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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१ अप्रतिष्ठित-अब बदनामी, अपकीत्ति। पहुँचा हुआ। [स्त्री०-यौवना।] - अप्रतिष्ठित-वि० [सं.] प्रतिष्ठाहीन, समाजमें जिसका कच्ची उभ्रका, ना-बालिग। आदर-सम्मान न हो। | अप्राप्ति-स्त्री० [सं०] न मिलना, अलाभ; पूर्वनियमसे अप्रतिसंबद्धा भूमि-स्त्री० [सं०] वह भूमि जो दूसरीसे | प्रमाणित न होना, अनुपपत्ति । सटी न हो। (को०)। अप्राप्य-वि० [सं०] न मिलनेवाला, अलभ्य । अप्रतिहत-वि० [सं०] जिसे कोई रोकनेवाला न हो, अप्रामाणिक-वि० [सं०] प्रमाणरहित; न मानने योग्य अबाधित; अपराजित; अक्षुण्ण । -गति-वि० जिसकी अविश्वसनीय । गति किसी प्रकार रोकी न जा सके। अप्रासंगिक-वि० [सं०] प्रस्तुत विषयसे असंबद्ध प्रसंगके अप्रतिहार्य-वि० [सं०] जिसका निरोध न किया जा सके। विरुद्ध या बाहरका । अप्रतीत-वि० [सं०] अप्रसन्न; अगम्या विरोधरहित; | अप्रियंवद-वि० [सं०] दे० 'अप्रियवादी' । अस्पष्ट (अर्थवाला-एक शब्ददोष)। अप्रिय-वि० [सं०] जो प्यारा न हो; अरुचिकर, नापसंद अप्रतीति-स्त्री० [सं०] प्रतीतिका अभाव, अविश्वास वैर करनेवाला । -कर,-कारक,-कारी (रिन् )-वि० (अर्थादिका) स्पष्ट न होना। अरुचिकर । -वादी (दिन)-वि० कटुभाषी, कठोर अप्रत्यक्ष-वि० [सं०] जो दिखाई न दे, अगोचर; परोक्ष । । बात करनेवाला। -कर-पु० (इनडाइरेक्ट टैक्स) वह कर जो प्रत्यक्ष रूपसे अप्रीति-स्त्री० [सं०] अरुचि, वैर; दुर्भावः स्नेहाभाव । न लिया जाकर विक्रेय वस्तुओं आदिकी बढ़ी हुई कीमतके -कर-वि० कठोर; अनुकूल; अप्रिय । रूपमें उपभोक्ताओंसे उद्गृहीत किया जाय । अप्रैल-पु० ईसवी सालका चौथा महीना, एप्रिल । अप्रत्यय-पु० [सं०] विश्वासका अभाव प्रतीतिका, ज्ञानका अप्रौढ-वि० [सं०] अधृष्ट; भीरु; नम्र; अशक्त नाबालिग । अभाव । वि० विश्वास रहित; अनभिज्ञ । अप्रीढा-स्त्री० [सं०] कुमारी कन्या; वह कन्या जिसका अप्रत्यादेय-वि०[सं०] (इरिकव्हरेबिल) जो फिर प्राप्त या हालमें ही विवाह हुआ हो, पर रजस्वला न हुई हो। वसूल न किया जा सके । अप्सर-* स्त्री० दे० 'अप्सरा'। अप्रत्याशित-वि० [सं०] जिसकी आशा न रही हो | अप्सरा (रस)-स्त्री० [सं०] स्वर्गलोक-वासिनी वेश्या, अनसोचा, आकस्मिक। परी। -पति-पु० [हिं०] इंद्र । अप्रधान-वि० [सं०] गौण छोटा। अफ़ग़ान-वि० [फा०] अफगानिस्तानका रहनेवाला अप्रमत्त-वि० [सं०] लापरवाह नहीं, सावधान, जागरूक।। वि० [स] लापरवाह नहा, सावधान, जागरूक। अफताली-पु० पड़ावपर पहलेसे जाकर आरामका प्रबंध. अप्रमेय-वि० [सं०] जिसकी नाप न हो सके; बेहद, | जसका नाप न हो सक, बेहद, करनेवाला कर्मचारी। बे-हिसाब; जो सिद्ध या प्रमाणित न किया जा सके; | अफनाना-अ० क्रि० उबलना; क्रुद्ध होना । अशय। अफयून-स्त्री० [अ०] अफीम । अप्रयुक्त-वि० [सं०] जो काममें न लाया गया हो, अन्य-अफरना-अ० कि. जीभर खाना अधाना; ऊपना । वहृतः अप्रचलित (शब्द)। अफरा-पु० पेट फूलनेका रोग; अपच या वायुविकारसे अग्रवर्ती-वि० [सं०] (इन-आपरेटिव्ह) जो लागू न हो; जो पेटका फूलना। अपनी क्रिया न कर रहा हो, प्रभाव न डाल रहा हो। अफरा-तफरी-स्त्री० [फा०] गोलमाल; बदहवासी; आतंक । अप्रवृत्ति-स्त्री० [सं०] प्रवृत्तिका अभाव; कोष्ठबद्धता । अफराना*-अ०वि० दे० 'अफरना' । अप्रशस्त-वि० [सं०] अप्रशंसित; निंद्य; क्षीण । अफल-वि० [सं०] फलरहित; निरर्थक बाँझ । अप्रसन्न-वि० [सं०] खिन्न; उदास; नाखुश, नाराज। अफलातून-पु० [फा०] प्राचीन यूनानका एक प्रमुख अप्रसाद-पु० [सं०] अकृपा, अनुकूलता। विद्वान् तथा दाशनिक, प्लेटो। -का नाती-अपने बड़अप्रसिद्ध-वि० [सं०] जिसे अधिक लोग न जानते हों, पनकी डींग मारनेवाला । गुमनाम; असामान्य । अफ़वाह-स्त्री० [अ०] किंवदंती, उड़ती खबर; गप्प । अग्रसूता-स्त्री० [सं०] बंध्या स्त्री । वि०स्त्री० बिनव्यायी। अफसर-पु० [फा०] प्रधान अधिकारी हाकिम, सरदार । अप्रस्तुत-वि० [सं०] अनुपस्थित; अप्रसक्त; अवर्ण्य; गौण, | अफसरी-स्त्री प्रधानता; हुकूमत; अधिकार । अप्रधान; अनुद्यत । पु० उपमान । -प्रशंसा-स्त्री० एक अफसाना-पु० [फा०] कहानी, आख्यान; उपन्यास । अर्थालंकार जहाँ प्रस्तुतके अर्थ अप्रस्तुतका वर्णन । -नवीस-निगार-पु० कहानी-लेखक उपन्यासकार । किया जाय । अफसोस-पु० [फा०] दुःख खेद; पछतावा । अप्राकरणिक-वि० [सं०] जिसका प्रकरण या विषयसे | अफ्रीम-स्त्री० पोस्तेके ढांढका गोंद जो नशे और दवाके संबंध न हो। काम आता है। -ची-वि० अफीम खानेका आदी । अप्राकृत-वि० [सं०] अस्वाभाविक अलौकिक असाधारण। अनीमी-वि० दे० 'अफीमची'। अप्राकृतिक-वि० [सं०] अस्वाभाविक, प्रकृति-विरुद्ध । | अफुल्ल-वि० [सं०] अविकसित (पुष्प)।। अप्राज्ञ-वि० [सं०] ज्ञानहीन; अशिक्षित । अबंधु, अबांधव-वि० [सं०] मित्रहीन, अकेला; जिसके भप्राप्त-वि०सिं०] न मिला हुआ; न आया हुआ; न कोई न हो। पहुँचा हुआ अप्रस्तुत । -यौवन-वि० युवावस्थाको न । अब-अ० इस समय; इस क्षण, फिलहाल; आगेसे । पु० For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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