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तितिक्षु-तिरानवे
तितिक्षु - वि० [सं०] तितिक्षायुक्त, सहनशील, क्षमावान् । तितिभ - पु० [सं०] बीरबहूटी; जुगनू । तितिम्मा- पु० [अ०] पूरक अंश; पुस्तकका परिशिष्ट । तितिर, तितिरि- पु० [सं०] तीतर पक्षी । तितीर्षा - स्त्री० [सं०] तरने या पार करनेकी इच्छा । तितीर्षु - वि० [सं०] तरने या पार होनेका इच्छुक । तिते* - वि० उतने ।
तितेक* - वि० उतना ।
तितै* - अ० तहाँ; उधर ।
तितो* - वि० उतना ।
पत्र
तिथि - स्त्री० [सं०] वह काल विशेष जिसमें चंद्रमा एक कला घट, १-२ आदि संख्याओं द्वारा निर्दिष्ट चांद्र मासका प्रत्येक दिन; मिति, तारीख मृत्युदिवस; पंद्रहकी संख्या । -क्षय-पु० तिथिकी हानि । पु० पंचांग। - वृद्धि - स्त्री० जो तिथि दो सूर्योदय तक चले । - संक्रामी - वि० (डिफाल्टर ) ( न्यायालय में उपस्थित होने, ऋणको किस्त आदि जमा करनेकी) निर्धारित तिथिका संक्रमण करनेवाला ( उस तिथिको उपस्थित न होनेवाला, किस्त न चुकानेवाला आदि) । - संधि - स्त्री० दो तिथियों की संधि ।
तिथित - वि० (डेटेड) ( वह पत्रादि) जिसपर कोई तिथि या महीने की तारीख लिखी या डाली गयी हो, दिनांकित । तिधर - अ० उधर, उस ओर ।
तिन* - सर्व० 'तिस' का बहुवचन । पु० तृण, तिनका । तिनउर* - पु० तृणराशि ।
तिनकना - अ० क्रि० झल्लाना, बिगड़ना, रूठना । तिनका- पु० तृण, घासफूम । तोर -पु० नाता तोड़ | मु० - तोड़ना - बलैया लेना, अपनेको न्यौछावर करना; हमेशा के लिए नाता तोड़ लेना। - दाँतों में पकड़ना - दयाकी भिक्षा माँगना । ( तिनके का सहारा - थोडीसी सहायता । -की ओट पहाड़-छोटीसी वस्तुमे बहुत बड़े रहस्यका छिपा होना । तिनगना - अ० क्रि० दे० 'तिनकना' । तिनगरी * - स्त्री० एक पकवान । तिनपहला - वि० तीन पहलोंवाला । तिनस, तिनसुना- पु० दे० 'तिनिश' । तिनिश - पु० [सं०] शीशमकी जातिका एक वृक्ष । तिनुका, तिनूका* - पु० दे० 'तिनका' । तिन्ना - पु० तिनीके धानका पौधा । तिनी-स्त्री० स्वयं उत्पन्न होनेवाला एक धान जिसका चावल फलाहारके काम आता है, नीवार । तिपति* - स्त्री० तृप्ति ।
तिब्बिया - वि० [अ०] तिब्ब-संबंधी । -कालेज - पु० यूनानी चिकित्साशास्त्रकी शिक्षा देनेवाला विद्यालय । तिमिंगिल - पु० [सं०] एक समुद्री जंतु जो तिमिको निगल सकता है; बहुत भारी मछली, होल । - गिल-पु०
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तिमिंगिलको भी निगल जानेवाला समुद्री जंतु । तिमि - अ० * उस प्रकार । पु० [सं०] समुद्र; बहुत बड़े आकारका एक समुद्री मत्स्यः मत्स्य । - ध्वज - पु० एक दैत्य जिसे इंद्रने दशरथकी सहायता से मारा था । तिमिर - पु० [सं०] अंधकार; आँसका एक रोग; लोहका मोरचा दे० 'तिरमिरा' । भिद् - वि० अंधकार का भेदन करनेवाला | पु० सूर्य । -रिपु-पु० अंधकारका शत्रु, सूर्य । - हर- पु० सूर्य; दीपक ।
तिमिरारि - पु० [सं०] अंधकारका शत्रु, सूर्य । तिमिरारी* - स्त्री० तिमिराली, अंधकार पुंज; अंधेरा । ० सूर्य
तिय* - स्त्री० स्त्री; पत्नी ।
तिया स्त्री० दे० 'तिक्की'; * दे० 'तिय' । तियाग* - पु० दे० 'त्याग' । तिर - वि० 'त्रि'का बिगड़ा हुआ समासमें व्यवहृत रूप । -कुटा - पु० दे० 'त्रिकटु' । - खूंटा - वि० जिसमें तीन खूँट हों । - पाई - स्त्री० दे० 'तिपाई' । - फला- पु० दे० 'त्रिफला' । - बेनी* स्त्री० दे० 'त्रिवेणी' | - मुहानी - स्त्री० दे० 'तिमुहानी' । -लोक - पु० दे० 'त्रिलोक' | - सठ - वि० साठ और तीन । पु० तिरसठकी संख्या, ६३ । - सूल - ५० दे० 'त्रिशूल'; तापत्रय । तिरखा* - स्त्री० दे० 'तृषा' | तिरखित* - वि० दे० 'तृषित' |
तिरछा - वि० जो एक ओर कुछ झुका हुआ हो, वक्र, कज, बाँका, कुटिल । - पन- पु० तिरछा होने का भाव । तिरछाई - स्त्री० तिरछापन । तिरछाना - अ० क्रि० तिरछा होना । तिरछे* - अ० तिरछेपन के साथ; तिरछी गतिसे | तिरछाँहाँ- वि० कुछ-कुछ तिरछा । तिरछा है - अ० दे० 'तिर छे' ।
तिरना- अ० क्रि० दे० 'तरना'; पानीपर तैरना; उतराना । तिरनी* - स्त्री० नीवी, फुफुंदी |
तिरप - स्त्री० नाचका एक ताल ।
तिरपटा - वि० एक बगल कुछ झुका हुआ, तिरछा; कठिन । तिरपन - वि० पचास और तीन । पुतिरपनकी संख्या ५३॥ तिरपाल - पु० पानी से बचावके कामका एक मोठा कपड़ा; छाजनके नीचे लगाया जानेवाला सरकंडेका मुट्टा । तिरपित* - वि० दे० 'तृप्त' ।
तिरमिरा - पु० आँखका एक रोग जिसमें देखनेकी शक्ति क्षीण हो जाती है, सामने धुंध छाया रहता है, प्रकाश असह्य हो जाता है और कुछका कुछ दिखाई देता है; चकाचौंध |
तिपाई - स्त्री० दे० 'ति' के साथ |
. तिबारा - वि०, पु० दे० 'ति' के साथ ।
तिरमिराना - अ० क्रि० दे० 'तिलमिलाना' । तिरस्कार - पु० [सं०] अपमान, अनादर; अवज्ञा ।
तिब्ब - स्त्री० [अ०] चिकित्साशास्त्र; यूनानी चिकित्सा तिरस्कृत- वि० [सं०] अपमानित, अनाहत, जिसकी अव शास्त्र, हकीमी ।
हेलना की गयी हो; आच्छादित ।
तिरस्क्रिया - स्त्री० [सं०] आच्छादित करनेकी क्रिया; दे० 'तिरस्कार' ।
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तिरहुत-पु० मिथिला-मुजफ्फरपुर और दरभंगा तिरानबे - वि० नब्बे और तीन । पु० तिरानवे की संख्या, ९३ ।