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दुगन
-पु०
दु
कूल' ।
दुअन-दुनवना कपड़ा। -सेजा*-पु० पलंग। -हत्था-वि० जिसमें दुखित -वि० दे० 'दुःखित' । दोनों हाथ काममें लाये गये हो; दो मूठोंवाला।-हत्थी-दुखिया-वि० दुःखमें पड़ा हुआ, विपद्ग्रस्त । स्त्री० मालखंभकी एक कसरत ।
दुखियारा-वि० दुखिया, संकटापन्न । दुअन-पु० दे० 'दुवन'।
दुखी-वि० जिसे मानसिक व्यथा हो; खिन्न; रुग्ण । दुअरवा*-पु० दे० 'द्वार'।
दुखीला -वि० दुःखयुक्ता जिसे दुःखका अनुभव हो दुअरिया*-स्त्री० छोटा दरवाजा ।
रहा हो। दुआ-स्त्री० [अ०] ईश्वरसे माँगनाः प्रार्थना, याचना; दुखौहाँ*-वि० दुःखकर, कष्टप्रद । आशीर्वाद (करना, माँगना)।
दुगई*-स्त्री०बरामदा-'अति अदभुत खंभनकी दुगई'-राम। दुआदस*-वि० दे० 'द्वादश' ।
दुगदुगी-स्त्री० छातीके नीचेका गढ्ढा, धुकधुकी । दुआर, दुआरा -पु० दे० 'दार'।
दुगना*-१० क्रि० दे० 'दुकना' ।वि० दे० 'दु'के साथ। दुआरी -स्त्री० छोटा द्वार ।
दुगासरा*-पु० दुर्गके पासका गाँव छिपनेका स्थान । दुइ-वि० दे० 'दो।
दुगूल-पु० [मं०] दे० 'दुकूल'। दुइज*-स्त्री० दे० 'दूज' । पु० द्वितीयाका चंद्रमा। | दुग्ग-पु० दे० 'दुर्ग'। दई-स्त्री०दो होना, दोकी भावना, द्वतः गैर समझना। दुग्ध-पु० [सं०] दृधः पौधोंका दूध जैसा रस; दहना। दुऔ-वि० दोनों।
वि० दूहा हुआ। -फेन-पु. दूधका फेन, मलाई; एक दुकड़हा-वि० जिसकी कीमत एक दुकड़ा हो; एक-एक __ पौधा, क्षीरहिंडीर ।-समद्र-पु० पुराणोक्त सात समुद्रों
टुकड़ेके लिए लालायित रहनेवाला; अधम कोटिका । | मेंसे एक, क्षीरसागर । दुकड़ा-पु० युग्म; जोड़ा; एक पैसेका चौथा हिस्सा । दुग्धोद्योग-पु० [सं०] (डेअरी इंडस्ट्री) दूध तथा उससे दुकढ़ी-स्त्री० ताशकी वह पत्ती जिसपर किसी रंगकी दो बननेवाले विभिन्न पदार्थ-मक्खन, घी आदि-तैयार
बूटियाँ छपी हों; वह बग्घी जिसमें दो धोड़े जुते हों। करानेका उद्योग । दुकना*-अ०क्रि० छिपना, लुकना।
दुग्धाब्धि-पु० [सं०] क्षीरसागर ।-तनया-स्त्री० लक्ष्मी। दुकान-स्त्री० [फा०] वह स्थान जहाँ बेचनेकी चीजें सजाकर दुग्धिका-स्त्री० [सं०] दुद्धी नामकी घास, दुधिया । रखी हों, सौदा बेचने और खरीदनेकी जगह । -दार- दुज*-पु० दे० 'दु'के साथ । पु० दुकानका स्वामी, दुकानवाला; वह व्यक्ति जिसने | दुजेश*-पु० दे० 'द्विजेश' । अर्थोपार्जनके लिए ढकोसला रच रखा हो, पाखंडी, ठग । | दुड़ी-स्त्री० दे० 'दुक्की' । -दारी-स्त्री० दुकानदारका धंधा; दुकानदारका पद: धन दुतकारना-सक्रि० 'दुत-दुत' कहकर तिरस्कार करना, कमानेके लिए रचा गया ढकोसला।
धिक्कारना। दुकाल-पु० दे० 'अकाल' (हिं०)।
दुति-स्त्री० दे० 'द्युति' । -मान-वि० दे० 'द्युतिमान्'। दुकूल-पु० [सं०] रेशमी वस्त्र, चिकना और बारीक | -वंत-वि०प्रभायुक्त, कांतिमान् । कपड़ा, क्षौम वस्त्र, पट्ट वस्त्र । -पट्ट-पु० अच्छे कपड़ेका दुतिय*-वि० दे० 'द्वितीय' । साफा।
दुतिया*-स्त्री. 'द्वितीया'। दुकेला-वि० जिसके साथ कोई और भी हो।
दुतीय*-वि० दे० 'द्वितीय' । दुकेले-अ०किसी और के साथ ।
दुतीया*-स्त्री० दे० 'द्वितीया'। दुकड़-पु० शहनाईके साथ बजाया जानेवाला एक बाजा। दुदलाना*-स० क्रि० दे० 'दुतकारना'। दुका-वि० जो एक जोड़ेके रूपमें हो दे० 'दुकेला'। दुद्धी-स्त्री. एक प्रकारकी घास जिसमें दध होता है। दुकी-स्त्री० ताशका वह पत्ता जिसपर किसी रंगकी दो | खड़िया मिट्टी; क्षीरावली लता। बूटियाँ छपी हों।
दुध-पु० 'दूध' शब्दका एक रूपांतर । -मुंहा)*-मुखदुखंत*-पु० दे० 'दुष्यंत'।
वि० दे० 'दूधमुँहा'। -हँदी-स्त्री० दूध गरम करनेका दुख-पु० दे० 'दुःख'।-द-वि० दे० 'दुःखद'।-दाई*- |
मिट्टीका पात्र । वि० दे० 'दुःखदायो' । -दुंद*-पु० दुःख तथा द्व'- दुधार-वि० जिसमें दूध हो जो अधिक दूध देती हो। सुख-दुःख, राग-दोष, शीत-उष्ण आदि परस्पर विरोधी | भाव और अनुभूतियाँ।
दुधिया-स्त्री० दुद्धी नामकी घास, ज्वारकी एक किस्म दुखड़ा-पु. दुःखः दुःखगाथा। मु०-रोना-दूसरेको खड़िया मिट्टी; एक चिड़िया; एक प्रकारका विष । वि० अपनी विपन्नावस्थाका वृत्तांत सुनाना।
दूध मिला हुआ; जिसका रंग दूधकी तरह सफेद हो। दुखना-अ० क्रि० दर्द करना, पीड़ा होना।
-पत्थर-पु. एक तरहका सफेद पत्थर । दुखरा*-पु० दे० 'दुखड़ा'।
दुधैल-वि० स्त्री० जो बहुत दूध देती हो। दुखवना*-स० क्रि० दे० 'दुखाना'।
दुनवना*-अ० कि० किसी लोचदार चीजका इतना झुक दुखाना-स० क्रि० पीड़ा पहुँचाना, कष्ट देना; स्पर्श | जाना कि उसके दोनों सिरे मिल जाय। सक्रि०किसी
आदिके द्वारा फुसी, घाव आदिमें व्यथा उत्पन्न करना । लोचदार चीजको इतना झुका देना कि उसके दोनों सिरे दुखारा, दुखारी-वि० दुःखी, व्यथित ।
आपस में मिल जायें।
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