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गोजी-गोपिका
२२० गोजी-स्त्री० लाठी, डंडा ।
गोत्र-पु० [सं०] कुल, वंश; गोत्रप्रवर्तक माने हुए ऋषियोंगोझा-पु० गुझिया; गुज्झा।
की संतानपरंपरा; आदि-पुरुषके नामसे प्राप्त वंशस शा; गोट-स्त्री० कपड़ेकी दुहरी पट्टी जो सुंदरताके लिए कपड़ोंके समूह, संघ; पर्वत क्षेत्र । -कर्ता(त),-कार-पु० गोत्रकिनारे लगाते हैं, मगजी, संजाफ; किनारी; चौसर, प्रवर्तक । -ज-वि० एक ही गोत्रका, गोती।-प्रवर्तकपचीसी आदि खेलनेकी लकड़ी आदिकी बनी गोटी, नर्द; पु० गोत्र चलानेवाला, गोत्रकार । -भिद-पु० इंद्र । मंडली; नगरके बाहरकी वह सैर जिसमें खाना-पीना भी -सुता-स्त्री० पार्वती। हो; गोष्ठी । पु० गाँव तोपका गोला ।
गोत्री(विन्)-वि० [सं०] एक ही गोत्र में उत्पन्न, गोती। गोटा-पु० सुनहले या रुपहले और रेशमके तारोंको मिला- गोत्रीय-वि० [सं०] गोत्रवाला (अमुक) गोत्रमें उत्पन्न । कर बुना फीता, पट्टा; लचका; छोटे टुकड़ोंमें कतरी हुई गोद-स्त्री० कोड़, पहलू ; आँचल । -नशी-वि० गोद गिरी, सुपारी, बादाम, इलायची आदि जो पानके बदले लिया हुआ, दत्तक ।-नशीनी-स्त्री० गोद लिया जाना। खायी जाती है। धनियाकी गिरी; सूखा हुआ मल, कंडी; मु०-का-गोदमें खेलनेवाला; छोटा (बच्चा)। -देनागोला-'ओ ज्यों छुटहिं बज्र कर गोटा'-५०।
अपना लड़का दत्तक बनानेके लिए दूसरेको देना। गोटी-स्त्री० गोट, नर्द, कंकड़ या पत्थर, खपड़े आदिके -बिठाना-गोद लेना, दत्तक लेना। -भरना-शुभ छोटे टुकड़े जिनसे लड़के कई तरहके खेल खेलते हैं; अवसरोंपर सौभाग्यवती स्त्रीके आँचलमें नारियल आदि गोटियोंकी सहायतासे पत्थर आदिपर कोष्ठक बनाकर डालना संतान होना। -लेना-किसी लड़केको दत्तक खेला जानेवाला खेल; युक्ति, उपायः प्राप्तिका डौल । बनाना। मु०-जमना-बैठना-युक्ति सफल होना प्राप्तिका डौल | गोदनहारी-स्त्री० गोदना गोदनेवाली स्त्री । बनना। -मरना-किसी.गोटीका मृत मान लिया जाना, गोदना-स० क्रि० चुभाना, गड़ाना; ताना मारना; अंकुश खेलमें काम न आ सकना । -लाल होना-चौसर या देना; बदनमें सुई चुभोकर और सूराख में नीलका पानी पचीसीकी गोटीका सब खानों में फिरकर उठ जाना; काम आदि भरकर सुंदरताके लिए बिंदी, फूल आदि बनाना । बनना लाभ होना।
पु० सुई चुभाकर बदनपर बनायी हुई बिदी आदि खेत गोठ*-पु० गोष्ठ, गोशाला; गोष्ठी-श्राद्ध; गोष्ठी सैर-सपाटा। गोड़नेका औजार । गोठा*-पु० सलाह ।
गोदनी-स्त्री० गोदना गोदनेकी सुई टीका लगानेकी सुई । गोड़ -पु० पावँ, पैर ।-गाव-पु० वह रस्सी जो पिछाड़ी-गोदा-पु. बड़, पीपल या पाकड़का पका फल; नयी डाल । वाली रस्सीके साथ लगाकर धोड़ेके पिछले पैरों में फंसायी गोदाम-पु० (तिजारती) माल रखनेका स्थान । जाती है ।-बाँस-स्त्री० पशुके पैर में बाँधनेकी रस्सी । | गोदी-स्त्री० दे० 'गोद' । मु०-भरना-पामें महावर लगाना। -लगना-पावँ छूना।
गोधा-स्त्री० [सं०] गोह धनुषके चिल्लेकी चोटसे बचनेके गोड़इता-पु० गाँवका चौकीदार ।
लिए बायीं कलाई पर बाँधनेका चमड़ा, घड़ियाल । गोड़ना-स० क्रि० मिट्टीको नरम और भुरभुरी करनेके | गोधिका-स्त्री० [सं०] छिपकली; घड़ियालकी मादा। लिए कुदाल आदिसे खोदना, कोड़ना; खोदना । गोधूम-पु० [सं०] गेहूँ। -चूर्ण-पु० आटा । गोड़वाना-स० कि० 'गोड़ना'का प्रेरणार्थक ।
गोन-स्त्री० बैलपर अनाज आदि लादनेका दोनों ओर गोड़ा -पु० चारपाई आदिका पाया; घोड़िया; थाला। लटकनेवाला थैला, गोनी, बोरा; अनाजकी एक तौल; गोड़ाई-स्त्री० गोड़नेकी क्रिया; गोड़नेकी मजदूरी। नाव खींचनेक लिए नावके मस्सूलमें बँधी हुई रस्सी । गोड़ाना-स० क्रि० 'गोड़ना'का प्रेरणार्थक ।
गोना*-स० क्रि० छिपाना, गोपन करना । गोड़ापाई।-स्त्री० बार-बार आना-जाना ।
गोनिया-पु० बैल लादनेवाला; बोरे ढोनेवाला; रस्सी गोड़िया-स्त्री० छोटा पैर या पाया । वि० युक्ति भिड़ाने- | बाँधकर नाव खींचनेवाला । स्त्री० दीवार आदिकी सीध वाला।
नापनेका एक औजार । गोत-पु० वंश, गोत्र; समूह ।
गोनी-स्त्री० टाटका थैला, बोरा; पाट, सन । गोतम-पु० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि, अहल्याके पति; गोप*-पु० गोपन, छिपाना; दे० 'गो'के साथ । स्त्री०
न्यायशास्त्रके प्रवर्तक गौतम मुनि । -पुत्र-पु० शतानंद। गलेका एक आभूषण । गोतमी-स्त्री० [सं०] गोतम-पत्नी अहल्या।
गोपन-पु० [सं०] छिपाना, छिपाव; भर्त्सना, निंदा गोता-पु० [अ०] पानीमें डूबना, डुबकी। -ख़ोर-पु० संरक्षण । -शपथ-स्त्री० (ओथ ऑफ सीक्रेसी) मंत्रियों डुबकी लगानेवाला; कुएँसे गिरी हुई चीजें निकालनेवाला। आदि द्वारा सरकारकी गोपनीय बातें प्रकट न करनेके -मार-पु० समुद्रसे सीप, मोती आदि निकालनेवाला, संबंधमें पदग्रहणके समय ली जानेवाली शपथ । पनडुब्बा; पनडुब्बी नौका; गोताखोर । मु०-खाना- गोपना-स्त्री० [सं०] रक्षण; दीप्ति । * स० क्रि० छिपाना। ड्रबना; धोखा खाना। -देना-डुबकी देना, दुबोना; | गोपनीय-वि० [सं०] छिपाने लायक; रक्षणीय । धोखा देना। -मारना-डुबकी लगाना; नागा करना । गोपांगना-स्त्री० [सं०] ग्वालिन; गोपवधू । गोतिया, गोती-वि० अपने गोत्रवाला, गोत्रज । गोपाष्टमी-स्त्री० [सं०] कात्तिक शुक्ला अष्टमी। गोतीत*-वि० अगोचर, जो इंद्रियग्राह्य न हो।
गोपिका-स्त्री० [सं०] ग्वालिन; गोपवधू ।
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