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मिटियाना- मिथ्यारोपण
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मिट्टीका । - महल - पु० मड़ई, झोपड़ी (व्यं० ) । - साँप - मिताहार - वि० [सं०] थोड़ा खानेवाला; नपी-तुली खुराक पु० मिट्टी के रंगका साँप । खानेवाला । पु० परिमित आहार । मिटियाना - स० क्रि० मिट्टी लगाकर या मिट्टी रगड़कर मिति - स्त्री० [सं०] मान; सीमा; विज्ञान; समयकी सीमा । साफ करना । मिती - स्त्री० तिथि, तारीख; हुंडी आदि चुकानेकी तिथि; दिन । -काटा-पु० गणितकी रीति जिससे मुंडीकी मुद्दत और ब्याज जोड़ते हैं । मु० - काटना- सूद काटना । - पूजना- हुंडीकी अवधि पूरी होना । मितोपभोग योजना - स्त्री० [सं०] (आस्टेरिटी स्कीम) दे० 'अल्पभोग योजना' | मित्त* - पु० दे० 'मित्र' ।
मिट्टी - स्त्री० धरती की उपरी सतह जो टूटी हुई चट्टानों के चूरकी बनी होती है और जिसपर पेड़-पौधे उगते हैं; जमीन; धूल, खाक; भरम, कुश्ता; शरीरको बनावट; शरीर; प्रकृति; खमीर; लाश । -का तेल - एक प्रसिद्ध खनिज द्रव जो लैपों आदि में तेलकी तरह जलाया जाता है | मु० - उठना- लाश, जनाजा उठना । -करनाखराब, बरबाद करना । - का पुतला - मनुष्य (ला० ) । - की मूरत - मानवशरीर । - के माधव - मूर्ख, भोंदू । - के मोल - बहुत सस्ते दामों (विकना) । - खराब (वार) होना - अंत्येष्टि क्रिया-कर्म ठिकानेसे न होना । - ठिकाने लगना- अंत्येष्टि समुचित प्रकारसे होना । - ठिकाने लगाना - समुचित प्रकार से (किसीकी) अंत्येष्टि करना । - डालना - ऐबपर परदा डालना । - देना - लाशको दफन करना; लाशको कब में सुलाने के बाद उपस्थित जनोंका उसपर थोड़ी-थोड़ीसी मिट्टी डालना (मुसल०) ।-पलीद होना- दुर्दशा होना; जलील होना; क्रिया-कर्म ठिकानेसे न होना । - मेँ मिलना - नष्ट, बरबाद हो जाना । मिट्टी - स्त्री० चुंबन | मिट्टू - वि० मधुरभाषी; चुप्पा | पु० तोता । मिठ-वि० मीठाका समासगत लघु रूप । - बोला- वि० मधुरभाषी । - लोना - वि० जिसमें नमक कम पड़ा हो । मिठाई - स्त्री० मिठास; मिष्टान्न, शीरीनी (लड्डू, पेड़ा, इमरती आदि) । मु० - चढ़ाना - मन्नत पूरी होनेपर किसी देवी-देवताको मिठाई अर्पित करना । - बाँटनाकिसी सफलता या अभीष्ट सिद्धिकी खुशी में मिठाई बाँटना । मिठाना * - अ० क्रि० मीठा होना । मिठास - स्त्री०, पु० मीठापन, माधुर्य । मिठोरी - स्त्री० उरद या चनेकी बरी ।
मिडिल - वि० [अ०] बीचका, मध्यवर्ती । -ची- वि० मिडिल पास (तिरस्कार सूचक) । -कास-पु० आठवीं कक्षा; मध्यम श्रेणी ।
मिदुलिया+ - स्त्री० मढ़िया, कुटी ( ग्राम० ) |
मितंग* - पु० हाथी ।
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मित - * स्त्री० मिति, सीमा- 'ममकृत दोस लिखे बसुधा भर तक नहीं मित नाथ' - सू० वि० [सं०] नपा-तुला, परिमित; थोड़ा; क्षिप्त । - भाषी ( षिन् ) - वि० कम बोलनेवाला; नपे-तुले शब्दोंमें अपनी बात कहनेवाला - भुक्त, - भोजी ( जिन्) - वि० थोड़ा खानेवाला, मिता हार -मति - वि० अल्पबुद्धि । -व्ययिता - स्त्री० किफायत- शिआरी । - व्ययी ( यिन् ) - वि० कम खर्च करनेवाला, किफायत-शिआर ।
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मित्र - पु० [सं०] दोस्त, बंधु, सखा, साथी; युद्धादिमें साथ देनेवाला राष्ट्र; सूर्य; बारह आदित्यों में से पहला । -कर्म(नू ) - पु० मित्रोचित कार्य । -घ्न-वि० विश्वासघाती, दोस्तको दगा देनेवाला । -द्रोह - पु० मित्रका अहित, अनिष्ट करना । - द्रोही ( हिन्) - वि० मित्रका द्रोह करनेवाला । - पंचक- पु० घी, शहद, घुँघची, सुहागा और गुग्गुल - इन पाँचोंका योग। -भाव-पु० मित्रता, दोस्ती | -भेद-पु० दोस्तीका टूट जाना । राष्ट्र - पु०, - शक्ति - स्त्री० (एलाइड पॉवर) मित्रतापूर्ण संबंध रखनेवाला देश या राज्य । -लाभ - पु० मित्रकी प्राप्ति, किसी से दोस्ती होना ।
मित्रता - स्त्री०, मित्रत्व - पु० [सं०] दोस्ती । मित्राई* - स्त्री० मित्रता । मित्रावरुण - पु० [सं०] मित्र और वरुण । मिथः ( स ) - अ० [सं०] परस्पर, अन्योन्य | मिथिला- स्त्री० [सं०] विदेहकी राजधानी। पति -पु०
जनक |
मिथुन - पु० [सं०] नर-मादा, स्त्री-पुरुषका जोड़ा; संयोग; मैथुन; बारह राशियों में से तीसरी ।
मिथुनीकरण - पु० [सं०] नर-मादाको इकट्ठा करना, जोड़ा मिलाना ।
मिथुनीभाव - पु० [सं०] मैथुन, जोड़ा खाना । मिथ्या - वि० [सं०] झूठ, असत्यः व्यर्थ । -चर्या स्त्री० कपटाचरण, मक्कारी । -जल्पित-पु० असत्य भाषण, झूठी चर्चा । -ज्ञान- पु० भ्रम । - नाम- पु० (मिसनोमर) ऐसा नाम या ऐसा शब्द जो किसी व्यक्ति, कार्य, वस्तु आदि के लिए उपयुक्त न हो। - पुरुष - पु० दे० 'छायापुरुष' । - प्रतिज्ञ - वि० प्रतिशाका पालन न करनेवाला । -वचन - वाद-पु० झूठी बात, असत्य कथन । - वादी ( दिन) - वि० झूठा, मिथ्याभाषी । मिथ्याचार - पु० [सं०] कपटाचरण, मक्कारी । मिथ्यात्व - पु० [सं०] मिथ्यापन, झुठाई । मिध्याध्यवसिति - स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जहाँ कोई झूठी कही हुई बात साबित करनेके लिए दूसरी झूठी बात कही जाय ।
मिथ्यापवाद- पु० [सं०] झूठी तुहमत, आरोप ।
मिताई+ - स्त्री० मित्रता, दोस्ती । मिताक्षरा - स्त्री० [सं०] याज्ञवल्क्य स्मृतिकी विज्ञानेश्वर - मिथ्याभियोग- पु० [सं०] झूठा अभियोग, झूठा इलजाम कृत टीका ।
लगाना ।
मितार्थ - वि० [सं०] परिमित अर्थवाला । पु० चतुराई के मिथ्यारोपण - पु० [सं०] (विलिफिकेशन) आधारहीन साथ थोड़ी बातें कहकर ही काम साधनेवाला दूत । या झूठे आरोप लगाकर बदनाम करना ।
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