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विडंब-विदग्ध ब्राह्मण में विष्णुका बहुत कुछ अंश आ गया था, उनकी | चंदोवा। मूर्ति वहीं स्थापित है और विष्णुके प्रतीकके रूपमें पूजी | वितानना*-स० कि० शामियाना, तंबू आदि तानना; जाती है। -कवच-पु० एक प्रसिद्ध कवच ।
तानना, चढ़ाना (धनुष् आदि)-'जिन रघुनाथ पिनाक विडब-पु० [सं०] नकल, चिढ़ाना; हेय समझना; कष्ट वितान्यो तोरयो निमिष मही'-सू० । देना; खिन्न करना, कुदाना; छेड़खानी।
वितिक्रम*-पु० व्यतिक्रम, क्रमभंग । विडंबन-पु०, विडंबना-स्त्री० [सं०] नकल उतारना; वितीत*-वि० व्यतीत, बीता हुआ। चिढ़ाना; छेड़खानी करना; कष्ट देना; निंदा करना। वितुंड-पु० हाथी। निराश करना, छलना; उपहासका विषय; लज्जाकी बात । वितुष-वि०[सं०]जिसका छिलका निकाल दिया गया हो। विडंबनीय-वि० [सं०] नकल करने योग्य; उपहास्य । वितृष्ण-वि० [सं०] तृष्णारहित, उदासीन, निस्पृह । विडंबित-वि० [सं०] जिसकी नकल उतारी गयी हो, वितृष्णा-स्त्री० [सं०] तृष्णाका अभाव; संतुष्टिः विरक्ति । विकृत किया हुआ, जो परेशान किया गया हो; नीच; विस-वि० [सं०] प्राप्त । पु० धन-संपत्ति अधिकारी शक्ति दीन; धोखा खाया हुआ; निराश ।।
(फाइनेंस) किसी राज्य या संस्था आदिके आय-व्ययके विडंबी(विन्)-पु० [सं०] विडंबना करनेवाला। साधन, राज्यकी सार्वजनिक पूँजी या धन; राज्यकी वित्तविड-पु० [सं०] काला नमक; नोनहा नमक टुकड़ा। संबंधी व्यवस्था । -काम-वि० धनका इच्छुक; लोभी। विडरना*-अ० क्रि० चौंकना; डरना; भागना; तितर- -जाय-वि. विवाहित, जिसने पत्नी प्राप्त की है। -द बितर होना।
-वि० धन देनेवाला; सहायक । -नाथ-पु० कुबेर । विडराना*-स० कि० चौंकाना; भगाना; तितर-बितर -निचय-पु० धनकी बहुत बड़ी राशि । -प-वि० धन करना; नष्ट करना।
की रक्षा करनेवाला। पु० कुबेर । -पति,-पाल-पु० विडारना*-स० क्रि० दे० 'विडराना'।
कुबेर ।-प्रबंधक-पु० (फाइनैशियर) सरकारी आय या विडाल-पु० [सं०] दे० "बिडाल' ।
धनका प्रबंध करनेवाला अधिकारी । -मंत्री(विन)-पु० विडालाक्ष-वि० [सं०] दे० 'बिडालाक्ष।
(फाइनेंस मिनिस्टर) राज्यके धन, आय-व्ययके साधनों विडाली-स्त्री० [सं०] बिल्ली; बिदारीकंद ।
आदि-संबंधी विभागकी देख-रेख करनेवाला मंत्री ।-विधेविडोजा(जस), विडोजा (जस)-पु० [सं०] इंद्र। यक-पु० (फाइनेंस बिल) पु० संसद या विधानसभामें वितंडा-स्त्री० [सं०] अपने पक्षकी स्थापना; निरर्थक दलील, पुरःस्थापित किया जानेवाला आय-व्ययक-संबंधी विधेयक ।
हुज्जत । -वाद-पु० निरर्थक दलीलका सहारा लेना। -साधन-पु० (फाइनेंसेज़) राज्य या संस्था आदिके धन वितंत*-पु० बिना तारका बाजा।।
प्राप्त करनेके जरिये। वित*-वि० कुशल; जानकार, वेत्ता । पु० धन; शक्ति। वित्तवान् (वत्)-वि० [सं०] धनवान् । वितत-वि० [सं०] विस्तृत, चौड़ा; फैला हुआ; खींचा वित्तागम-पु० [सं०] धनकी प्राप्ति या प्राप्तिका साधन ।
हुआ (धनुष का गुण); झुकाया हुआ (धनुष )। वित्ताव्य-बि० [सं०] बहुत धनी । वितताना*-अ० कि० अधीर होना, बेचैन होना । वित्ताप्ति-स्त्री० [सं०] धनकी प्राप्ति । वितति-स्त्री० [सं०] विस्तार, फैलाव; आतिशय्य । वित्तीय-वि० [सं०] वित्त संबंधी; वित्तकी व्यवस्थाके वितथ-वि० [सं०] मिध्या; व्यर्थ, निरर्थक ।
विचारसे चलनेवाला (वर्ष)। वितन*-वि०, पु० दे० 'वितनु' ।
वित्तेश, वित्तेश्वर-पु० [सं०] कुबेर । वितनु-वि० [सं०] अति सूक्ष्म शरीररहित; सारहीन । वित्तेहा, वित्तैषगा-सी० [सं०] धनकी इच्छा, लालच । पु० कामदेव ।
विग्रप-वि० [सं०] बेहया, निर्लज्ज । वितपन्न*-वि० व्युत्पन्न, कुशल, प्रवीण विकल । वित्रस्त-वि० [सं०] डरा हुआ, भीत । वितरक-पु० वितरण करने, बाँटनेवाला।
विथकना*-अ० क्रि० थकना, शिथिल पड़ना; मुग्ध या वितरण-पु० [सं०] अर्पित करना, देना; बाँटना।
चकित होनेपर कुछ बोल न सकना। वितरन*-पु० बाँटना; बाँटनेवाला ।
विथकित*-वि० थका हुआ, जो मुग्ध या चकित होनेके वितरना*-स० क्रि० वितरण करना, बाँटना।
कारण कुछ बोलने में असमर्थ हो। वितरिक्त*-अ० व्यतिरिक्त, सिवा ।
विथराना, विथारना*-सक्रि० फैलाना, छितराना । वितरित-वि० [सं०] बाँटा हुआ।
विथा-स्त्री० व्यथा, पीड़ा, कष्ट । वितरेक-अ० व्यतिरिक्त, सिवा । पु० दे० 'व्यतिरेक' । विथित*-वि० व्यथित, दुःखित, कष्ट में पड़ा हुआ । धितर्क-पु० [सं०] विचार; संदेह; संदेहका विषय; अनु- विथुर-पु० [सं०] क्षय, नाश; चोर । वि० थोड़ा; दुःखी । मान; किसी तर्कके विरुद्ध कही गयी बात या पेश की गयी | विथुरा-स्त्री० [सं०] पतिवियोगिनी, विरहिणी; विधवा । दलील; एक अर्थालंकार ।
विदंत-वि० [सं०] दंतहीन (हस्ती)। वितल-पु० [सं०] सात अधोलोकों में से एक ।
विदग्ध-वि० [सं०] निपुण; पंडित; रसिक, रसश; जला वितस्ता-स्त्री० [सं०] झेलम नदी ।
हुआ, जठराग्निसे पका हुआ, पचा हुआ; नष्ट, गला विताडन-पु० [सं०] दे० 'ताडन'।
हुआ; जो जला या पचा न हो; सुंदर, भद्रतापूर्ण । पु० वितान-पु० [सं०] फैलाव, विस्तार, प्राचुर्य; यश तंबू चतुर या धूर्त आदमी; एक घास ।
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