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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णक-वर्षक शास्त्रकी एक विधि जिससे वर्णवृत्तोंके भेदों में आनेवाली वर्तमान-वि० [सं०] जो इस समय चल रहा हो, चालू लघु और गुरु मात्राओंकी संख्या मालूम हो जाती है। उपस्थित, विद्यमान; साक्षात् ; आधुनिक, हालका। पु० -परिचय-पु० संगीतका शान; अक्षरोंका शान या यह व्याकरणका एक काल जिससे सूचित होता है कि क्रिया करानेवाली पुस्तिका । -प्रत्यय-पु० वर्णवृत्तोंके कुल भेद | मौजूदा समय में हुई या हो रही है। तृत्तांत । जाननेकी छंदःशास्त्रकी विशेष प्रक्रिया। -प्रस्तार-पु० वर्ति-स्त्री० [सं०] कोई लपेटी हुई वस्तु, बत्ती; अंजन; निश्चितसंख्यक वर्गों के भेद-उपभेद और स्वरूप प्रकट करने | घावमें भरनेकी बत्ती; धावपर बाँधनेकी एक तरहकी पट्टी। वाली छंदःशास्त्रकी विशेष प्रक्रिया। -भेद-पु० रंग या -ग्रह-पु० (बर्नर) किसी दीपक, लैंप आदिका वह भाग जातिके कारण होनेवाला भेदभाव । -मर्कटी-स्त्री० | जिसमें बत्ती पड़ी रहती है तथा जो उसकी लौका नियंत्रण छंदःशास्त्रकी एक विशेष प्रक्रिया जिससे निश्चितसंख्यक करता है (कुछ लोग इसे 'दग्धक' भी कहते हैं)। वर्गों के संभाव्य वृत्तों आदिका पता लगता है।-माला,- | वर्तिका-स्त्री० [सं०] बत्ती; सलाई, शलाका; तूलिका। राशि-स्त्री० अक्षरोंकी यथाक्रम सूची, स्वर-व्यंजन सहित वर्तित-वि० [सं०] धुमाया, चलाया हुआ; संपादित । सभी अक्षर । -विकार-पु० किसी वर्णका दूसरे वर्णका वर्ती-स्त्री० [सं०] दे० 'वति' । रूप ग्रहण करना (निरुक्त)। -विचार-पु० वर्णोंके | वर्ती(र्तिन)-वि० [सं०] बरतनेवाला; स्थित रहनेवाला आकार, उच्चारण और संधिके नियमोंसे युक्त व्याकरणका (पदांतमें-जैसे दूरवी आदि); करनेवाला । एक भाग । -विद्वेष-पु० (कलर प्रेजुडिस) (अश्वेत) वर्ण | वर्तुल-वि० [सं०] गोल, वृत्ताकार । पु० गाजर; मटर । या रंगके कारण किसी व्यक्ति या व्यक्ति-समूहसे विद्वेष | वर्तलाकार, वर्तलाकृति-वि० [सं०] गोल । करनेकी प्रवृत्ति ।-विपर्यय-पु० वर्णोंका उलट-फेर होना | वर्म(न)-पु० [सं०] मार्ग; लीक; प्रथा; पलक; औंठ, (निरुक्त)। -वृत्त-पु० वह छंद जिसके चरणोंमें लघु गुरु | बारी, किनारी; आधार, आश्रय । यथाक्रम और वर्णसंख्या समान हो। -व्यवस्था,- | वर्दी-स्त्री० दे० 'वरदी' । व्यवस्थिति-स्त्री०हिंदू समाजके चार वर्णा में विभाजित | वर्द्धक, वर्धक-वि० [सं०] बढ़ानेवाला पूर्तिकारक । किये जानेकी परिपाटी वर्णविभाग। -संकर-पु० दो | वर्द्धकी(किन्), वर्धकी(किन)-पु० [सं०] बढ़ई। भिन्न जातियोंके स्त्री-पुरुषके सहवाससे उत्पन्न व्यक्ति। वर्द्ध (ध)न-पु० [सं०] काटना, छीलना; पाल-पोसकर वर्णक-पु० [सं०] नकाब, अभिनेताकी पोशाक। बड़ा करना; बढ़ाना; अभ्युदय करनेवाला; बढ़ानेवाला; वर्णन-पु० [सं०] चित्रण; रंगना; लिखना; कोई बात | दूसरे दाँतपर जमनेवाला दाँत । व्योरेवार कहना, बयान प्रशंसा, गुणकथन । वर्द्ध(ध)मान-वि० [सं०] बढ़ता हुआ; वृद्धिशील । वर्णना-स्त्री० [सं०] ब्योरेवार कुछ कहना; प्रशंसा, गुण- | वर्द्ध(ध)यिता(त)-पु० [सं०] बढ़ानेवाला । कथन । वर्द्धित, वर्धित-वि० [सं०] बढ़ा हुआ; कटा हुआ; वर्णनातीत-वि० [सं०] जिसका वर्णन न किया जा सके। भरा हुआ। वर्णनीय-वि० [सं०] चित्रण या वर्णनके योग्य । वद्धिष्णु, वर्धिष्णु-वि० [सं०] वृद्धिशील । वर्णातर-पु० [सं०] भिन्न जाति, दूसरी जाति । वर्म(न)-पु० [सं०] बख्तर, कवच, आश्रयस्थान; बचाव । वर्णाध-वि० [सं०] (कलर ब्लाइंड) जिसे रंगोंका ज्ञान न | -धर-हर-वि० कवच धारण करनेवाला, कृतसन्नाह । हो, जो रंगोंमें भेद न कर सके। वर्मा(र्मन्)-पु० [सं०] एक उपाधि जिसका क्षत्रिय, वर्णानुक्रमसे-अ० (एलफाबेटिकली) वर्णों के अनुक्रमसे। | कायस्थ आदि प्रयोग करते है। वर्णाश्रम-पु० [सं०] जाति और आश्रम । -धर्म-पु० वर्वट-पु० [सं०] बोड़ा, लोबिया ('बरबटी' छत्तीस०) वर्ण और आश्रम-संबंधी कर्तव्य ।। वर्वर-पु० [सं०] एक देश; नीच जाति; वर्वर देशका वर्णिक-पु० [सं०] लेखक । वि० वर्ण-संबंधी। -वृत्त-पु० निवासी (धुंधराले बालवाला); मूर्ख । दे० 'वर्णवृत्त'। | वर्य-वि० [सं०] श्रेष्ठ; चुनने योग्य; प्रधान ( पदांत में वर्णिका-स्त्री० [सं०] चित्र या चित्र-शैली में व्यवहृत विशिष्ट प्रयुक्त-जैसे 'पंडितवर्य')। पु० कामदेव । वर्गों, रंगोंका समवाय; स्याही, मसि । वर्ष-पु० [सं०] वर्षा; एक काल परिमाण, साल (सौर, वर्णित-वि० [सं०] कथित; वर्णन किया हुआ; चित्रित । चांद्र, नाक्षत्र और सावन); पृथ्वीका खंड; भारत ।-गाँठ वर्ण्य-पु० [सं०] प्रस्तुत विषयः उपमेय । वि० वर्णन या -स्त्री० [हिं०] दे० 'बरसगाँठ'। -न-वि० वर्षा रोकने चित्रणके योग्य । या वर्षासे बचानेवाला ।-त्र-त्राण-पु० छाता ।-पति वर्तका, वर्तकी-स्त्री० [सं०] मादा बटेर।। -पु० वर्षका अधिपति (ग्रह)। -प्रवेश-पु० नये सालवर्तन-पु० [सं०] चकर खाना; घुमाना; फेर-फार; व्यव- का आरंभ। -प्रिय-पु० चातक । -फल-पु० वर्षभरहार, आचरण; (कमोशन) एजेंट या दलालको किसी सौदे- का शुभाशुभ, इष्टानिष्ट सूचित करनेवाली कुंडली।-बोध पर मिलनेवाली छूट या रकम, दस्तूरी। -अभिकर्ता- -पु० (ईयर बुक) प्रतिवर्ष प्रकाशित होनेवाली वह पुस्तक (1)-पु० ( कमीशन एजेंट) कमीशन या दलाली लेकर जिसमें वर्षभरकी मुख्य घटनाओं, सामाजिक और राजकिसी बड़े व्यवसायी या व्यापारिक संस्थाके प्रतिनिधि, नीतिक हलचल तथा विशेष जानकारीकी बातोंका संकलन अभिकर्ता(एजेंट)का काम करनेवाला। किया गया हो। वर्तनी-स्त्री० [सं०] मार्ग; पिसाई तकला, रहना; हिज्जे। वर्षक-वि० [सं०] बरसानेवाला; वर्षा करनेवाला । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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