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अपिंडी (डिन) - वि० [सं०] पिंडरहित, अशरीरी ! अपि - अ० [सं०] और भी; अगरचे । -च-अ० और भी,
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विना पैरका; निरुपाय |
अपार - वि० [सं०] जिसका पार न हो; असीम, असंख्य अपूरब - * - वि० दे० 'अपूर्व' | अपूरा* - वि० दे० 'अपूर'; व्याप्त ।
अत्यधिकः पहुँच के बाहर । अपारदर्शिता - स्त्री० (ओपेसिटी ) आरपार न देखे जा अचूर्ण - वि० [सं०] जो पूरा या भरा न हो; अधूरा; सकनेका गुण, अपारदर्शी होनेका भाव या गुण । न्यून - भूत-पु० क्रियाके कालका एक भेद जिसमें अपार्थिव - वि० [सं०] जो पृथ्वी या मिट्टी-संबंधी न हो भूतकाल तो पाया जाय, पर क्रियाकी समाप्ति न हुई या उससे उत्पन्न न हुआ हो । हो (व्या० ) ।
अपाव* - पु० दे० 'अपाय' * ।
अपूर्व - वि० [सं०] जो या जैसा पहले न हुआ हो; अद्अपावन - वि० [हिं०] अपवित्रः मैला, गंदा | भुत, बे जोड़: उत्तम । - रूप- पु० अर्थालंकारका एक भेद । अपावर्त्तन-५०, अपावृत्ति - स्त्री० [सं०] लौटना; पीछे अपेक्षण-पु० [सं०] अपेक्षा करना या रखना; चाह, आशा हटना अस्वीकृति; घूमना, चक्कर देना ।
या आवश्यकता; विचारणा ।
अपासन - पु० [सं०] फेंकना; प्रार्थना आदिकी अस्वीकृति अपेक्षणीय, अपेक्ष्य - वि० [सं०] अपेक्षा करने योग्य । ( रिजेक्शन ), अलग करना; वध करना । अपेक्षा - स्त्री० [सं०] दे० 'अपेक्षण' । - कृत - अ० किसी की तुलना में (न्यूनाधिक ) ।
अपासु - वि० [सं०] निर्जीव, मृत ।
अपाहज, अपाहिज-पु० अपंग; निकम्मा; आलसी; अपेक्षित - वि० [सं०] जिसकी चाह, प्रतीक्षा या आवश्य अकर्मण्य |
कता हो ।
बल्कि | -तु-अ० किंतु ।
अपिच्छिल - वि० [सं०] अपंकिल, स्वच्छ; गहरा, गाढ़ा । अपिधान - पु० [सं०] ढकना; छिपाना; ढक्कन; आच्छादन । अपीच - वि० ( अपीच्य ), अति सुंदर, गुप्त | अपीडन - पु० [सं०] पीड़ा न देना; दया, अनुकंपा । अपीत - वि० [सं०] जिसने मद्यपान नहीं किया है । पु० पीतसे भिन्न वर्ण ।
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अपूज्य - वि० [सं०] पूजा या सम्मान के अयोग्य । अपूठा * - वि० अपुष्ट; अधकचरा अनभिज्ञ; अविकसित । अपूत - वि० [सं०] अपवित्र, अशुद्ध; अपरिष्कृतः * निपूता । अप - पु० [सं०] मालपुआ; गेहूँ ; मधुचक्रः । अपूर* - वि० भरपूर, प्रचुर ।
अपार - अप्रतिष्ठा
अपूरना * - स० क्रि० भरना; फूँकना, बजाना ।
अपेक्षी (क्षिन्) - वि० [सं०] अपेक्षा करनेवाला; आकांक्षा, प्रतीक्षा करनेवाला (परमुखापेक्षी) । अपेच्छा - + स्त्री० दे० 'अपेक्षा' ।
अपेय - वि० [सं०] न पीने योग्य । अपेल * - वि० अटल; अकाट ।
अपैठ* - वि० पैठ या पहुँचके बाहर, दुर्गम ।
अपोगंड - वि० [सं०] सोलह बरससे अधिक अवस्थावाला, बालिग; भीरु; विकलांग |
अपौरुष, अपौरुषेय - वि० [सं०] पुरुषार्थहीन; भीरु; अपुरुषोचित, अलौकिक, ईश्वरीय; मनुष्यकृत नहीं, ईश्वरकृत । अप्रकाशित - वि० [सं०] प्रकाशहीन; अप्रकट; न छपा "हुआ, जो छपकर जनसाधारणके सामने न आया हो । अप्रकृत - वि० [सं०] अयथार्थ; बनावटी; अप्रधान, आनु पंगिक, गौण; आकस्मिक; विषयसे असंबद्ध | अप्रखर - वि० [सं०] अतीक्ष्ण; सुस्त; कोमल । अप्रगल्भ - वि० [सं०] सलज्ज; विनीत; दब्बू ; जो प्रौढ़ या ढीठ न हो; ढीला |
अपील - स्त्री० [अ०] साग्रह प्रार्थना; चंदे आदि के लिए सार्वजनिक प्रार्थना; किसी अदालतका फैसला बदलवानेके लिए उससे ऊपरकी अदालत में दरख्वास्त देना, पुनर्वि चारकी प्रार्थना । - अदालत - स्त्री०अपील सुननेकी अधिकारिणी या मातहत अदालतोंके फैसल किये हुए मुकदमे सुननेवाली अदालत |
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अपुण्य - वि० [सं०] अधार्मिक, अपवित्र, बुरा । पु० पुण्य का अभाव ।
अप्रचलित - वि० [सं०] जिसका चलन या व्यवहार न हो ।
अपुत्र, अपुत्रक - वि० [सं०] पुत्रहीन, निपूता | अपुत्रिक - पु० [सं०] ऐसी लड़कीका पिता जो अपुत्र होने अप्रच्छन्न- वि० [सं०] अनावृत, प्रकट, खुला हुआ ।
के कारण उत्तराधिकारिणी न बनायी जा सके । अपुनपो, अपुनपौ- पु० दे० 'अपनपी' | अपुनरावर्तन - पु० [सं०] फिर न लौटना; भोक्ष । अपुनीत - वि० [सं०] अपवित्र, दूषित | अपुष्ट - वि० [सं०] जिसका पोषण या बाढ़ ठीक तरहसे न हुई हो; कमजोर; मंद (स्वर); एक अर्थदोष (सा० ) । अपुष्प - वि० [सं०] पुष्पहीन, जोन फूले । पु० गूलर नामक वृक्ष । - फल, - फलद - वि० बिना फूले फल देने वाला | पु० कटहल; गूलर ।
अप्रज- वि० [सं०] निस्संतान; अजात, न जनमा हुआ । अप्रतिकारी (रिन् ) - वि० [सं०] प्रतिकार न करनेवाला । अप्रतिबंध - पु० [सं०] रोक-टोक न होना, स्वच्छंदता । वि०बे-रोक-टोक, स्वच्छंद ; बिना किसी झगड़ेके प्राप्त (का० ) । अप्रतिबद्ध - वि० [सं०] वे रोक; मनमाना । अप्रतिभ - वि० [सं०] प्रतिभाहीन, जिसे जवाब या बचाव न सूझे, अप्रत्युत्पन्नमति; उदास; मंद । अप्रतिभट - वि० [सं०] प्रतिभटहीन, जिसका मुकाबला करनेवाला कोई न हो । पु० ऐसा योद्धा । अप्रतिभाव्य - वि० [सं०] (नॉन बेलेबिल) ( वह अपराध ) जिसमें किसी के जामिन बनने या जमानत देने को तैयार होनेपर भी अपराधी के अस्थायी रूपसे रिहा किये जानेकी गुंजाइश न हो ।
अपूजा - स्त्री० [सं०] अनादर, अभक्ति ।
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अप्रतिम - वि० [सं०] बे-जोड़, अनुपम । अप्रतिष्ठा - स्त्री० [सं०] आदर-मानका अभाव; बे-इज्जती;