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कोरि-कौंतेय -जवाब-पु० साफ इनकार ।
दरबेकी तरह, बड़े खानेके भीतर बने हुए, छोटे-छोटे खाने कोरि*-वि० करोड़।
जिनमें कागज-पत्र रखे जाते हैं। -पाल-पु० भंडारी कोरिया-पु० एक नीच जाति ।
कोषाध्यक्ष । -बद्धता-स्त्री० कब्ज ।-शुद्धि-स्त्री० पेटकी कोरी-पु० हिंदू जुलाहा ।
सफाई, आँतका मलरहित हो जाना। कोर्ट-पु० [अं॰] दरबार, राजसभा; अदालत, न्यायालय । कोष्टक-पु० [सं०] लकीरोंसे बनाया हुआ खाना; कई
-इंस्पेक्टर-पु० फौजदारी अदालतोंमें पुलिसकी ओरसे खानोंवाला चक्र, सारणी; चहारदीवारी; अंकों, शब्दों मुकदमोंकी पैरवी करनेवाला अफसर ।
आदिको घेरनेमें व्यवहृत चिह्नोंका जोड़ा (केट)। कोल-पु० [सं०] सूअर, कृबड़, गोद; एक जंगली जाति; कोष्ठागार-पु० [सं०] भंडार; कोषागार । काली मिर्च बर।
कोष्ठागारिक-पु० [सं०] कोशवासी प्राणी; भंडारी। कोलना-स० क्रि० लकड़ी या पत्थरको बीचसे काटकर कोष्ठाग्नि-स्त्री० [सं०] पाचनशक्ति, आग्नेय रस । पोला करना।
कोष्टी-स्त्री० [सं०] जन्मपत्री। कोलाहल-पु० [सं०] बहुससे लोगोंके एक साथ बोलनेसे कोस-पु० दूरीकी एक नाप जो लगभग दो मीलके बराबर होनेवाला शोर, हंगामा, हल्ला; एक संकर राग। | होती है । कोसों, काले कोसों-बहुत दूर । कोलिया -स्त्री० तंग रास्ता; कुलिया, गली।
कोसना-स० क्रि० निंदा करना; बुरा-भला कहना कोलियाना -अक्रि० तंग रास्तेसे जाना । पु० कोलियोंके गालियोंके रूपमें शाप देना । (मु०पानी पी-पीकर रहनेका स्थान ।
कोसना-बहुत अधिक कोसना ।) कोली-स्त्री० अँकवार; सँकरी गली । पु० कोरी । कोसल-पु० [सं०] एक प्राचीन जनपद, अवध; कोसलवासी। कोल्हू-पु० ईख या तेल पेरनेका यंत्र । मु०-काटकर कोसला-स्त्री० [सं०] कोसल प्रदेशको राजधानी, अयोध्या। मुंगरी बनाना-छोटे लाभके लिए बड़ी हानि करना। कोसा-पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा; मिट्टीका कसोरा; -का बैल-कड़ी मेहनत करने, हर वक्त पिसनेवाला; बददुआ। -काटी-स्त्री० शापके रूप में गाली । एक ही जगह चक्कर खानेवाला।
कोसिया-स्त्री० मिट्टीका छोटा कसोरा । कोविद-वि० [सं०] पंडित, विद्वान्, प्रवीण ।। कोसिला*-स्त्री० दे० 'कौशल्या' । कोविदार--पु० [सं०] कचनारका पेड़ या फूल ।
कोहड़ा-पु० दे० 'कुम्हड़ा'। कोश-पु० [सं०] अंडा; गोलक (नेत्रकोष); पानपात्र; | कोल्डौरी-स्त्री० दे० 'कुम्हड़ौरी' । म्यान; धनागार, खजाना; सोना-चाँदी; संचित धन; कोह-पु० * क्रीध; [फा०] पहाड़, पर्वत । -आतिश-पु० शब्दकोश, लुगत; खोल, आवरण; रेशमका कोया; कटहल ज्वालामुखी पहाड़। -(हे) आदम-पु० लंकाके एक आदिका कोया; वेदांतमें माने हुए जीवात्माके पाँच पर्वतकी चोटी जिसपर बिहिश्तसे निकाले जानेके बाद (अन्नमय, प्राणमय आदि) आवरण; अंडकोष; कली; आदमका उतरना माना जाता है। -कन-वि०पहाड़ गुठली । -कार-पु० शब्दकोश बनानेवाला; म्यान खोदनेवाला। पु० फरहाद । -काफ-पु० काफ पर्वत, बनानेवाला; रेशमका कीड़ा । -कारक,-कीट-पु० काकेशस पर्वतमाला जिसके आसपासके लोग बहुत सुंदर रेशमका कीड़ा ।-कीट-पालन-पु० (सेरिकल्चर) रेशमके होते हैं ।-नूर-पु०भारतका एक इतिहास प्रसिद्ध हीरा । कीड़े पालनेका काम या उद्योग ।-पति-पु० कोषाध्यक्ष। -सार-पु० पहाड़ी स्थान, प्रदेश; पहाड़। -पान-पु० अभियुक्तके अपराधी या निरपराध होनेकी काहनी-स्त्री० दे० 'कुहनी' । जाँचकी एक प्राचीन विधि । -पाल-पु० कोषरक्षक । | कोहबर-पु० वह घर या कमरा जिसमें विवाहके समय -वृद्धि-स्त्री० अंडवृद्धिका रोग; धनवृद्धि ।
। कुलदेवताकी स्थापना और कुछ रस्में अदा की जाती है । कोशल-पु० [सं०] एक राग; दे० 'कोसल'।
कोहरा-पु० दे० 'कुहरा'। कोशला-स्त्री० [सं०] दे० 'कोसला'।
कोहल-पु० [सं०] नाट्यशास्त्रको प्रणेता एक मुनि । कोशा(पा)गार-पु० [सं०] खजाना, रुपया-पैसा रखनेका कोहाँरी-पु० दे० 'कुम्हार' । धर, तोशखाना।
कोहान-पु० [फा०] ऊँटकी पीठपरका कूबड़ । कोशाणु-पु०सं०] (सेल) वे सूक्ष्म सजीव कण जिनके कोहाना-अ०क्रि० रूठना, रुष्ट होना ऋद्ध होना। योगसे पिंडका निर्माण होता है।
कोहिस्तान-पु० [फा०] पहाड़ी प्रदेशः पर्वतमाला । कोशा (षा)धिप, कोशा(षा)ध्यक्ष-पु० [सं०] खजांची। कोही-वि० * क्रोधी; [फा०] पहाड़ी। + स्त्री० बाज कोशिश-स्त्री० [फा०] श्रम; यत्न, उद्योग ।
पक्षीकी मादा। कोष-पु० [सं०] दे० कोश'।-विपत्र-पु० (ट्रेजरी विल्स) कौंकम-वि० [सं०] केसर-संबंधी; केसरके रंगका; केसरमें दे० 'खजानेकी इंडियाँ ।
रँगा हुआ। पु० एक केतुवर्ग । कोष्ठ-पु० [सं०] घरका भीतरी भाग; कोठा; शरीरके कौंच-स्त्री० सेम जैसी एक फली जिसकी तरकारी बनती भीतरका आमाशय, मूत्राशय, पित्ताशय जैसा कोई अंग और दवाके काम भी आती है। इसकी बेल, केवाँच । पु० पेट; बड़ी आँत, मलाशयः शरीरके अंदरका एक चक्र [सं०] हिमालयका एक पहाड़ । भंडार, बखार; चहारदीवारी; कोष्ठक, (ब केंट) । -खंड- कौंछ-स्त्री० दे० 'कौंच'। पु० (पिजन होल) (किसी आलमारी आदिमें) कबूतरके। कौंतेय-पु० [सं०] कुंतीपुत्र-युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन ।
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