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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१९ इंद्रिय; वाणी, सरस्वती; आँख; वृष राशि; धरती; माता; दिशा; जीभ | पु० बैल; आकाश; सूर्य; चंद्रमा; बाण; जल; स्वर्ग; वज्र; हीरा; शब्दः ९का अंक; रोम; गायक; गोमेधयज्ञ | - कंटक - पु० गायका खुर; गायके खुरका निशान; गोखरू । - कन्या * - स्त्री० कामधेनु । - कर्ण - वि० गायके जैसे कानोंवाला । पु० खच्चर; मलाबार में स्थित शैवोंका एक तीर्थ; वहाँ स्थापित शिवकी मूर्ति । -कुल- पु० गायोंका झुंड, गोशाला, गोठ; वृंदावन के पासका एक गाँव जो नंदका वासस्थान था और जहाँ कृष्ण तथा बलरामका पालन-पोषण हुआ । ० नाथ, पति-पु० कृष्ण । -कृत- पु०गोबर । - कोस- पु० [हिं०] उतनी दूरी जहाँतक गायकी आवाज सुनाई दे । -क्षीर-पु० गायका दूध । - क्षुर, - क्षुरक- पु० गायका खुर; गोखरू । - खग* - पु० थलचर प्राणी, पशु । - खुर-पु० गायका खुर; गायके खुरका निशान । -गृह- पु० गोठ, गोशाला । -ग्रासपु० भोजनका वह भाग जो गायके लिए अलग कर दिया जाता है; गायकी तरह मुँ इसे उठाकर बिना चत्राये भोजन करना । - घातक, -घाती (तिन) - वि० गोवध करनेवाला पु० कसाई | -घ्न- वि० गोवध करनेवाला; जिसके लिए गोवध किया जाय, अतिथि। -चर- वि० इंद्रिय द्वारा जानने योग्य, इंद्रियग्राह्य । पु० इंद्रियका विषय (रूप, रसादि); इंद्रियग्राह्य वस्तु; साक्षात्कार; चरागाह । -- चारक, - चारी (रिन्) - पु० गायें चरानेवाला, ग्वाला । - चारण-पु० गायें चराना। -जाति- स्त्री० गोवंशः सारी दुनिया के गाय-बैल, गोसमष्टि । - तीर्थ - पु० गोशाला, गोठ । - दान-पु० गायका दान; विवाह के पहलेका एक संस्कार, केशांत । - दारण- पु० हल; कुदाल | - दुट् (ह् ), - दुह - पु० गाय दुहनेवाला, ग्वाला । - दोहन - पु० गाय दुहना; गाय दुहनेका समय । - दोहनी - स्त्री० दूध दुहनेका बरतन । -धन- पु० गायों, गाय-बैलोंका समूह; गाय-बैल रूप धन; * गोवर्द्धन पर्वत । - धूलि, - धूली- स्त्री० गायोंके चरकर लौटने का समय, संध्या वेला । -प-पु० गोपालक; ग्वाला, अहीर; गोष्ठका अध्यक्ष; रक्षक; राजा; प्राचीन हिंदू राजव्यवस्था में गाँवकी सीमा, आबादी, खेती-बारी, कय-विक्रय, आदिका लेखा रखनेवाला कर्मचारी । - प कन्या - स्त्री० गोपकुमारी; ग्वालिन, गोपी । -प-वधू, स्त्री० गोप-पत्नी; गोपी । - पति-पु० गायोंका मालिक, गोस्वामी; साँड़; ग्वाला; राजा; कृष्ण; शिव; विष्णु; सूर्य । - पद - पु० गायके खुरका निशान या उससे बना गढ़ा; चरागाह | -पदी* - वि० गोपदके जितना छोटा ।-पास्त्री० गोप स्त्री, ग्लालिन; श्यामा लता; बुद्धकी पत्नी, यशोधरा । - पाल- वि० गोपालक; ग्वाला, अहीर; राजा; कृष्ण; शिव । - पी - स्त्री० गोपवधू, ग्वालिन । - पी चंदन - पु० एक तरहकी पीली मिट्टी जिसका वैष्णव तिलक लगाते हैं । - पीता* - स्त्री० गोपी। -पुच्छ - पु० गायकी पूँछ; एक तरहका बंदर; एक तरहका हार -पुरपु० नगरद्वार, शहरका फाटक; मद्दल या मंदिरका मुख्य द्वार; तोरण । - फन-पु० [हिं० ] ढेलवाँस । -बरपु० [हिं० ] दे० क्रममें । - भुक् ( ज् ) - पु० राजा । | गो-गोजर पु० - भृत् - पु० पहाड़ | मर* - पु० गोधातक, कसाई । - मल - पु० गोवर । - मांस-पु० गाय-बैलका मांस । - माता (तृ) - स्त्री० मातृस्थानीय गोजाति, गायरूपी माता । - मुख - वि० गायकेसे मुखवाला । पु० एक तरहका शंख; नरसिंहा; नाक, घड़ियाल, गोमुखी । -मुखी - स्त्री० जपमाला रखनेकी गोमुखके आकारकी थैली । - मूत्र - पु० गायका मूत्र । - मेद-पु० एक रत्न । - मेदक - पु० गोमेद । - मेघ - पु० कलियुगके लिए निषिद्ध एक वैदिक यज्ञ जिसमें गोबलिका विधान है । - यान- पु० बहली, बैलगाड़ी । - रक्षिणी - वि० स्त्री० गोरक्षा करनेवाली, गोरक्षा के लिए स्थापित (सभा) । -रज(स) - ५० गायके खुरोंसे उड़ी हुई धूलि । -रस - पु० दूध; दही; मठा; इंद्रियसुख । रोचन - पु० एक सुगंधित पदार्थ । - रोचना - स्त्री० गोरोचन । - लोक- पु० वैकुंठ । - लोकवास - पु०स्वर्गवास, मृत्यु । - लोकेश - पु०कृष्ण । - लोचन - ५० दे० 'गोरोचन' । - वत्स - पु० बछड़ा । - वध - पु० गायकी हत्या करना, गावकुशी । -वर्धनपु० वृंदावनका एक पहाड़ जिसे पुराणोंके अनुसार इंद्रके कोपले व्रजभूमिकी रक्षा करनेके लिए भगवान् ने अपनी उँगली पर उठा लिया था। - वर्धनधर, - वर्धनधारी (रिन् ) - पु० कृष्ण । - विंदु - पु० गोपालकः कृष्ण - शाला - स्त्री० गायोंके रहनेका स्थान, बाड़ा, गोष्ठ । -ष्ठ - पु० गोशाला, गोठ, पशु-शाला; अहीरोंका गाँव; गोष्ठी । - ष्ठ- पति-पु०गोष्ठका अध्यक्षः ग्वालोंका सरदार | - ष्ठी - स्त्री० सभा, मंडली, समाज वार्तालाप; समूह; पारिवारिक संबंध; नाटकका एक भेद जिसमें एक ही अंक होता है । - साँई - पु० [हिं० ] गोस्वामी; ईश्वर; गृहस्थ शैव साधुओंका एक संप्रदाय । वि० मालिक; श्रेष्ठ । - सुत - पु० बछड़ा । - सैयाँ - पु० मालिक, स्वामी । - स्वामी (मिन्) - पु०गायका मालिक; गायें रखनेवाला; जितेंद्रिय; वल्लभकुल, निंबार्क संप्रदाय और मध्व-संप्रदाय के आचार्यों की पदवी - हत्या - स्त्री० गोवध । गो- अ० [फा०] यद्यपि, अगरचे । -कि-अ० यद्यपि । गोइँठा-पु० उपला । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोइँड़ (डा ) + - पु० गाँव के पासकी जमीन जो अधिक उपजाऊ होती है । : गोइंदा - पु० दे० 'गोयंदा ' | गोइ* - पु० गेंद | गोइयाँ- पु०, स्त्री० दे० 'गुइयाँ' | गोई* - स्त्री० सखी, गोइयाँ । गोऊ* - पु० चुरानेवाला, गोपन करनेवाला । गोखरू - पु० एक क्षुप; उसका कँटीला फल जो दवाके काम आता है; गोखरू के आकार के लोहे आदिके बने कँटीले टुकड़े; गोटे; पाँवमें पहननेका एक गहना; तलवे या हथेली में पड़ा हुआ घट्टा । गोखा + - पु० झरोखा, गवाक्ष; ताक । गोचना - पु०, गोचनी - स्त्री० चना मिला हुआ गेहूँ । गोज़ - पु० [फा०] अपान वायु । गोजई - स्त्री० जौ मिला हुआ गेहूँ । गोजर* - पु० कनखजूरा | For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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