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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ उद्भावना-उनतीस (जिसका पहले अस्तित्व न रहा हो); आविर्भावन, उपशा । उद्वास-पु० [सं०] निकालना; खदेड़ना; त्यागः वध करनेउद्भावना-स्त्री० [सं०] उद्भवः कल्पना । के लिए ले जाना; वध; मुक्त करना । उद्भास-पु० [सं०] चमक, दीप्ति प्रकाश । उद्वासन-पु० [सं०] खदेड़ देना; गृहादि नष्ट कर देना, उद्भासित-वि० [सं०] व्यक्त; चमकता हुआ; प्रकाशित; | उजाड़ना; मार डालना । अलंकृत। उद्वासित-वि० [सं०] (डिसप्लेस्ड) दे० 'विस्थापित' । उद्भिज्ज-वि० [सं०] धरती फोड़कर बाहर निकलनेवाला; उद्वाह-पु० [सं०] उठाना; सँभालना; विवाह । उगनेवाला। पु० पेड़-पौधे, वनस्पति । -शास्त्र-पु० उद्वाहन-पु० [सं०] उठाना; सँभालना; विवाह करना; वनस्पतिशास्त्र। एक बार जोते हुए खेतको जोतना; चिंता। उद्भिद-वि० [सं०] धरती फोड़कर उगने, निकलनेवाला। उद्विकासित-वि० [सं०](इवॉल्वड) जो आरंभिक अवस्थासे पु० अँखुआ; पौधा; उत्स, झरना । धीरे-धीरे पूर्ण विकासको अवस्थाको पहुँचाया गया हो, उद्भूत-वि० [सं०] उत्पन्न, सृष्ट । जो क्रमशः विकसित किया गया हो। उद्भति-स्त्री० [सं०] उत्पत्ति; उत्कर्ष, उन्नति । उद्विग्न-वि० [सं०] उद्वेगयुक्त, परेशान; चिंतित; खिन्न । उद्भेद-पु० [सं०] बीजका अंकुरित होना, धरती फोड़कर | उद्वग-पु० [सं०] क्षोभ, घबराहट; परेशानी; चित्तकी निकलना; प्रकट होना; उत्स; ज्वालामुखीका फूटना। अस्थिरता; चिंता; भय; मनोवेग । उभेदन-पु० [सं०] फोड़कर बाहर निकलना; उगना; उद्वजक-वि० [सं०] उद्वेगकारक, क्षोभ उत्पन्न करनेवाला । प्रकट होना। उद्वल-वि० [सं०] उफनकर बहनेवाला; मर्यादाका उभ्रम-पु० [सं०] घूमना, चक्कर खाना; धुमाना; अतिक्रमण करनेवाला; अतिशय । पश्चात्ताप। उदोलित-वि० [सं०] ऊपरसे बहाया हुआ। उद्भ्रांत-वि० [सं०] धूमा, चक्कर खाया हुआ; भीत; उधड़ना-अ० क्रि० खुलना, टूटना (सीवन; टाँका); अलग भ्रमितचित्त; हेरान; व्याकुल; उन्मत्त; पागल ।। होना (खाल इ०); बिखरना; उखड़ना। उद्यत-वि० [सं०] उठाया हुआ,तानाहुआ तैयार,आमादा। उधम*-पु० दे० 'ऊधम । उद्यम-पु० [सं०] उठाना श्रम, मेहनत; उद्योग धंधा। उधर-अ० उस ओर, वहाँ; उस पक्षमें । -से-उस ओरउद्यमी(मिन्)-वि० [सं०] मेहनती; उद्योगी। से दूसरे पक्षकी ओरसे। -ही उधर-बाहर ही बाहर, उद्यान-पु० [सं०] बगीचा, वाटिका । -कर्म-पु० (हार्टि- वक्ताके पास न आकर । कल्चर) उद्यान में पेड़-पौधे लगाने तथा उनकी देखभाल | उधरना-अ० क्रि० उद्धार होना; दे० 'उघड़ना'। स० आदि करनेका काम । -गोष्टी-स्त्री० (गार्डन पाटी) क्रि० उद्धार करना। किसीके उद्यान में या दूर्वाक्षेत्र आदिपर आयोजित प्रीतिभोज उधराना-अ० कि० तितर-बितर होना, बिखरना; उड़ अथवा प्रीतिसम्मेलन । -पाल,-रक्षक-पु० माली। जाना; गायब हो जाना। उद्यापन-पु० [सं०] व्रतादिकी समाप्ति ; व्रतकी समाप्तिपर उधार-पु० कर्ज; मैंगनी; *उद्धार ।-पट्टा अधिनियमकिया जानेवाला हवनादि । पु० (लैंड एंड लीज ऐक्ट ) द्वितीय महायुद्धके समय उद्यापित-वि० [सं०] विधिपूर्वक पूर्ण किया हुआ; जिसको | अमेरिका द्वारा प्रवर्तित अधिनियम जिसके अनुसार उद्यापन हो चुका हो। वह युद्ध लिप्त मित्र राष्ट्रोंको आवश्यक सामग्री या उद्योग-पु० [सं०] अध्यवसाय; यत्न श्रमउद्यम कार्य सैनिक महत्वके अड्ड उधार अथवा पट्टे पर देता था जीवनके लिए आवश्यक सामग्री उत्पन्न करनेका धंधा, और उनसे भी इसी प्रकार सहायता प्राप्त करता था। 'इंडस्ट्री' । -धंधा-पु० [हिं०] उत्पादक धंधा। -पति मु०-खाना-कर्जपर गुजर करना । -खाये बैटना-पु० माल तैयार करनेवाले कारखानेका मालिक । - किसी बातपर तुल जाना; किसी चीजके आसरे रहना । शाला-स्त्री० माल तैयार करने या उत्पादक धंधा सिखाने- उधारक, उधारन*-वि०, पु० उद्धार करनेवाला । वाली संस्था। -समीकरण-पु० (रैशनलिजेशन आफ उधारना*-स० क्रि० उद्धार करना। इंडस्ट्री) श्रमिकोंक काम, समय तथा सामग्री आदि-संबंधी | उधारी*-वि०, पु० दे० 'उधारक' । बरबादी दूर कर उद्योगकी स्थिति सुधारना;अभिनवीकरण। उधेड़ना-स०नि० खोलना, तोड़ना (सीवन, टाँका आदि); उद्योगी(गिन्)-वि० [सं०] उद्योगशील, कोशिश में लगा उखाड़ना; अलग करना; बिखेरना । मु० उधेड़कर रहनेवाला; मेहनती। रख देना-कच्चा चिट्टा खोल देना; सब दोष, बुराई उद्योत-पु० दे० 'उद्योत' । उधर देना। उद्रेक-पु० [सं०] बढ़ती; अधिकता आरंभ; अर्थालंकारका उधेड़-बुन-पु० सोच-विचार, चिंता; उलझन । एक भेद। उधेरना*-स० कि० दे० 'उधेड़ना'। उदाह-पु० [सं०] बेटा; वायुके सात स्तरों मेंसे एक। उनंत*-वि० झुका हुआ, नमित । उद्वहन-पु० [१०] उठाकर ले जाना; उठाना; सँभालना; उनइस*-वि०, पु० दे० 'उन्नीस' । विवाह करना; (किसी वस्तुसे) युक्त या संपन्न होना।- | उनचन-स्त्री० उंचन, अदवान । यंत्र-पु० (पंप) पानी, तेल आदि ऊपर उठाकर बाहर उनचास-वि० चालीस और नौ, ४९ । पु० ४९ की संख्या। निकालनेवाला पिचकारी जैसा यंत्र । | उनतीस-वि० बीस और नौ, २९ । पु० २९ की संख्या। For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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