________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४३
चापलूसी-चालक चापलूसी-स्त्री० [फा०] खुशामद, झूठी प्रशंसा । होना-(कुश्ती में) इस तरह चित होना कि पूरी पीठ चापल्य-पु० [सं०] चंचलता, अस्थिरता ।
और हाथ-पाँव जमीनसे लग जायें पूरी तरह परास्त चाब-स्त्री० एक पौधा; डाढ़ ।
हो जाना; (कोई शोक-संवाद सुनकर) स्तब्ध, बदहवास चाबना-स० क्रि० चबाना; खूब खाना ।
हो जाना; हिम्मत हार जाना। चाबी-स्त्री० कुंजी; पञ्चड़ ।
चार-पु० आचार, रीति, (द्वार-चार); * सेवक, टहलू ; चाबुक-वि० [फा०] फुरतीला, चुस्त, तेज। पु० कोड़ा। [सं०] गति; गुप्तचर, जासूस; कारागार; प्रियाल; कृत्रिम
-सवार-पु० घोड़ेको सधाने, चाल सिखानेवाला। विष । -कर्म(न -पु०,-व्यवस्था-स्त्री० (एस्पिऑनेज) चाभना-स० क्रि० खाना; भकोसना; तर माल खाना। जासूसोंका काम; जासूस नियुक्त कर उनसे काम लेना। चाभी-स्त्री० दे० 'चाबी' ।
चारजामा-पु० [फा०] घोड़ेपर कसनेका कपड़ेका जीन चाम-पु० चमड़ा, खाल । -के दाम-चमड़ेके सिक्के जिसमें काठ नहीं लगा होता । निजाम भिस्तीका चलाया हुआ सिक्का जिसे हुमायूँको चारण-पु० [सं०] तीर्थयात्री; भाट, वंदीजन; गुप्तचर; डूबनेसे बचानेके बदले आधे दिनकी बादशाही मिली राजपूतानाकी एक जाति; चरानेका कार्य । थी; व्यभिचारकी कमाई।
चारन*-पु० दे० 'चारण'। चामर-पु० [सं०] चँवर; मोरछल; एक वर्णवृत्त । चारना*-स० क्रि० दे० 'चराना' । चामरिक-पु० [सं०] चँवर डुलानेवाला ।
चारा-पु० चौपायोंके खानेकी चीज-घास, चरी आदि; चामीकर-पु० [सं०] सोना; धतूरा ।
चिड़ियों, मछलियों आदिको खिलायी जानेवाली चीजचामुंडा-स्त्री० [सं०] दुर्गाका एक रूप ।
सत्त, आटेकी गोली आदि; मछलियाँ फँसानेके लिए चाय-* पु०दे० चाव' । स्त्री० एक पौधा जिसकी पत्तियोंका | कँटियामें लगाया जानेवाला गीला आटा आदि; [फा०] काढ़ा दूध-शकर मिलाकर पिया जाता है। उक्त पौधेकी
उपाय, इलाज। -जोई-स्त्री० (अदालतसे) अन्यायके सुखायी हुई पत्तियाँ चायकी पत्तियोंको उबालकर बनाया प्रतिकारकी प्रार्थना, नालिश, फरियाद । हुआ पेय । -दान-पु०,-दानी-स्त्री० वह बरतन चारि*-वि० चलनेवाला, आचरण करनेवाला; चार । पु० जिसमें चाय बनायी या बनाकर रखी जाय । -पानी- संदेश । स्त्री० दौत्य; चुगली। पु० जलपान ।
चारित-वि० [सं०] जो चलाया गया हो; भबकेसे खींचा चायक*-पु० चाहनेवाला ।
हुआ। पु० आरा; * पशुओंका चारा, चरी। चार-वि० तीन और एक कुछ, कई । पु० चारकी संख्या। चारित्र-पु० [सं०] चरित्र, चाल-चलन; स्वभाव, शील;
-काने-पु० पासेका इस तरह पड़ना कि एकका दो कुलक्रमागत आचार, सदाचार; साधुता सतीत्व (स्त्री) । बिदियोंवाला और दोका एक-एक बिंदीवाला बल चित हो। चारित्र्य-पु० [सं०] दे० 'चारित्र'। -खाना-पु० वह कपड़ा जिसमें रंगीन धारियोंके चौखूटे | चारी-स्त्री० [सं०] जाल; दौत्य; जासूसी; * चुगली। खाने बने हों। -जामा-पु० दे० क्रममें। -दिन-चारी(रिन)-वि० [सं०]चलनेवाला,जानेवाला(व्योमचारी); पु० थोड़े दिन, अल्प काल । -दीवारी-स्त्री० दीवारोंका आचरण करनेवाला। [स्त्री०'चारिणी'] पु० पैदल सिपाही । घेरा, प्राचीर, परकोटा ।-पाई-स्त्री० खाट, छोटा पलंग। चारु-वि० [सं०] प्रिया सुंदर, मनोहर । -नेत्रा,-पाया-पु० चीपाया, पशु । -बाग़-पु० चौकोर बाग; | -लोचना-वि० स्त्री० सुंदर नेत्रोंवाली । -हासिनीवह शाल या रूमाल जो रंगोंके जरिये चार हिस्सों में | वि० स्त्री० मनोहर हँसी, मुसकानवाली (स्त्री)। स्त्री० बँटा हो। (चारों)धाम-पु० चारों दिशाओं में स्थित | एक वृत्त। हिंदुओंके चार प्रधान तीर्थ-पुरी, बदरिकाश्रम, द्वारका | चारेक्षण-पु० [सं०] राजा । और रामेश्वर । -पदार्थ-पु० मनुष्य जीवनके चार चार्चिक्य-पु० [सं०] अंगरागका लेपन; अंगराग। पुरुषार्थ-अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष । मु० (चार) चार्वाक-पु० [सं०] चार्वाक-दर्शनके रचयिता एक मुनि
आँखें करना-देखादेखी, साक्षात्कार करना; निगाह | जो नास्तिक मतके आदि-प्रवर्तक, बृहस्पतिके शिष्य बताये मिलाना । -आँखें होना-देखा-देखी होना ।-क़दमथोड़ा फासला । -के कंधे-के काँधे चढ़ना, चलना-चाल-स्त्री० चलनेकी क्रिया, गति; हिलना, घूमना, हरकत मर जाना, अरथी उठना। -के कान पड़ना-चर्चा | (घड़ीकी चाल); चलनेका ढंग; चलनेकी सायत; चलन, होना, बातका फैलना। -चाँद लगना-शोभा, सुंदरता आचरण; रीतिरिवाज; ढब, बनावट; ढंग, प्रकार; बढ़ना । -दिनकी चाँदनी-दो-चार ही दिन रहने, छल, धोखा देनेवाली बात; कूटयुक्ति; ताश, शतरंज टिकनेवाली बात, चंदरोजा चीज ।-पाँच करना-हीला- आदिमें पत्ते या मुहरेको चलना; आहट; इस दंगसे हवाला करना; हुज्जत करना ।-पाईपर पड़ना-लेटना; बनाया हुआ भारी मकान जिसमें पचासों किरायेदार बीमार होना । -पाईसे पीठ लगना-सख्त बीमार | कुटुंब रह सकें (बंबई); * हलचल |-चलन-पु० आचहोना, उठने-बैठने की शक्ति न रह जाना । (चारों)खाने रण, चरित्र, नीति-संबंधी आचरण । -ढाल-स्त्री० तौरचित गिरना-दे० 'चारों शाने चित गिरना' । तरीका, रहन-सहनका ढंग । -बाज़-वि० चालें चलने -फूटना-दो स्थूल आँखें और दो हृदयकी, सबका | वाला, छलिया, धूर्त । -बाज़ी-स्त्री० छल, धूर्तता । फूट जाना, निपट अंधा होना । -शाने चित गिरना, चालक-वि० [सं०] चलानेवाला; * छली, चालबाज ।
For Private and Personal Use Only