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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खारक-खिजमत खारक*-पु० दे० 'खारिक' । खाविंद-पु० [फा०] मालिक, स्वामी, पति । खारा-वि० जिसमें खारापन हो, क्षार गुणवाला; नमकीन खास-वि० [अ०] आमका उलटा, विशेष; विशिष्ट; चुना बदमजा । पु० घास, पत्ते बाँधनेकी जाली; बड़ा टोकरा, हुआ; मुख्य व्यक्तिविशेषसे संबंध रखनेवाला; निजका; झाबा; एक धारीदार कपड़ा। बढ़िया प्रिय, प्यारा ठेठ ठीक । पु० विशिष्ट जन; प्रिय ख़ारिक-पु० [फा०] खजूर, छुहारा । जन । -कर-अ० विशेषतः, खास तौरसे। -कलमखारिज-वि० [अ०] बाहर; बाहर किया हुआ, बहिष्कृत पु० निजका मुंशी। -खास-वि० चुने हुए, प्रमुख अलग किया हुआ। (लोग)। -गी-स्त्री० खासीयत, विशेषता। -तराशख़ारिजी-वि० [अ०] बाहरी, बाह्य परराष्ट्र-संबंधी। पु० राजा, बादशाहकी हजामत बनानेवाला नाई । खारिश,खारिश्त-स्त्री० [फा०] खुजली खुजलीकी बीमारी। -नवीस-पु० खासकलम । -बरदार-पु० वह सिपाही खारी-वि० खारा । स्त्री० खारी नमक । -नमक-पु० | जो बंदूक लेकर राजा, बादशाहकी सवारीके आगे-आगे लोना मिट्टीसे निकला हुआ नमक जो बैलों आदिको चले; वह नौकर जो ( राजा, रईसका) पानदान लेकर खिलाया जाता है। साथ चले । -बाज़ार-पु० राजमहलके सामने या खारुआँ, खारुआ-पु० एक तरहका गहरा लाल रंग; पासका, उसकी आवश्यकताओंके लिए बसाया गया उक्त रंगमें रंगा हुआ कपड़ा। बाजार । -महल-पु० अंतःपुर, जनानखाना; प्रधान खारो*-वि० दे० 'खारा'। बेगम, पट्टमहिषी। -महाल-पु० वह जायदाद जिसका खाल-स्त्री० त्वचा, चमड़ा; छिलका; धौंकनी; आधा प्रबंध राज्य या सरकार खुद करे। चरसा; * मृत देह; नीची जमीन; गहरी जगह; खाड़ी। खासा-वि० [अ०] काफी अच्छा, बढ़िया; औसत दरजेका; मु०-उधेड़ना-इतना पीटना कि खाल उड़ जाय, बहुत सुंदर । पु० रईसका खाना; राजाकी सवारीका घोड़ा; मारना। -खींचना-जीवित शरीरपरसे चमड़ा अलग हाथी; मलमलकी किस्मका एक सूती कपड़ा; एक कर लेना। तरहकी पूरी। खालसा-पु. वह सरकारी जमीन या इलाका जिसका खासियत-स्त्री० दे० 'खासीयत'। प्रबंध सरकार खुद करे और जो किसी की जागीर, जमीं- खासीयत-स्त्री० [अ०] गुण, प्रभाव; प्रकृति, स्वभाव । दारी न हो; सिखोंका एक (प्रमुख) संप्रदाय । -दीवान- खाहमखाह-अ० दे० 'ख्वाहम.ख्वाह'। पु० सिखोंकी धर्मसभा । मु०-करना-सरकारका किसी ख़ाहिश-स्त्री० दे० '.ख्वाहिश'। जमीन, जायदादका प्रबंध अपने हाथ में ले लेना, जब्त ! खिंचना-अ० क्रि० खींचा जाना, तनना; किसी दिशामें कर लेना। बढ़ना, आकर्षित होना; कसा जाना; (म्यान आदिसे) खाला-वि० नीचा ( ऊँचा-खाला)। बाहर निकलना; विरक्त, अप्रसन्न होना; चित्रित होना, खाला-स्त्री० [फा०] माँकी बहन, मौसी। -जाद-वि० उतरना; दूर होना; सोखा जाना। मौसैरा (भाई-बहन)। -का घर-बहुत आसान काम। खिंचवाना-स० क्रि० 'खींचने का काम दूसरेसे कराना । खालिक-वि० [अ०] बनानेवाला, सृष्टिकर्ता । -बारी वैचाई-स्त्री० खींचनेकी क्रिया; खींचनेकी उजरत । स्त्री० अमीर खुसरो-रचित एक पद्य-पुस्तक जिसमें प्रचलित खिंचाना-स० क्रि० दे० 'खिंचवाना'। अरबी-फारसी शब्दोंके हिंदी पर्याय दिये गये हैं। खिंचाव-पु० खींचे जानेका भाव, तनाव; विरक्ति खालिस-वि० [अ०] शुद्ध, बेमेल; खरा, सच्चा।। नाराजगी। खाली-वि० [अ०] जिसमें कुछ भरा-धरा न हो, रीता, खिंचावट, खिंचाहट-स्त्री० दे० 'खिंचाव' । रहित, शून्य, जिसमें कोई रहता न हो (मकान); जिससे खिखिंद*-पु० किष्किध पर्वत; बीहड़ भूमि । काम न लिया जा रहा हो, अव्यवहृत; जिसके पास कोई खिचड़वार-पु० मकर-संक्रांति । काम न हो, सावकाश व्यर्थ, बेकार । अ० केवल । पु० खिचड़ा-पु० गेहूँ और कई तरहकी दालें मिलाकर पकायी तबले आदि बजानेमें खाली छोड़ा हुआ ताल ।-महीना- गयी खिचड़ी जो प्रायः मुहर्रममें बाँटी जाती है। पु० मुसलमानोंका ग्यारहवाँ महीना जीकाद जो मनहूस खिचड़ी-स्त्री० मिला हुआ या मिलाकर पकाया हुआ समझा जाता है (इससे पहले महीने में ईद और बादके दाल-चावल; दो या अधिक चीजोंकी मिलावट; दो रंगकी महीनेमें बकरीद पड़ती है)। -दिन-पु० शुभकार्य या चीजों-( स्याह-सफेद बाल, रुपये और अशर्फियों)की नये कामके लिए अनुपयुक्त दिन। -पेट-वि० जो कुछ मिलावट; ब्याहकी एक रस्म जिसमें वर और उसके छोटे खाये न हो, भूखा । अ० बिना कुछ खाये, बासी मुँह ।। भाइयोंको खिचड़ी खिलाते हैं; मकर संक्रांति; नाचकी -हाथ-वि० जिसके हाथमें, पास कुछ न हो, निर्धन, साई । वि० मिला-जुला, खल्त-मस्त ।-बोली-भाषाजिसके हाथमें कोई हथियार न हो। अ० हाथमें बिना स्त्री० वह बोली, भाषा जिसमें दो या अधिक भाषाओंके कुछ लिये, बिना पैसे या हथियारके । मु०-जाना- शब्दोंका मिश्रण हो । मु०-पकना-गुप्त मंत्रणा, निशानेपर न लगना, व्यर्थ होना। -बैठना-बेकार | साजिश होना। बैठना। -हाथ लौटना-बैरंग, विफल लौटना । खिचना-अ० क्रि० दे० 'खिंचना' । खालू-पु० [अ०] मौसा; मा । खिजना-अ० क्रि० दे० 'खीजना' । वि० चिड़चिड़ा। खाले*-अ० नीचे। | खिजमत*-स्त्री० दे० 'खिदमत' । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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