० [सं०] प्रत्यंचा, धनुष्की डोरी; नूपुर । शिंबा, शिंबि, शिबिका, शिंबी - स्त्री० [सं०] छोमी; सेम | शिंशपा- स्त्री० [सं०] शीशमका पेड़; अशोकवृक्ष । शिशुपा* - स्त्री० दे० 'शिशपा' । शिंशुमार - पु० [सं०] दे० ' शिशुमार ' । वाद-विवाद (जो शास्त्र के अर्थ, ज्ञानके सहारे होता है) । शास्त्री (त्रिन्) - वि० [सं०] शास्त्रका जानकार, शास्त्रज्ञ । पु० वह व्यक्ति जिसने शास्त्रका पक्का ज्ञान कर लिया |शिकम-पु० [फा०] पेट । है, शास्त्रका पूर्ण अधिकारी, विद्वान्, पंडित; परीक्षा में उत्तीर्ण होनेपर प्राप्त होनेवाली एक उपाधि । शास्त्रीय - वि० [सं०] शास्त्र संबंधी; शास्त्र सम्मत, शास्त्रा शिकंजा - पु० [फा०] यंत्रणा देनेका यंत्र जिसमें पुराने जमाने में अपराधियों के हाथ-पाँव देकर दबा दिये जाते थे; एक यंत्र जिसमें जिल्दसाज किताबें दबाकर पन्ने काटते हैं; रूई दबाने की कल; कोल्हू; (ला० ) यंत्रणा; पकड़, दबाव । शिकन - स्त्री० [फा०] सिलवट, सिकुड़न । वि० (समास में ) तोड़नेवाला (बुतशिकन, दिलशिकन) । परवर - वि० पेट पालने वाला, पेटू शिकमी - वि० [फा०] पेटका; पैदाइशी; भीतरी (शिकमी शरीक) । पु० वह काश्तकार जो असल काश्तकार से जमीन लेकर जोते- बोये । शिकरम- स्त्री० एक तरहकी गाड़ी । शिकरा- पु० [फा०] एक शिकारी पक्षी जो बाजसे कुछ For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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