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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्वेतांक-षोडन् उच्चैःश्रवा घोड़ा; सफेद घोड़ा; अर्जुन; इंद्र । -हस्ती बना हो। (स्तिन् )-पु०इंद्रका ऐरावत हाथी । श्वेतांग-वि० [सं०] जिसके शरीरका रंग सफेद हो, गौरश्वेतांक-पु० [सं०] (वाटर मार्क) कागजके भीतर, उसकी वर्णका, गौरांग । बनावटमें ही, विशेष प्रक्रियासे बनाया हुआ सफेद-सा श्वेतांबर-पु० [सं०] श्वेत, सफेद वस्त्र; जैनोंके एक प्रमुख चिह्न, छाप या अक्षरावली। संप्रदायका नाम । श्वेतांकित-वि० [सं०] (वाटरमार्ड) जिसपर श्वेतांक । श्वेतांशु-पु० [सं०] दे० 'श्वेत-मयूख' । प ष-नागरी वर्णमालाका इकतीसवाँ व्यंजन, ऊष्म वर्ण । दुरभिसंधि, किसी व्यक्तिके अनजानमें उसके अनिष्ट पंड-पु० [सं०] बैल; माँड़ नपुंसक, हिजड़ा। साधनके उपाय करना, साजिश । -योग-पु० पंडक-पु० [सं०] नपुंसक, हिजड़ा। योगाभ्यासमें प्रयुक्त छः तरीके । -योनि-पु. शिलापंढ-पु० [सं०] नपुंसक, कीब। जतु । -रस-वि० छः प्रकारके स्वादोंवाला । पु० छ: षंढा-स्त्री० [सं०] पुरुष जैसी प्रवृत्तिवाली स्त्री, मरदानी प्रकारके स्वाद-मीठा, नमकीन, कड़वा, तीता, कसैला औरत । और खट्टा। -राग-पु. भैरव, मलार, श्री, हिंडोल, षट् (प)-वि० [सं०] छः, पाँच और एक। -कर्म(न) मालकोस और दीपक-ये छः राग; झंझट, बखेड़ा । पु० ब्राह्मणोंके छ: कर्तव्य (अध्ययन, अध्यापन, यजन, -रिपु-पु० काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार-ये याजन, दान और प्रतिग्रह); ब्राह्मणोंके निर्वाह-संबंधी छ: षडविकार । -लवण-पु० सैंधव, सामुद्र आदि छः कर्म (उंछ, प्रतिग्रह, भिक्षा, वाणिज्य, कृषि और पशु- प्रकारके नमक । -वक्त-वदन-वि० छ: मुखोंवाला। पालन); छः तांत्रिक कर्म (मारण, उच्चाटन, स्तंभन, पु० स्कंद । -वर्ग-पु० छः पदार्थों आदिका समाहार, वशीकरण, शांति और विदूषण); योग संबंधी छ: कर्म । षड्रिपुः पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और मन । -विकार-पु० (धौती, वस्ती, नेती, त्राटक, नौलिक और कपालभाती)। शरीरधारी(जीव)के छः विकार-उत्पत्ति, वृद्धि, बाण्या-कोण-वि० (वह क्षेत्र) जिसमें छ: कोण हों; छपहला ।। वस्था, यौवन, वार्धक्य और मृत्यु । -विध-वि० छ: पु० इंद्रका वज्र, हीरा। -चक्र-पु० शरीरके भीतर प्रकारका सुषुम्ना नाडीके मध्य स्थित अतिसूक्ष्म कमलाकार छ: षड्धा-अ० [सं०] छः प्रकारसे । चक्र (मूलाधार, अधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध और षण-वि० [सं०] 'प'का समासगत रूप । -मास-पु० आज्ञा); षड्यंत्र ।-तिला-स्त्री० माघ-कृष्णा एकादशी । | छः मास । -मासिक-वि० अर्धवार्षिक । -मास्य-पद-वि० छः पैरोंवाला । पु० छः पैरोंवाला प्राणी; | पु० छः मासका समय । वि० छः मासका । -मुखभ्रमर; किलनी; छः पदोवाला छंद । -पदी-वि० स्त्री० वि० छ: मुखोंवाला । पु० स्कंदा एक बोधिसत्त्व । छः पैरोंवाली। स्त्री भ्रमरी; किलनी; छः चरणोंवाला | षष्टि-स्त्री० [सं०] साठकी संख्या। वि० साठ । छंद, छप्पय । -रस-वि०, पु० [हिं०] दे० 'षड्स'। षष्ट यंशक-पु० [सं०] एक यंत्र जिससे नक्षत्रोंके सहारे -राग-पु० [हिं०] दे० 'घटराग'। -रिपु-पु० [हिं०] जहाजकी स्थिति निर्धारित की जाती है । दे० 'षडरिपु'। -शास्त्र-पु. वेदको प्रमाण मानकर षष्ठ-वि० [सं०] छठा। चलनेवाले छ: हिंदू-दर्शन । षष्टांश-पु० [सं०] छठा भाग, विशेषकर अन्नका वह छठा षड-वि० [सं०] 'षष्'का समासगत रूप। -अंग-वि० भाग जो राजस्वके रूपमें दिया जाता था । छः अंगोंवाला । पु० छठा भाग; शरीरके छः अवयव षष्ठी-स्त्री० [सं०] पक्षकी छठी तिथि; संतानोत्पत्तिके दिन (शिर, धड़, दो हाथ और दो पैर); वेदके छः अंग (शिक्षा, से छठा दिन, छट्ठी, कात्यायनी (दुर्गाका एक नाम) कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण, ज्योतिष); गायसे प्राप्त जिनकी बच्चेके कल्याणके लिए छट्टीको पूजा होती है। छः पदार्थ (मूत्र, गोमय, क्षीर, सर्पि, दधि और रोचन); संबंधकारककी विभक्ति ।-तत्पुरुष-पु०तत्पुरुष समासका किन्हीं छः वस्तुओंका समाहार; छोटा गोखरू।-अंघ्रि- एक भेद जिसमें पूर्वपद संबंधकारककी विभक्ति षष्ठीमें पु० भ्रमर । -अग्नि-स्त्री० कर्मकांड-संबंधी छ: प्रकारको होता है (जैसे-विद्यालय)। अग्नि (गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभ्याग्नि, षाडण्य-पु० [सं०] पड्गुणसमुच्चय, छः गुणोंका समूह; आवासथ्य और औपासनाग्नि) । -आनन-वि० छ: | राजनीति में व्यवहार्थ छः अंग, कर्म, दे० 'षड्गुण'; किसी मुखोंवाला । पु० कात्तिकेय । -ऋतु-स्त्री० छः ऋतुएँ। संख्याको छःसे गुणा करनेपर प्राप्त गुणनफल । -गुण-वि० छगुना छः गुणोंसे युक्त । पु० परराष्ट्रनीतिकी पाण्मातुर-पु० [सं०] कात्र्तिकेय (जिनका पालन छ: सफलताके लिए. राजा द्वारा व्यवहार्य छ: उपाय-संधि, माताओंने किया था)। विग्रह, यान (चढ़ाई ), आसन (विराम), द्वैधीभाव पाण्मासिक-वि० [सं०] छमाही, छः महीनेका । पु० और संश्रयः छः गुणोंका समाहार। -दर्शन- मृत्युके छ: महीने पश्चात् होनेवाला मृतक श्राद्ध । पु० हिंदुओंके ये छः दर्शन-सांख्य, मीमांसा, षोडंत-वि० [सं०] छः दाँतोंवाला। न्याय, वैशेषिक, योग और वेदांत । -यंत्र-पु० षोडन्(त)-वि० [सं०] छः दाँतोंवाला । पु० छः दाँतों For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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