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बकरना - बख़्श
- कसाब - पु० चिक, कमाई ।
बकुल - पु० [सं०] मौलसिरी; शिव ।
बकरना - अ० क्रि० अपना दोष, अपराध स्वीकार करना; बकुला - पु० दे० ' वगला' | बड़बड़ाना ।
।
बकरम - पु० [अ०] 'बकरम'] गोंद आदि से कड़ा किया हुआ कपड़ा जो कपड़ों के कालर, आस्तीन आदि में दिया जाता है । बकरवाना - स०क्रि० किसीसे दोष अपराध स्वीकार कराना । बकरा- पु० एक प्रसिद्ध पालतू चौपाया, छाग, अज । [स्त्री० 'बकरी' ।] मु० (बकरे ) की माँ कबतक ख़ैर मनायेगीदोषी, अपराधी कबतक बच सकता है ? बकरीद - स्त्री० [अ०] दे० ' बक़र-ईद' | बकलस - पु० [अं० 'बकल्स'] लोहे, पीतल आदिका चौकोर छला जिसमें तसमें आदिको फँसाते हैं, बकसुआ ।
बकला - पु० छिलका, छाल । बकवाना - स० क्रि० किसीको बकनेमें प्रवृत्त करना । बकस - पु० [अ० 'बॉक्स'] कपड़े आदि रखनेका छोटा संदूक; गहने आदि रखनेका डब्बा ।
बकसनrt - स० क्रि० दे० 'बख्शना' |
बकसवानrt बकसाना* - स० क्रि० दे० 'बख्शवाना' । बकसीस * - स्त्री० दे० 'बख्शिश' ।
बकसुआ, बकसुवा- पु० दे० 'बकलस' | बकाइन - पु० दे० 'वकायन' ।
बकाउ * - स्त्री० दे० 'बकावली' ।
बकाउर - स्त्री० दे० 'बकावली' ।
बकाना * - स० क्रि० कहलाना; बकवाना | बकायन - पु० नीमकी जातिका एक पेड़ जिसके फल, फूल, बखरैत - पु० हिस्सेदार ।
पत्तियाँ आदि दवाके काम में लाते हैं, महानिंब । बकाया - वि० [अ०] बचा हुआ, बाकी, अवशिष्ट ('बक्रीया'
बकावर * - स्त्री० दे० 'गुलबकावली' | बकावरी * - स्त्री० दे० 'गुलबकावली' | बकावली - स्त्री० दे० 'गुलबकावली' । बकासुर - पु० [सं०] वक नामका दैत्य जो कृष्णके हाथों मारा गया ।
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बकूल- पु० [सं०] दे० 'बकुल' । बकैयाँ - पु० घुटनोंके बल चलना; ऐसी चाल । बकोट - स्त्री० बकोट नेकी क्रिया; बकोटने की मुद्रामें हाथकी उँगलियाँ; वस्तुकी वह मात्रा जो बकोटनेसे चंगुल में आये । बकोटना-स० क्रि० पंजे या नाखूनों से नोचना । बकोटा-पु० बकोटनेकी क्रिया; बकोटने की मुद्रा; वस्तुकी वह मात्रा जो चंगुल या मुट्टीमें आ जाय, वुकटा । बकोरी, बकौरी* - स्त्री॰ बकावली, गुलबकावली । बक्कल-पु० छिलका, छाल ।
बक्काल - पु० [अ०] आटा, दाल आदि बेचनेवाला, बनिया । बक्की - वि० बकबक करनेवाला, बकवादी । बक्कुर+ - पु० मुँह से निकला हुआ शब्द बोल । बक्खर - ५० गाय-बैल बाँधनेका बाड़ा; दे० 'बाखर' । बक्षोज * - पु० उरोज ।
बकिनव* - पु० दे० 'बकायन' ।
बकी - स्त्री० [सं०] मादा बगला; बकासुरकी बहन, पूतना । बकीया - वि० [अ०] बाकी बचा हुआ अवशिष्ट । बकुचन * - स्त्री० हाथ जोड़ना; मुट्टी या पंजे में पकड़ना । बकुचना * - अ० क्रि० सिमटना, सिकुड़ना । वकुचा - पु० गठरी; * ढेर, गुच्छा; जुड़ा हुआ हाथ । बकुची - स्त्री० छोटी गठरी; एक छोटा पौधा जो चर्मरोग में | लाभदायक होता है । मु० - बाँधना, - मारना - हाथ-पैर
|
समेटकर गठरी जैसा बन जाना ।
बकुचीँ हाँ* - वि० बकुचे जैसा ।
बकुर - वि० [सं०] भयंकर । पु० बिजली, वज्र । बकुरना* - अ० क्रि० दे० 'बकरना' । बकुराना * - स० क्रि० कबूल कराना ।
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बक्स - पु० बक्स, संदूक ।
बखत* - पु० दे० 'वक्त'; 'बख्त' - 'वंस सम बखत, बखत सम ऊँची मन' - ललित० ।
बखतर - पु० दे० 'बकतर' ।
बखसीस - स्त्री० दे० ' बख्शिश' । बखसीसना* - स० क्रि० दे० 'बख्शना' । बखान- पु० वर्णन; बड़ाई, गुण-कथन ।
का बहु० ) । पु० बाकी बची हुई चीज; बचत; बाकी पड़ी हुई रकम । -लगान-पु० बाकी पड़ा हुआ लगान । बकारि - पु० [सं०] भीम; कृष्ण । बकारी - स्त्री० मुँह से निकलनेवाला शब्द | मु०- फूटना - बखार-पु० अनाज रखनेके लिए बनाया हुआ बड़े कोठले मुँह से शब्द, बात निकलना ।
बखानना- सु० क्रि० वर्णन करना, सराहना, बड़ाई करना; गालियाँ देना, कोसना (सात पुरखा बखानना) ।
बखरा - पु० दे० 'बाखर'; दे० 'बखरा' |
बखरा - पु० [फा०] हिस्सा, भाग, टुकड़ा ।
बखरी + - स्त्री० ( गाँवके साधारण धरोंकी दृष्टिसे ) बड़ा, अच्छा मकान; जमींदारका मकान ।
जैसा घेरा ।
बख़िया - पु० [फा०] दुहरे टाँकोंकी सिलाई, महीन और मजबूत सिलाईका एक प्रकार । - गर- पु० बखिया करनेवाला । मु० - उधेड़ना - सीवन खोलना; भंडा फोड़
करना ।
बखियाना - स० क्रि० बखिया करना ।
aarat - स्त्री० ईखका रस या गुड़-चीनी देकर पानी में पकाया हुआ चावल |
बख़ील - वि० [अ०] कंजूस, कृपण । बख़ीली - स्त्री० [अ०] कंजूसी ।
बखेड़ा - पु० झगड़ा; झंझट, झमेला; कठिनाई, परेशानी । बखेड़िया - वि० बखेड़ा उठानेवाला, झगड़ालू । बखेरना-स० क्रि० चीजोंको छितराना, फैलाना । बखोरना* - स० क्रि० छेड़ना, टोकना । वख़्त- पु० [फा०] भाग; भाग्य; सौभाग्य | बख्तर - पु० दे० 'वकतर' |
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बख्तावर - वि० [फा०] भाग्यशाली, ऊँचे नसीबवाला । बख्तियार - वि० [फा०] भाग्यवान्, सौभाग्यशाली । बख़्श - वि० [फा०] (संज्ञापदसे समस्त होकर) बख्शनेवाला,