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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५४ प्रकोप से तलवेका चमड़ा फट जाता और दर्द करने लगता है, बेवाई; * कुलटा नारी - ' अपनो पति छाँड़ि और निसों रति, ज्यों दारनिमें दारी' - स्वामी हरिदास । दायक - पु० [सं०] देनेवाला, दाता; दायाद । दायज, दायजा - पु० विवाहके समय वरपक्षको दिया जाने दारु-पु० [सं०] काष्ठ, काठ; पीतल; देवदारु; शिल्पी, वाला धन आदि, यौतुक, दहेज । दायमी - वि० [अ०] सदा रहनेवाला, सार्वकालिक; स्थायी । दायर - वि० [अ०] चलनेवाला, फिरनेवाला; जो निर्णयके लिए हाकिमके सामने पेश किया गया हो । मु०-करना - निर्णयके लिए मुकदमा अदालत में पेश करना । दायरा - पु० [अ०] गोल घेरा; कार्य या अधिकारका क्षेत्र । दायाँ - वि० दाहिना । कारीगर; उदार व्यक्ति । वि० दानशील; चटपट टूट या फूट जानेवाला; विदारण करनेवाला | - कृत्य - पु० लकड़ीका काम । - जोषित - स्त्री० दे० 'दारु- योषित्' । -नटी, - नारी - स्त्री० कठपुतली । -पुत्रिका, - पुत्री - स्त्री० कठपुतली । - यंत्र - पु० काठका बना हुआ यंत्र; कठपुतली । - योषा, - योषित्,- योषिता - स्त्री० कठ पुतली । - वधू - स्त्री० काठकी गुड़िया । - सार - पु० चंदन । - हस्त - हस्तक-पु० काठकी करछी । दारुका - स्त्री० [सं०] काठकी पुतली; काठको मूर्ति । दाया - * स्त्री० दे० 'दया' । स्त्री० [फा०] दे० 'दाई' | -गरी - स्त्री० दाईका काम | दायागत-वि० [सं०] जो मौरूसी हिस्से में पड़ा हो । पु० दारुण - वि० [सं०] कठोर; निर्दय; भयंकर; उग्र; घोर; दायके रूपमें प्राप्त दास । कँपा देनेवाला । पु० भयानक रस; एक नरक । दायाद - पु० [सं०] दायका अधिकारी, ज्ञाति; सपिंड दारुन* - वि० दे० 'दारुण' | दायक - दावा का उत्तराधिकारियों में विभाजन; इसकी व्यवस्था या कानून; दायाधिकार । संबंधी पुत्र | दायादा, दायादी स्त्री० [सं०] कन्या; दायकी अधिकारिणी । दायाधिकारी होना- अ० क्रि० (सक्सीड) किसीकी मृत्युके बाद उसकी संपत्ति पानेका अधिकारी होना, उत्तराधिकारी बनना । दायापवर्तन - पु० [सं०] उत्तराधिकार में मिली हुई जायदादकी जब्ती । दायित्व - पु० [सं०] दायी होनेका भाव, जिम्मेदारी । दायी ( यिन्) - वि० [सं०] देनेवाला; पहुँचानेवाला (समासांतमें); उत्तरदायी । दायें - अ० दाहिनी तरफ । दार-* पु० दारु, काष्ठ; [सं०] चीरना; दरार, छिद्र । स्त्री० स्त्री, पत्नी; + स्त्री॰ दाल । - कर्म (न्) -पु०, - क्रिया - स्त्री० विवाह । - ग्रहण, परिग्रह - पु० विवाह | दारक - पु० [सं०] बालक; पुत्र; शावक; ग्राम-शूकर । दारचीनी - स्त्री० एक प्रकारका तज जिसका छिलका दवा और मसाले के काम आता है । दारण - पु० [सं०] निर्मली; वह अस्त्र आदि जिससे कुछ चीरा जाय; चीरनेकी क्रिया, भेदन; औषधका एक भेद । वि० चीरने या विदीर्ण करनेवाला | दारन* - वि० दे० 'दारुन'; 'दारण' । पु० दे० 'दारण' | दारना * - स० क्रि० चीरना, फाड़ना; नष्ट कर देना । दारमदार - पु० [फा०] किसी कार्यके होने या न होने अथवा बनने-बिगड़ने की पूरी जिम्मेदारी; कार्यभार । दारा - स्त्री० स्त्री, पत्नी, भार्या । पु० [फा०] मालिक; शाह । दाई - स्त्री० [फा०] एक तरहका लाल रेशमी कपड़ा । दारि - स्त्री० [सं०] विदारण, छेदन; * दे० 'दाल' | दारिॐ* - पु० दे० 'दाडिम' । दारिका - स्त्री० [सं०] कन्या, पुत्री । दारिद* - पु० दे० 'दारिद्र्य' । दारिद्र* - पु० दे० 'दारिद्रथ' । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दारुमय - वि० [सं०] काठका; काठका बना हुआ । दारू-स्त्री० [फा०] दवा; बारूद; शराब । दारो* - पु० अनारका दाना या बीज । दारोगा - पु० [फा०] हिफाजत करनेवाला; निगरानी करनेवाला; थानेदार । -गरी - स्त्री० दारोगाका काम या ओहदा । दारोगाई - स्त्री० दारोगा का काम या ओहदा । दारयों * - पु० अनार; अनारका दाना । दार्शनिक - पु० [सं०] दर्शनशास्त्रका जानकार, तत्त्ववेत्ता । वि० दर्शनशास्त्र संबंधी । दाल - स्त्री० दली हुई अरहर, मूँग आदि जिसे मिझाकर भात, रोटी आदिके साथ खाते हैं; पकायी हुई दाल, सालन; खुरंड | - मोठ- स्त्री० घी या तेलमें तली हुई दाल जिसमें नमक, मिर्च आदि मिलाते हैं । मु० - गलना -युक्तिका सफल होना । - में काला होना- कोई दोष छिपा होना । - रोटी चलना - निर्वाह होना । दालचीनी - स्त्री० दे० 'दारचीनी' । दालना* - स० क्रि० दे० 'दलना' । दालान - पु० बरामदा, ओसारा । दाव- पु० बार, मर्तबाः कार्यसिद्धिका उपयुक्त अवसर, सुयोग; इष्टसाधनका उपाय, युक्ति; कुश्तीका पेच; छलनेकी चाल; जूए आदिके खेल में जितानेवाली चाल; खेलनेकी बारी; + जगह, रिक्त स्थान । दाव- पु० [सं०] वन, जंगल; वनमें लगनेवाली अग्नि; दाह; पीडा, कुश; + पु० एक हथियार; जगह, रिक्त स्थान । दावत- स्त्री० भोजका निमंत्रण; कोई काम करनेका बुलावा । दावन* - पु० दमन; संहार; हँसिया; दामन । वि० नाश करनेवाला । दावना - स० क्रि० दमन करना; नष्ट करना; दाँना । दावनी - स्त्री० स्त्रियोंका एक शिरोभूषण । वि० [स्त्री० नष्ट करनेवाली । दारिद्र्य - पु० [सं०] दरिद्रता, धनहीनता, निर्धनता, गरीबी। दावरी* - स्त्री० दे० 'दाँवरी' | दारिम * - पु० दे० 'दाडिम' | दारी - स्त्री० [सं०] दरार; एक क्षुद्र रोग जिसमें वायुके दावा- स्त्री० दे० 'दावाग्नि' । पु० [अ०] स्वत्वकी रक्षाया अन्याय के प्रतिकार के लिए न्यायालय में दिया हुआ प्रार्थना For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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