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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८३ धावक - पु० [सं०] धोवी; दूत, हरकारा । धावन - पु० [सं०] दौड़ना; हमला करना; धोना; शुद्ध करना; वह वस्तु जिससे कोई चीज साफ की जाय; दूत, हरकारा; (रन) (क्रिकेटमें) गेंदपर प्रहार करनेके बाद बल्लेबाज तथा उसके साथीका एक ओरके यष्टित्रय से दूसरी ओरके यष्टित्रयतक, बिना बहिर्गत (आउट) हुए दौड़ लगानेकी क्रिया; इस प्रकार लगायी गयी दौड़की क्रमसंख्या । -मार्ग - पु० ( रनवे) दे० 'अवतरणपथ' । -स्थली - स्त्री० (पिच) क्रिकेट में दोनों ओर के यष्टित्रयोंके वीचकी भूमि जिसपर, गेंद पर प्रहार करनेके बाद, बल्लेबाज तथा उसका सहयोगी धावन करनेका उपक्रम करते हैं । धावना * - अ० क्रि० तेजीसे चलना, दौड़ना । धावनि* - स्त्री० तेजीसे चलने या दौड़नेकी क्रिया, धावा । धावर - वि० धवल, सफेद । धावरी* - स्त्री० धौरी, श्वेत वर्णकी गाय । वि० स्त्री० धौरी । धावल्य- पु० [सं०] श्वेतता, सफेदी | धावा - पु० किसीको जीतने, लूटने आदि के लिए बहुतसे लोगोंका एक साथ दौड़ पड़ना, चढ़ाई, हमला; दौड़कर जाना । मु० - करना - आक्रमण करना, चढ़ाई करना । - बोलना - अफसरका फौजको हमला करनेका हुक्म देना; हमला करना । - मारना- दूरतक चढ़ाई करना । धावित - वि० [सं०] दौड़ा हुआ; दौड़ता हुआ; मार्जित । धाह - * स्त्री० धाड़, चिल्लाकर रोना, विलाप, + आगकी गर्मीीं । धाही - * स्त्री० धाय; + आगकी गरमी; छाया । धिंग* - स्त्री० धींगाधींगी, उपद्रव, शरारत । धिंगाई * - स्त्री० ऊधम, उपद्रव, शैतानी, कुटिलता, खोटाई । धिंगावंगी - स्त्री० दे० 'घाँगाधीँगी' । धिआ + - स्त्री० बेटी, पुत्री; बालिका । धिआन* - पु० दे० 'ध्यान' | धिआना * - स० क्रि० दे० 'ध्याना' | धिक - अ० दे० 'धिक्' । धिकना * - अ० क्रि० तपना, गरम होना । धिकाना+सु० क्रि० गरम करना, तपाना । धिक - अ० [सं०] भर्त्सना, निंदा और घृणाके अर्थ में प्रयुक्त होनेवाला एक शब्द - कार - पु० 'धिक्' कहकर की गयी भर्त्सना, निंदा या घृणा । -कृत-वि० जिसकी भर्त्सना, लानत-मलामत की गयी हो । धिक्कारना - स० क्रि० अनुचित बात के लिए किसीके प्रति निंदा और घृणासूचक शब्दों का प्रयोग करना, लानतमलामत करना । धिग * - अ० दे० 'धिक्' । धिय* - स्त्री० बेटी, पुत्री; बालिका । धिया - स्त्री० पुत्री, कन्या । धिरयना * - स० क्रि० दे० 'धिरवना' - 'सूर नंद बलराम हिं धिरयो, सुनि मन हरष कन्हैया' - सू० । धिरवना* - सु० क्रि० धमकी देना, धमकाना; डाँटना । धिराना * - स० क्रि० धमकाना, डराना । अ० क्रि० धीमा होना; कम होना, घटना; धैर्य धारण करना । धींग - पु० दे० 'धीँगरा' । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धावक-धुधर धींगड़ा -५० दे० 'घाँगरा' । धींगरा - पु० हृष्ट-पुष्ट मनुष्य; गुंडा, बदमाश । वि० दुष्ट, खल, पाजी । धींगा - वि० दुष्ट, पाजी । धीँगी, मुश्ती - स्त्री० शरा -- रत, दुष्टता । धी-स्त्री० बेटी, लड़की; [सं०] बुद्धि, प्रज्ञा; समझ; ज्ञान । धीआ-स्त्री० बेटी, लड़की । धीजना* - स० क्रि० विश्वास करना - 'उज्जल देखि न धीजिये, बग ज्यों माँडे ध्यान' -साखी; स्वीकार करना । अ० क्रि० धैर्य धरना; संतुष्ट होना । धीम* - वि० दे० ' धीमा' | धीमर - पु० दे० 'धीवर' । धीमा - वि० कम वेगवाला, कम गतिवाला, मंद, मंथर; प्रखरता या तीव्रता से रहित, प्रचंडका उलटा; (स्वर) जो उच्च या तीव्र न हो, दबा हुआ; जो बढ़तीपर न हो । धीमान् ( मत्) - वि० [सं०] बुद्धिमान्, प्रशावान् । धीय, धीया - स्त्री० बेटी, लड़की । धीर - वि० [सं०] जो जल्दी विचलित न हो, धैर्ययुक्त, स्थिरचित्त; ; गंभीर; उत्साही; नम्र, विनीत । ५० * धैर्य, धीरज, चित्तकी दृढ़ता; संतोष । - चेता (तस् ) - वि० ढ़, स्थिरचित्त । -प्रशांत-शांत-पु० वह नायक जो वीर और शांत हो। -ललित - पु० वह नायक जो धीर और वीर होने के साथ ही क्रीड़ाप्रिय और चिंतारहित हो । For Private and Personal Use Only धीरक* - पु० धीरज, धैर्य । धीरज * - ५० दे० 'धैर्य' । -मान- वि० धैर्यवान् । धीरता - स्त्री०, धीरत्व- पु० [सं०] धीर होने का भाव या गुण; चित्तको अविचलता; धैर्य; गंभीरता; संतोष, सब । धीरा - स्त्री० [सं०] व्यंग्य द्वारा कोप प्रकट करनेवाली नायिका (सा० ); काकोली; मालकँगनी । धीराधीरा - स्त्री० [सं०] रुदन और मुखकी मुद्रा द्वारा . कोप प्रकट करनेवाली नायिका (सा० ) । धीरे- अ० मंद गतिसे; मंद स्वर से; चुपके । धीरोदात्त - पु० [सं०] आत्मश्लाघासे रहित, क्षमाशील, धीर, विनम्र और व्रत नायक- जैसे रामचंद्र, युधिष्ठिर । धीरोद्धत - पु० [सं०] क्रोधी, चपल, अहंकारी और विक त्थन नायक (सा० ) । · धीवर - पु० [सं०] मछुआ, मल्लाह; लोहा । धुआँ- पु० दे० ‘धुआँ' । धुँआरा - वि० धूमिल, जो धुएँ से मैला हो गया हो । धुँगार-स्त्री० बधार, छौंक घुँगारना - स० क्रि० बघारना, छौंकना । धुंज - वि० अस्पष्ट, धुँधला; मंद ज्योतिवाला । धुंद - स्त्री० दे० 'धुंध' । धुंध - स्त्री० आकाश में बहुत अधिक गर्द छा जानेसे होनेवाला अँधेरा आँखका एक रोग जिसमें ज्योति मंद पड़ जानेसे चारों ओर धुंध जैसा दिखाई देता है । धुंधकार - पु० अंधकार; गर्जन । धुंधर, धुंधरि* - स्त्री० गर्द; धुएँ, धूल आदिके कारण होनेवाला अंधकार |
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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