________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७९१
षोडश-संकेंद्रण वाला बैल ।
ठोड़ीपर तिल बनाना, मेंहदी रचना, सुगंधित द्रव्योंका षोडश-वि० [सं०] सोलहवाँ ।
प्रयोग करना, अलंकार धारण करना, पुष्पहार पहनना, षोडश(न्)-वि० [सं०] सोलह । पु० सोलहकी संख्या । पान खाना, ओठ रँगना और मिस्सी लगाना) । -कल-वि० सोलह अंशोंवाला। -कला-स्त्री० अमृता, -संस्कार-पु. शास्त्रविहित गर्भाधानसे लेकर मृत्युतकके मानदा, पूषा आदि चंद्रमाकी सोलह कलाएँ (अंश) जो| सोलह संस्कार । यथातिथि घटती-बढ़ती रहती है। -दान-पु० श्राद्ध षोडशी-स्त्री० [सं०] दस या बारह महाविद्याओंमेंसे एक आदिके अवसरपर देय भूमि, आसन, गाय, सोना आदि | सोलह वर्षकी स्त्री, तरुणी प्रेतकर्मविशेष । सोलह वस्तुएँ । -पूजन-पु० दे० 'षोडशोपचार' । षोडशोपचार-पु० [सं०] देवपूजनके सोलह अंग (आसन, -मातृका-स्त्री० गौरी, पद्मा, शची आदि सोलह देवियाँ । स्वागत, अर्घ्य, आचमन, मधुपर्क, स्नान, वस्त्राभरण, -विध-वि० सोलह प्रकारका । -शृंगार-पु० साज- यज्ञोपवीत, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, परिसज्जाके सोलह अंग, संपूर्ण शृंगार (उबटन लगाना, स्नान क्रमा और वंदना)। करना, वस्त्र धारण करना, बाल सवाँरना, अंजन लगाना, ठीवन-पु० [सं०] थूकनेकी क्रिया; थूक, लार । सिंदूर भरना, महावर लगाना, भालपर तिलक बनाना, | ष्ठीवित-वि० [सं०] थूका हुआ।
स-देवनागरी वर्णमालाका बत्तीसवाँ व्यंजन, ऊष्म वर्ण। दानादि धार्मिक कृत्य करनेका निश्चय या प्रतिज्ञा करना । सँइतना -स० क्रि० जोड़ना, बटोरना; सुरक्षित रखना। अ० क्रि० इरादा करना। सँउपना*-स० क्रि० दे० 'सपना' ।
संकलित-वि० [सं०] एकत्रीकृत संगृहीत; मिलाया हुआ; संक*-स्त्री० शंका, डर भ्रम ।
गृहीत; जोड़ा हुआ (गणित)। संकट-वि० [सं०] संकीर्ण, तंग । पु० [सं०] तंग रास्ता संकल्प-पु० [सं०] इच्छा; निश्चय; नीयत; विचार, दर्रा कठिनाई खतरा; विपत्ति, मुसीबत भीड़ ।-नाशन- कल्पना; कोई कृत्य करनेकी प्रतिज्ञा; सती होनेकी इच्छा; वि० कष्ट दूर करनेवाला। -मुख-वि० जिसका मुँह मंत्रोच्चारणके साथ धार्मिक कृत्य करनेकी प्रतिज्ञा करना। तंग हो। -मोचन-वि० संकटसे छुड़ानेवाला । पु० संकल्पक-वि० [सं०]संकल्प करनेवाला विचार करनेवाला। हनूमान्की काशीस्थ एक मूत्ति ।-संकेत-पु० (एस. ओ. संकल्पित-वि० [सं०] जिसका संकल्प, निश्चय किया गया एस., 'एसोएस') डूबते हुए जहाज, ध्वस्त होते हुए | हो; जिसका विचार या कल्पना की गयी हो। विमान आदिमे भयंकर संकटकी सूचना देनेके लिए बेतार- संकष्ट-पु० दे० 'संकट'। के तार द्वारा प्रेरित संदेश ।
संका*-स्त्री० शंका, डर । संकटापन्न-वि० [सं०] विपग्रस्त, कष्ट में पड़ा हुआ। सकाना*-अ० क्रि० शंकित होना, डरना । संकत*-पु० दे० 'संकेत'।
संकारना*--स० क्रि० संकेत, इशारा करना । संकना*-अ० कि० डरना; शंका, संदेह करना । संकाश-वि० [सं०] तुल्य, समान (समासमें); निकटवती । संकर-पु० [सं०] मिश्रण; योग, एकमें मिलना; दो अ० निकट, पास। जातियोंका मिश्रण; अंतर्जातीय संबंधसे उत्पन्न संतान एक | संकास*-वि० दे० 'संकाश'। ही वाक्य में दो या अधिक अलंकारोंका मिश्रण (सा०)। । संकीर्ण-वि० [सं०] तंग, संकुचित; छोटा । संकर-पु० दे० 'शंकर'। [स्त्री० 'संकरी' 1] -घरनी- | संकीर्णता-स्त्री० [सं०] तंगी क्षुद्रता । स्त्री पार्वती।
संकीर्तन-पु० [सं०] सम्यक् वर्णन; प्रशंसा; स्तुति देवतासकरा-वि० तंग, संकीर्ण । पु० संकट; एक राग । स्त्री० | के नामका जप। सिकड़ी, जंजीर । मु०-(२)में पड़ना-कष्टमें पड़ना। संकु-पु० [सं०] छिद्र (?); * बछीं। सँकराना-स० क्रि० तंग, संकुचित, संकीर्ण करना । | संकुचन-पु० [सं०] सिकुड़ना, संकुचित होना। संकरीकरण-पु० [सं०] मिलाना; जातिका अवैध मिश्रण। संकुचना-अ० कि० दे० 'सकुचना'। संकर्षण-पु० [सं०] खींचकर निकालना; पास लाना; संकुचित-वि० [सं०] सिकुड़ा हुआ; तंग; बंद नत । जोतना बलराम । -विद्या-स्त्री० एक स्त्रीके पेटसे बच्चा | संकुपित-वि० [सं०] ऋद्ध उत्तेजित । निकालकर दूसरी स्त्रीके पेट में रखनेकी विद्या ।
संकुल-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ; भरा हुआ, धना; संकल-पु०[सं०] एकत्र करना; राशि, ढेर योग । + स्त्री० संकीर्ण; असंगत; जटिल । पु० भीड़, मजमा, झुंड; युद्ध साँकल, जंजीर ।
असंगत वाक्य । संकलन-पु०[सं०] एकत्रीकरण; योग, जोड़; अच्छे विषयों- संकुलता-स्त्री० [सं०] परिपूर्णता गड़बड़ जटिलताधनापन ।
को चुनकर एकत्र करना; इस ढंगसे बना हुआ ग्रंथ । संकुलित-वि० [सं०] भरा हुआ, पूरित (समासमें); संकलना-स्त्री० [सं०] एकत्र करना; मिलाना, जोड़ना। सिकोड़ा हुआ अस्त-व्यस्त; घबड़ाया हुआ। संकलप*-पु० दे० 'संकल्प'।
संकेंद्रण-पु० [सं०] (कॉनसेंट्रेशन) केंद्र की ओर ले जाना, संकलपना-स० क्रि० संकल्प करना, निश्चय करना; जमाना, एक स्थान या केंद्रपर लगाना, इकट्ठा करना
For Private and Personal Use Only