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बसंदर-बहनेली रंग पीला कपड़ा।
जगह जहाँ चिड़ियाँ रात बितायें, धांसला; रहना, टिकना; बसंदर-पु० दे० 'वैश्वानर' ।
रहनेवाला। मु०-करना,-लेना-रातमें टिकाना, बसना । बस-पु० वश, शक्ति, काबू । अ० [फा०] काफी, अलम्; बसेरी*-पु० बसने-टिकनेवाला । बहुत; इतना ही; (आशा अर्थ में) ठहरो, रुको। -करो- बसैया*-पु० बसनेवाला। ठहरो, रुक जाओ, खतम करो।
बसोबास*-पु० बासस्थान । बसति-स्त्री० दे० 'वस्ती'।
बसौंधी-स्त्री० सुवासित और लच्छेदार रबड़ी। बसन-पु० दे० 'वसन'।
बस्तर-पु० दे० 'वस्त्र' । -मोचन-पु० किसीके बदनपर बसना-अ० कि० स्थायी रूपसे रहना; टिकना, ठहरना; लँगोटीतक न रहने देना, सब कुछ छीन लेना।
आबाद होना; मनुष्योंका रहने लगना; * बैठना-'प्यार बस्ता-वि० [फा०] बँधा हुआ (दस्त-बस्ता, कमर-बस्ता); पगी पगरी पियकी बसि भीतर आपने सीस सँधारी'-देव तह किया हुआ । पु० वह कपड़ा जिसमें किताबें या कागजबसाया जाना, सुगंधसे दासा जाना । पु. बेठन, थैली; पत्र बाँधे जायँ, बेठन; बेठनमें बँधी हुई पुस्तकें, कागजपत्र । रुपये रखनेकी जालीदार थैली; + बरतन ।
मु०-बाँधना-कागजपत्र समेटना, (दफ्तर, मदरसेसे) घर बसनि*-स्त्री० वास, रहाइश ।
जानेकी तैयारी करना। बसनी -स्त्री०रुपये रखकर कमरमें बाँधनेकी लंबीसी थेली। बस्ती-स्त्री० बसनेका भाव; आबादी, आबाद धरोंका समूह, बसर-स्त्री० [फा०] गुजर, निर्वाह (करना, होना)। गाँव, कसबा १० स्थानविशेषमें बसनेवाले लोग, आबादी -औकात-पु० निर्वाह, जीवन-यापन ।
(छोटी, बड़ी वस्ती, दस हजारकी वस्ती): वसवार*-पु० तड़का, छोक । वि० सोधा ।
बस्त्र-पु० दे० 'वस्त्र'। बसवास*-पु० बास, रहना; रहनेका ठिकाना; रहने
बस्य-वि० अधीन, वशमें आनेवाला । पु० अधीनस्थ का ढंग।
व्यक्ति सेवक । बसह*-पु० बेल।
बहँगा-पु० बड़ी बहँगी। बसाँधा*-वि० वासा हुआ, सुवासित ।
बहँगी-स्त्री० बाँसके फट्टेके दोनों छोरोंपर छोका लटकाकर बसा-स्त्री० दे० 'वसा'; * बरें, भिड़।
बनाया हुआ, बोझ ढोनेका साधन, काँवर । बसात-स्त्री० दे० 'विसात' ।
बहक-स्त्री० बहकनेका भाव, पथभ्रष्टता; बढ़-बढ़कर या बसाना-स० कि० बसनेको प्रेरित करना; वसनेका प्रबंध अंडबंड बोलना, बड़।। करना; आवाद करना; टिकाना; बासना, सुवासित करना; बहकना-अ० कि० ठीक रास्तेसे हटकर गलत रास्तेपर * बिठाना। अ० क्रि० बस चलना-'तनमन हारे हू जाना, पथ भ्रष्ट होना; चूकना; भुलावेमें आना, धोखा हसे, तिनसौं कहा बसाय'-बि०, बसना; गंध देना। खाना; नशे में ड-बंट या धमंडमें बढ़-बढ़कर बोलना बसिआना, बसियाना-अ० कि० वासी हो जाना। * उछलना । मु० बहकी-बहकी बातें करना-मदोन्मत्तकी बसिऔरा, बसियौरा-पु० रातमें होनेवाले कुछ पूजनोंका | तरह अंड-बंड बकना बढ़-बढ़कर बोलना । अगला दिन जब घरके सब लोग रातका पका हुआ वासी बहकाना-स० क्रि० ठीकसे गलत रास्तेपर ले जाना, पथही खाना खाते हैं। बासी भोजन ।
भ्रष्ट करना; बुरे, हानिकर कामके लिए प्रेरित करना; बसिया-वि० बासी । पु० बासी भोजन ।
भुलावा देना, भरमाना; बहलाना (बच्चोंको)। बसिष्ट-पु० दे० 'वसिष्ठ' ।
बहकावट-स्त्री० बहकानेकी क्रिया। बसीकत*-स्त्री० बस्ती; बसनेकी क्रिया, निवास । बहकावा-पु० बहकानेवाली बात, भुलावा । बसीकर-वि० दे० 'वशीकर'।
बहतोल*-स्त्री० पानी बहनेकी नाली। बसीकरन*-पु० दे० 'वशीकरण' ।
बहत्तर-वि० सत्तर और दो। पु० ७२ की संख्या। बसीठ-पु० दूत, संदेशवाहक ।
बहन-स्त्री० दे० 'बहिन' । * पु० (वायुका) बहना, झोंका। बसीठी-स्त्री० दूतका काम, दौत्य ।
बहना-अ० क्रि० तरल पदार्थका नीचेकी ओर जाना, बसीत्यो*-पु. वस्ती, निवासस्थान ।
धाराके रूप में प्रवाहित होना; धारा या बहावके साथ बसीना*-पु० निवास, रहाइश ।
आगे जाना; हवाका चलना; चूना, स्रवित होना; फूटना, बसीला-वि० बासबाला, गंधयुक्त दुगंधयुक्त ।
मवाद निकलना; अपनी जगहसे हट जाना; चरित्रभ्रष्ट बसु-पु० दे० 'वसु' । -देव-पु० दे० 'वसु में ।
होना; नष्ट होना डूब जाना; बहुत सस्ता बिकना; * बसुधा-स्त्री० दे० 'वसुधा'।
उठना; चलना । स० कि. वहन करना, ढोना; धारण बसुमती-स्त्री० दे० 'वसुमती' ।
करना, निभाना। मु० बहती गंगामें हाथ धोनाबसुरी -स्त्री० बाँसुरी।
ऐसी चीजसे फायदा उठाना जिससे सब उठा रहे हों। बसूला-पु० एक औजार जिससे बढ़ई लकड़ी काटता- बहनापा-पु० बहिनका नाता । छीलता है, तक्षणी।
बहनी*-स्त्री० दे० 'वह्नि' । बसूली-स्त्री० छोटा बसूला; वह औजार जिससे राज ईटें बहनु*-पु० वाहन, सवारी । गढ़ता-छीलता है।
बहनेली-स्त्री० वह स्त्री जिसके साथ बहनका नाता जोड़ा बसेरा-पु० रात बितानेका स्थान, टिकनेका ठिकाना; वह मया हो, मुँहबोली बहन ।
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