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ओषजन-पागुर जोम-पु० समूह, झुंड; तीक्ष्णता; उत्साह, उमंग ।
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ओषजन-पु० आक्सिजन नामक गैस जिसके योगसे पानी बनता है।
टीपटाप-स्त्री० छत आदिकी छिटफुट मरम्मत ।
कणिश-पु० [सं०] जौ-गेहूँ आदिकी बाल ।
डेद्रिया-पु० (अनाज) उधार देनेका वह प्रकार जिसमें कथकाला, कथाकाली-स्त्री० नृत्यकी एक विशिष्ट शैली।। फसलपर मूलका ड्योढ़ा वसूल किया जाता है। कलमुंडी-स्त्री० कलैया-'कलमुँडी खाकर'-गधभारती । काठ-पु० "मु०-मार जाना-गतिहीन हो जाना, सुन्न को-पु० दे० 'झोझ' ।
हो जाना। कालिब-पु० [अ०] साँचा, कलबूत; देह ।
तबेला*-पु० एक तरहका बरतन । किल्विषी(पिन्)-वि० [सं०] पापी; दोषयुक्त । तब्बर*-पु० पुत्र । कुणप-पु० [सं०] लाश; भाला; दुर्गध ।।
तर*-पु० तरु, वृक्ष । कुत्ता-पु० तालेके अंदरका वह खटका जिसे ताली द्वारा तसू-पु० इमारती कामकी एक माप । सरका देनेसे ताला बंद हो जाता है ।
ताल-पु० चश्मेके शीशेका पल्ला । क्षीव-वि० [सं०] उन्मत्त, मतवाला-'विजयका उत्साह ताला*-पु० लोहेका तवा। दिखाने वे यहाँ किस मुँहसे आये हैं जो हिंसक, पाखंडी, तूफानी दस्ता-पु. पुलिस या सेनाकी वह टुकड़ी जो क्षीव और क्लीव हैं'-ध्रुवस्वा० ।
संकट या आकस्मिक भावश्यकताके समय क्षिप्र गतिसे
सहायतार्थ भेजी जा सके। खंगवा -पु० खुर पकनेका रोग, खाँग । खजमजाना-अ० कि. (तबीयतका) कुछ अस्त-व्यस्त- थमाना-सक्रि० किसीको (कोई वस्तु) थामने में प्रवृत्त सा हो जाना, अस्वस्थता जैसी प्रतीति होना।
करना, पकड़ाना, ग्रहण कराना। खेवइया-पु० दे० 'खेवैया' ।
थूक-स्त्री० थूकनेकी क्रिया।
गुलता-पु० गुलेलेसे फेंकी जानेवाली मिट्रीकी गोली। गेंड़ी-स्त्री० बाँसके दो डंडे जिनमेंसे प्रत्येकपर खडाऊँ जैसा एक-एक पावदान लगा रहता है-इनपर चढकर लोग चलते-फिरते, कूदते फाँदते हैं (अंग्रेजी 'स्टिक्ट')। गेसू-पु० [फा०] जुल्फ, काकुल ।
दिवसस्वा -पु० [सं०] दे० 'दिवास्वप्न'। देवका-स्त्री० दीमक । देवापगा-स्त्री० [सं०] गंगा। दीगरा-पु० तपी हुई धरतीपर होनेवाली ग्रीष्म ऋतुकी अस्पवृष्टिः शोर-गुल, हल्ला-गुल्ला ।
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घड़ी-स्त्री० पानी, बिजली आदिके खर्चका परिमाण | धौंस-स्त्री० दे० 'धुवाँस'।
सूचित करनेवाला यंत्र, 'मीटर' (पढ़ना, देखना)। घोष-पु० [सं०] एक वर्ण-समूह (प्रत्येक वर्गका तीसरा, नउजा-म० दे० 'नौज। चौथा, पाँचवाँ वर्ण और य, र, ल, व, ह)।
ना-किस-वि० [फा०] नीच, बुरा; निकम्मा, नालायक ।
नामरासी-वि० समान नामवाला, हमनाम । चेना-पु. कॅगनी या साँवाँकी जातिका एक मोटा अनाज। निरधन*-वि० दे० 'निर्धन'।
निस्फल-वि० व्यर्थ अंडकोश-हीन । छायापात्र-धु० [सं०] घी या तेलसे भरी हुई वह कटोरी
आदि जिसमें अपने शरीरकी छाया देखी जाती है पंगुपीठ-पु० [सं०] लँगड़ेको बिठाकर कहीं ले जानेकी गाड़ी। (अरिष्ट-निवारणार्थ)।
पगड़ी-स्त्री० दूकान आदि किरायेपर देनेके पूर्व भावी
किरायेदारसे नजरानेके रूपमें ली जानेवाली रकम । जनमुरीद-वि० [फा०] पत्नीके वशमें रहनेवाला, जोरूका पटोली*-स्त्री० चादर, पटोरी। गुलाम।
पट्टकीट-पु० [सं०] रेशमका कीड़ा।। जरा-मना-अ० थोड़ा-बहुत ।
पनारीदार चादर-स्त्री० कलईदार चद्दर जिसमें नालियाँजलवायु-पु० [सं०] किसी स्थानकी गमी, जाड़ा, वर्षा, सी बनी होती हैं और जो खासकर छाजनके काम आती
आदि सूचित करनेवाली वह प्राकृतिक स्थिति जिसका है (कोरोगेटेड टिन)।। प्रभाव वहाँकी आबादी तथा वनस्पति आदिपर पड़ता परवाही-पु० शवको बिना जलाये नदीमें बहा देना। है, आव-हवा।
परिवेषण-पु० [सं०] भोजन परसना-'परिवेषणतक मृदुल जीवप्रभा-स्त्री० [सं०] भात्मा (केशव०)।
करोंसे तुम्हें न करने दूँगी मैं'-पंचव० दे० 'परिवेष' । जी-हजूरी-स्त्री० 'जी हुजुर, जी हुजूर' कहते रहनेका परिसेवना-खी० [सं०] विशेष सेवा । भाष, खुशामद ।
| पाँगुर*-पु० पैरकी उँगली ।
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