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सौभिक्ष्य-स्खलित . किस्मत ।
होनेवाला । पु० सोंचर नमक; सर्जिकाक्षार । सौभिक्ष्य-पु० [सं०] सुकाल, सुभिक्ष ।
सौवर्चस-वि० [सं०] चमकदार, कांतिमान् । सौम-वि० दे० 'सौम्य' ।
सौवर्ण-वि० [सं०] सुवर्णका, स्वर्ण-निर्मित । पु० सोना । सोमन-पु० [सं०] एक दिव्यास्त्र ।
सौवर्णिक-पु० [सं०] सुनार । सीमनस-वि० [सं०] सुमन-संबंधी; मनोहर; रुचिकर । सीवीर-पु० [सं०] बदरीफल, बेर; कांजी विशेष जो जौसे
पु० आनंद; संतोष कृपा, दया; एक अस्त्रका नाम । बनायी जाती है। सिंधु नदीके पासका एक प्रदेशइस सौमनस्य-पु० [सं०] तुष्टि, प्रसन्नता; विवेक ।
प्रदेशके निवासी। सौमिक-वि० [सं०] सोमरस-संबंधी; सोमरस द्वारा सौवीरांजन-पु० [सं०] सुरमा । किया जानेवाला (यश); सोमयश संबंधी; चंद्र-संबंधी; एव-पु० [सं०] उत्तमता; सौंदर्य, सुडौलपन; दक्षता । चांद्रायण व्रत करनेवाला । पु० सोमरसका पात्र । सौसन-स्त्री० [फा०] लाली लिये नीले रंगका एक फूल सौमित्र-पु० [सं०] मैत्री सुमित्राके पुत्र लक्ष्मण ।
। उर्द-फारसी कवितामें जबानका उपमान है। सौमित्रा-स्त्री० दे० 'सुमित्रा'।
| सौह* -स्त्री० कसम, शपथ । अ० सम्मुख, समक्ष, सामने । सौमित्रि-पु० [सं०] सुमित्राके पुत्र लक्ष्मण शत्रुध्न । | सौहरी-पु० दे० 'शौहर'। सौमुख्य-पु० [सं०] सुमुखता, सुर्खरूई; प्रसन्नता । सौहार्द-पु० [सं०] हृदयकी सरलता; सद्भाव; मैत्री। सौम्य-वि० [सं०] सोम (चंद्रमा या सोमलता)-संबंधी; सौहाद्य-पु० [सं०] मैत्री, दोस्तो । सोमके गुणोंसे युक्त सुंदर, प्रिय: नम्र और सुशील; मृदुल- सौहीं-* भ० सामने, सम्मुख । | पु० एक तरहकी रेती। कोमल; स्निग्ध; शांत । पु० बुध; ब्राह्मणके संबोधनकी | सौहृद-वि० [सं०] मित्र-संबंधी। पु० मित्र मैत्री। उचित उपाधि; वह रस जो अभी रक्तके रूपमें लाल न | सौहृद्य-पु० [सं०] मैत्री, दोस्ती। हुआ हो।-ग्रह-पु० शुभ ग्रह । -दर्शन-वि० देखने में स्कंत्ता(त्त)-वि० [सं०] कृदनेवाला, छलाँग मारनेवाला। भला । -मुख-वि० सुंदर मुखवाला।
स्कंद-पु० [सं०] क्षरण, बहना; नाश, ध्वंस; पारा; उछसौम्यता-स्त्री० [सं०] स्निग्धता; नम्रता; उदारता; सौंदर्य । लना; शरीर; कात्तिकेय । -गुप्त-पु० गुप्तवंशका एक सौम्यत्व-पु० [सं०] मार्दव, कोमलता; सौंदर्य; उदारता । | प्रसिद्ध सम्राट् । -जननी-स्त्री० पार्वती। सौम्याकृति-वि० [सं०] सुंदर आकृतिवाला।
स्कंदक-पु० [सं०] कूदने उछलनेवाला व्यक्ति सैनिक । सौर-स्त्री० चादर सौरी मछली । वि० [सं०] सूर्य-संबंधी स्कंध-पु० [सं०] कंधा, पीठका ऊपरी भाग; पेड़का तना; सूर्यसे उत्पन्न; सूर्यापित; सूर्योपासक; सूर्यकी गतिका अनु- मोटी डाल; विज्ञान आदिका कोई विभाग; ग्रंथका भाग या सरण करनेवाला; देवता-संबंधी; मदिरा-संबंधी। पु. खंड जिसमें अनेक अध्याय होते हैं (जैसे भागवतके १२ सूर्यकी पूजा करनेवाला व्यक्ति शनि ग्रह । -मास- स्कंध); सेनाका कोई अंग या भाग; सेनाका ब्यूह समूह, पु० सूर्यसंक्रांतिके अनुसार होनेवाला महीन।। -लोक- झंड; पाँचों ज्ञानेंद्रियोंके विषय; जीवनके पाँच तत्त्व-रूप, पु० दे० 'सूर्यलोक'।-वर्ष,-संवत्सर-पु० सूर्यसंक्रांतिके वेदना, संशा, संस्कार और विज्ञान (बौद्ध); पिंड (जैन); अनुसार होनेवाला वर्ष ।
अभिषेकके अवसरपर काम आनेवाले छत्र, जलपूर्ण कलश सौरज*-पु० दे० 'शौर्य'
आदि उपकरण; युद्ध; सड़क, मार्ग; (स्टॉक) बेचनेके सौरभ-पु० [सं०] सुगंधि, खुशबू ; केसर धनिया; आम । | लिए रखा गया तरह-तरहके मालका भांडार । -पंजीसौरभित-वि० [सं०) सौरभयुक्त, सुगंधयुक्त, खुशबूदार ।
स्त्री० (स्टॉक रजिस्टर ) भांडार या गोदाममें मौजूद सौरस्य-पु० [सं०] सुरस होनेका भाव, सुरसता।
मालका विवरण लिखनेकी पंजी। -मणि-पु. एक -पु० [सं०] सुराज्य, अच्छा शासन ।
तरहका रक्षाकवच । -वाह-वाहक-पु० कंधेपर भार सौराष्ट्र-पु० [सं०] सुराष्ट्र देश, काठियावाड़ तथा गुज- वहन करनेवाला (बैल आदि)।-वा-वि० जो कंधेपर रातका पुराना नाम; सुराष्ट्र देशका निवासी ।-मृत्तिका- ढोया जाय। स्त्री० सुराष्ट्र देशकी एक तरहकी मिट्टी जो सुगंधित होती | स्कंधाचार-पु० [सं०] राजाका शिविर राजधानी; सेना है, गोपीचंदन ।
सैन्यस्थिति; व्यापारियोंके ठहरनेका स्थान । सौराष्ट्रिक-वि० [सं०] सौराष्ट्र प्रदेशसे संबद्ध । पु० एक | स्कंधिक-पु० [सं०] कंधेपर भार ढोनेवाला बैल; दे० विष; सुराष्ट्र-निवासी; काँसा ।
'स्कांधिक' । सौरास्त्र-पु० [सं०] एक दिव्य अस्त्र ।
स्कंभ-पु० [सं०] खंभा, टेक, सहारा पुरुष, परमेश्वर । सौरि-पु० [सं०] शनि; असन वृक्ष; * वसुदेव कृष्ण | स्कांधिक-पु० [सं०] ( स्टॉकिस्ट ) बिक्रीके लिए बहुत-सी -रत्न-पु० नीलम ।
चीजें अपनी दूकान या गोदाममें रखनेवाला। सौरी-स्त्री० सूतिगृह सफरी मछली ।
स्कूल-पु० [अं०] पाठशाला, अध्यापनका स्थान; विशिष्ट सौर्य-वि०सं०] सूर्य-संबंधी। पु० सूर्यका पुत्र, शनि वर्ष। विचारधारा। सौर्यप्रभ-वि० [सं०] सूर्यकी प्रभासे संबंध रखनेवाला।। सौलक्षण्य-पु०[सं०] सुलक्षण होनेका भाव, सुलक्षणता। स्खलन-पु० [सं०] पतन मार्गसे विचलित होना; लड़सौलभ्य-पु० [सं०] सुलभ होनेका भाव, सुलभता । खड़ाना; थरथराहट; भूल करना, गलती; क्षरण । सौवर्चल-वि० [सं०] सुवर्चल देश-संबंधी या वहाँ उत्पन्न स्खलित-वि० [सं०] लुढ़का हुआ, पतित; लड़खड़ाया
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