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बैजंती-बोझ बैजंती, बैजयंती-स्त्री० दे० 'वैजयंती'।
बैदई-स्त्री० वैद्यका पेशा । बैज-पु० [अं॰] बिला।
बैदाई*-स्त्री० चिकित्सा, उपचार । बैट-पु० [अ०] गेंद खेलनेका बला ।
बैदेही-स्त्री० दे० 'वैदेही। बैटरी-स्त्री० [अं०] तोपखाना; रासायनिक पदार्थोंके योग- बैन*-पु० वचन, बोल। से विद्युत् उत्पन्न करनेका एक यंत्र ।
बैनतेय-पु० दे० 'वैनतेय', गरुड़ । बैठक-स्त्री. बैठनेका कमरा, चौपाल; बैठनेकी चीज, बैना-पु० दे० 'बायन'; दे० 'दा'। * स० क्रि० बोना। आसन; पेंदा; बैठनेका ढंग; बहुतसे लोगोंका किसी खास बैपारी-पु० दे० 'व्यापारी' । कामके लिए इकट्ठा बैठना, जमाव; जलसा, अधिवेशन; बैयर*-स्त्री० स्त्री। उठना-बैठना, सुहबत; मूर्ति या खंभेके नीचेका आधारबैयाँ*-अ० घुटनोंके बल । उठने-बैठनेकी कसरत; एक पेंच; बैठकी; एक तरहकी बैया*-पु० बैसर, कंघी; 1 छोटी ननद ।। पूजा, नियाज। -खाना-पु० बैठने, मिलने-जुलनेका बैरंग-वि० [अ० 'बेयरिंग'] (चिट्टी, पारसल आदि) जिसका कमरा । -बाज़-वि० धूर्त, शरारती।
महसूल भेजनेवालेने न चुकाया हो। मु०-लौटनाबैठका-पु० बैठने या मित्रोंसे मिलने-जुलनेका कमरा । । बिना काम हुए, विफल लौटना । बैठकी-स्त्री० उठने बैठनेकी कसरत; आसन; मेजपर रख· | बैर-पु० 'बेर' नामक फल; शत्रुभाव, दुश्मनी; विरोध, कर जलानेका लैप (टेबुल लैंप) ।
बुराई । मु.-काढ़ना,-लेना-बदला लेना ।-ठाननाबैठन-स्त्री० बैठनेकी क्रिया; बैठनेका ढंग, आसन । शत्रुता करना। -पढ़ना-कष्ट देना। बैठना-अ० क्रि० इस तरह स्थित होना कि चूतड़ जमीन | बैरक-पु० [अ०] झंडा, निशान ।
या किसी आसनपर टिका रहे और कमरसे ऊपरका धड़ बैरख*-पु० दे० 'बैरक'। उसके बल सीधा रहे, आसीन होना; चढ़ना, सवार रन, बैरिन-स्त्री० शत्रु स्त्री सौत । होना; इजलास करना; अपनी जगह पर ठीक आना, बैराखी-स्त्री. एक गहना, बरेखी । छोटा-बड़ा न होना (चूल, नग); (नस, जोड़का) बैराग, बैराग्य-पु० दे० 'वैराग्य' । अपनी जगह पर आ जाना; अँटना; धंसना, दबना | बैरागर*-पु० खानि ।। गिरना, ढहना (घर); तह में जमना; तौलमें ठहरना; बैरागी-पु० वैष्णव साधुओंका एक भेद । लगना, खर्च होना पड़ना, लगना (लाठी, डंडा); बैराना*-अ० क्रि० बातग्रस्त होना; दे० 'बौराना'। (स्त्रीका) रखेली बनना, घरमें पड़ना; बेकार रहना बैरी-वि०, पु० दुश्मन, विरोधी । डूबना, अस्त होना; काम बिगड़ना; सधना, मॅजना | बैल-पु० गो-जातिका नर जो अनेक देशों में कृषिका मुख्य (हाथ); अंडे सेना; (चावलका) सील खाकर थकासा हो आधार है । वि० मूर्ख, निर्बुद्धि (ला०)। ~गाड़ी-स्त्री० जाना । बैठा-ठाला-वि० बेकार, निठला। बैठा-भात- बैल द्वारा खींची जानेवाली गाड़ी। पु० पानी और चावलको एक साथ आगपर चढ़ाकर | बैसंतर, बैसंदर*-पु० वैश्वानर, अग्नि । पकाया हुआ भात । बैठी रोटी-स्त्री० बिना मेहनतकी बैस-स्त्री० वयस, उम्र, जवानी । मु०-चढ़ना-जवानी आमदनी (पेंशन आदि)। बैठे-बिठाये, बैठे-बैठे-अ० आना । अकारण; मुफ्त में अचानक ।
बैसना*--अ० क्रि० दे० 'बैठना'। बैठनि*-स्त्री. बैठनेकी क्रिया या तरीका ।
बैसर-पु० जुलाहोंका एक औजार, कंधी। बैठवाना-सक्रि० बिठाने, रोपनेका काम दूसरे से कराना। बैसवाडी-स्त्री० बैसवाड़की बोली, अवधीका एक भेद । बैठाना-स० वि० किसीको भूमि या आसनपर स्थित बैसाख-पु० चैतके बाद पड़नेवाला महीना, वैशाख । कराना, बैठनेको कहना स्थापित कराना; अपनी जगहपर -नंदन-पु० 'वैशाखनंदन', गधा। स्थित करना; सवार कराना; जमाना, जड़ना; अपनी बैसाखी-स्त्री० वह लाठी जिसे टेककर लँगड़े चलते हैं। जगहपर लाना (नस, जोड़); दबाना, पिचकाना (फोहा); वैशाखकी पूर्णिमा। रोपना, गाड़ना; घरमें डाल लेना; बेकार बना देना।
बैसाना, बैसारना -स० क्रि० दे० 'बैठाना' । बैठारना*-म० क्रि० दे० 'बैठालना'।
बैसिक-पु० दे० 'वैशिक' (वेश्यागामी)। बैठालना-स० वि० दे० 'बैठाना' ।
बैहर*-स्त्री० 'वायु'। * वि० डरावना। बैडाल-वि० [सं०] बिडाल-मंबंधी। -प्रतिक,-व्रती- बाँगना-पु० एक बरतन, बहुगुना। (तिन)-वि० धर्मका आडंबर करनेवाला, ढोंगी।
बौंडा-पु० बारूदमें आग लगानेकी रस्सी। बैढ़ना*-स० क्रि० दे० 'वेदना' ।
पोआई-स्त्री० बोनेका काम; बोनेकी उजरत । बैत-स्त्री० [अ०] शेर, पद्य । -बाज़ी-स्त्री० पद्य-पाठकी | बोआना-स० क्रि० बोनेका काम दूसरेसे कराना । प्रतियोगिता; अंत्याक्षरी ।
बोक*-पु० बकरा। बैतरनी-स्त्री० दे० 'वैतरणी' ।
बोझ-पु० भार, वजन; भारी लगनेवाली चीज; गठरी, बैताल-पु० वेताल; स्तुतिपाठक, भाट ।
गट्ठा; उतना भार, सामान जितना एक आदमी, बैल, बैतालिक-पु० दे० 'वैतालिक'।
घोड़ा आदि एक बारमें उठा सके, खेप; भारी लगनेवाला बैद-पु० दे० 'वैद्य'।
काम, आदमी; कार्यभार, जिम्मेदारी। मु०-उठाना
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