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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गें उड़ा-गो २१८ गें उड़ा-पु० दे० 'गाइड़ा। गैब-पु० [अ०] छिपा होना, दृष्टिगोचर न होना; परोक्ष । गेंडा-पु० ईखके ऊपरके हरे पत्ते; गैड़ा। गैबर*-पु० श्रेष्ठ हाथी। गे दुआ(वा)*-पु० तकिया बड़ा गेंद। गैबी-वि० [अ०] ईश्वरीय गुप्त; अज्ञातअशय गेंडरी (ली)-स्त्री० इंडुरी; कुंडली। गैयर*-पु० बड़ा हाथी, गजवर । गेंद-पु० कपड़े, रबर, काठ, कार्क आदिका बना गोला गैया*-स्त्री० गाय । जिससे लड़के खेलते हैं, कंदुका टोपी बनाने या पगड़ी गैर-स्त्री० अंधेर; अन्यायपूर्ण बर्ताव; * गैल; निंदा । बाँधनेका कलबूत; तारकी जालियोंका बना गोला जिसमें गैर-वि० [अ०] दूसरा, अन्य; भिन्न, बदला हुआ (हालत दिया रखकर जलाते हैं। -घर-पु. क्रिकेट या टेनिस गैर होना); वेगाना, पराया। -आबाद-वि० जो आदि खेलनेका स्थान (बिलियर्ड-रूम)। -बल्ला-पु० आबाद न हो, उजाड़ परती (जमीन)। -इनसाफ़ीगेंद और बल्ला, क्रिकेट खेलनेकी सामग्री क्रिकेटका खेल । स्त्री० नाइंसाफी, अन्याय । -जरूरी-वि० अनावश्यक । -बाज़-पु० ( बोलर ) गेंदबल्ले (क्रिकेट )के खेलमें वह -ज़िम्मेदार-वि० (अपनी) जिम्मेदारी न समझनेवाला, व्यक्ति जो बल्लेबाजके सामने गेंद फेंकनेका काम करे। दायित्वहीन; जिसका भरोसा न किया जा सके। -मन-बाज़ी-स्त्री० (बोलिंग) क्रिकेटके खेल में ( बल्लेबाजकी कूला-वि० अचल, स्थावर (संपत्ति)। -मामूली-वि० तरफ) गेंद फेंकनेकी क्रिया, गोलंदाजी। असाधारण ।-मिसिल*-वि० अनुचित, अयोग्य (स्थानगँदई-वि० गेंदेके फूल जैसे रंगका, जर्द । में)। -मुकम्मल-वि० अधूरा, अपूर्ण । -मुनासिबगेदवा* -पु० दे० 'गें दुआ'। वि० अनुचित, जो मुनासिब न हो। -मुमकिन-वि० गैंदा-पु० एक पौधा; उसका फूल जो पीले रंगका होता असंभवः अशक्य । -मुल्की-वि० विदेशी। -मुस्त है; एक आतिशबाजी; एक गहना; + गेंद, कंदुक । किल-वि० अस्थिर; अस्थायी। -मुस्तरका-वि० बिना गँदुआ(वा)-पु० गोल तकिया, उसीसा। साझेका, एकजाई; जो एककी ही संपत्ति हो।-मौरूसीगेटिस-पु० मोजा बाँधनेका फीता । वि० जो बपौती न हो; जिसपर या जिसे मौरूसी हक गेड़ना-स० क्रि० लकीरसे घेरना । अ० क्रि० चारों ओर हासिल न हो। -वाजिब-वि० जो वाजिब, मुनासिब फिरना। न हो, अनुचित । -सरकारी-वि० जो सरकारी न हो। गेय-वि० [सं०] गाने लायक, जो गाया जा सके। -हाज़िर-वि० अनुपस्थित, जो हाजिर, मौजूद न हो। गेरना*-स० क्रि० गिराना; उँडेलना; डालना; आरोप -हाज़िरी-स्त्री० अनुपस्थिति, नागा । करना । अ० क्रि० चारों ओर फिरना। गरत-स्त्री० [अ०] लज्जा, हया आन । गेराँवा-पु० चौपायोंके बंधनका वह भाग जो गले में | गैरिक-पु० [सं०] गेरू सोना । वि० पहाड़से उत्पन्न । रहता है। गरीयत-स्त्री० [अ०] गैर होना, बेगानगी, पराथापन । गेरुआ-वि० गेरूके रंगका; गेरूमें रँगा हुआ, जोगिया। गैरेय-वि० [सं०] गिरिसे या गिरिपर उत्पन्न, पहाड़ी। पु० गेरूके रंगका एक कीड़ा, गहूँके पौधोंका एक रोग। पु० गेरू; शिलाजतु । -बाना-पु० गेरुआ वस्त्र, संन्यासियोंका जोगिया | गैल-स्त्री० रास्ता; गली । पहनावा। गैस-स्त्री० [अं॰] वायुरूप सूक्ष्म और चाहे जितना फैल गेरुई।-स्त्री० गेहूँ, जी आदिकी फसलका एक रोग जिसमें | सकनेवाला द्रव्य । उनके पत्ते लालसे हो जाते हैं । गाँठा-पु० उपला। गेरू-स्त्री॰खानोंसे निकलनेवाली एक तरहकी लाल मिट्टी। गाँइडा-पु० गाँवके पासका स्थान । गेली-स्त्री० [अ०] कालमकी नापकी लोहे या लकड़ीकी गाँठ-स्त्री० धोतीकी लपेट, मुरीं । बनी छिछली किश्ती जिसपर कंपोज किया हुआ मैटर | गाँठना-स० कि० रेखासे घेरना; गुझिया आदिकी कोर कालम पेज आदि बनानेके लिए रखते हैं। मोड़ना नोक या कोर भोथरा कर देना । गेह-पु० [सं०] घर, मकान | -पति-पु० गृहपति । | गाँठनी-स्त्री० गुझियाकी कोर बनानेका औजार । गेहनी*-स्त्री० दे० 'गहिनी'। गौंड-पु० एक असभ्य जाति; पानी भरने आदिका काम गहिनी-स्त्री० सं०] गृहिणी, गृहस्वामिनी । करनेवाली एक जाति । गेही(हिन्)-वि०, पु० [सं०] घरवाला, घर-बारवाला। गौंडा-पु० चहारदीवारीसे घिरा हुआ स्थान, बाड़ा। गेहअन-पु० गेहूँके रंगका एक जहरीला साँप । गोंडी-स्त्री० मध्यभारतकी एक बोली । गेहुआँ-वि० गेहूँके रंगका, गंदुमी।। गौंद-पु० पेड़का लसदार पसेव जो सूख गया हो, निर्यास । गेहूँ-पु० एक अन्न जिसकी फसल चैतमें कटती है। * स्त्री० एक वृक्ष, गोंदी। -दानी-स्त्री० भिंगोया हुआ गैंडा-पु० भैसेकी शकलका विशालकाय जंतु जिसकी गोंद रखनेका बरतन ।-पंजीरी-स्त्री० प्रसूताको खिलायी नाकपर एक या दो साँग होते हैं। जानेवाली वह पंजीरी जिसमें गोंद मिला रहता है। गती-स्त्री० मिट्टी खोदनेका एक औजार । गौंदरी-स्त्री० एक जलीय पौधा जिसकी चटाई बनती है। गैन*-पु० रास्ता, गैल; गमन-'सुख पायो तो बिरमियो, पयालकी चटाई। नहिं करि जैयो गैन'-चाचा हित०, गगन; गयंद । गोंदला-पु० बड़ा नागरमोथा; एक तृण । गैनी*-वि० स्त्री० गामिनी । | गो-स्त्री० [सं०] गाय, गऊ; ढोर, पशुः रश्मि, किरण; For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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