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आँ-बाँय - पु० अंडदंड, निरर्थक प्रलाप, बकबक | आँव - पु० एक तरहका चिकना मल; पेचिश रोग । आँट - पु० किनारा; कपड़े या बरतनका किनारा । आँवड़ना* - - अ० क्रि० उमड़ना, बह निकलना । आँवड़ा * - वि० गहरा
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आँवरा - पु० आँवला |
आँवल - स्त्री० खेड़ी, वह झिल्ली जिसमें गर्भस्थ शिशु लिपटा रहता है।
आँवलगट्टा - पु० सूखा आँवला ।
आँवला- पु० एक पेड़ या उसका फल जो मुरब्बा, अचार बनाकर खाने या दवा के काममें आता है । - पत्ती - स्त्री० सिलाईका एक प्रकार । -सार गंधक-स्त्री० साफ की हुई गंधक
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आवा- पु० दे० 'आवाँ' ।
आंशिक - वि० [सं०] अंश संबंधी; कुछ, थोड़ा ।
कज-पु० [सं०] धूप दिखलाया हुआ पानी । आँस* - पु० आँसू ; वेदना, कष्ट । स्त्री० डोरी, रेशा । आँसी * - स्त्री० वायन, भेंद ।
आँसू - पु० नेत्रजल, अश्रु । - ढाल - पु० चौपायों का एक रोग जिसमें आँखों से बहुत पानी गिरता है । मु० - गिराना, - ढालना - रोना । -पीकर रह जाना-मन मसोसकर रह जाना । ( किसीके ) - पोंछना - ढाढ़स बँधाना । आँसुओं से मुँह धोना - बहुत रोना । आँहड़-पु० बरतन |
हाँ - अ० निषेधसूचक शब्द, नहीं ।
आ - उप० [सं०] तक ( आसेतु ); से ( आजन्म ); ( आजीवन); सहित ( आबालवृद्ध) आदिका सूचक । आइंदा - वि० [फा०] आनेवाला, भविष्य । अ० आगे । आइ* - स्त्री० आयु, जीवन ।
आइस (सु) - पु० दे० 'आयसु ' ।
आई* - स्त्री० आयुः मौत ।
आईन - पु० [अ०] विधान, कानून, नियम । आईना - पु० [फा०] दर्पण, शीशा [ला०] स्पष्ट, खुला; किवाडेका दिल्हा । - बंदी - स्त्री० कमरे में झाड़ आदि सजाना; फर्शमें पत्थर आदिकी जुड़ाई; रोशनी करने के लिए टट्टियाँ खड़ी करना। -साज़-पु० आईना बनानेवाला । मु० आईने में मुँह देखना- अपनी योग्यता समझ लेना ।
आईनी - वि० [अ०] वैध, विधानसंगत; नियमबद्ध | आउ* - स्त्री० दे० 'आयु' ।
आउज ( झ ) * - पु० एक बाजा, ताशा । आउ वाउ - पु० आयें-बायें (बकना); प्रलाप | आकंप, आकंपन- पु० [सं०] हिलना, काँपना । आकंपित - वि० [सं०] हिला, काँपा हुआ; हिलाया या कँपाया हुआ; क्षुब्ध किया हुआ ।
आक- पु० मदार |
आक़ (क्रि) बत- स्त्री० [अ०] मृत्यु या प्रलयके बादका काल; परलोक । मु० - बिगड़ना - परलोक बिगड़ना | भाकबाक* - पु० दे० 'अकबक' | आकर - पु० [सं०] खान; उत्पत्तिस्थान; भांडार; भेद ।
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आँय - आकाश
- ग्रंथ - पु० शब्दकोश, विश्वकोष आदि ऐसे ग्रंथ जिनमें शब्दों देशों, व्यक्तियों, घटनाओं इत्यादिका विवरण दिया रहता है और जिनसे ग्रंथादिके प्रणयनमें सहायता ली जाती है, संदर्भ-ग्रन्थ, निर्देश-ग्रंथ ( बुक्स ऑव रेफ्रेंस ) । - भाषा - स्त्री०वह मूल प्राचीन भाषा जिससे कोई नयी भाषा, आवश्यकता होनेपरं, शब्द ग्रहण करे । आकरखना * - स० क्रि० आकृष्ट करना, खींचना । आकरिक - पु० [सं०] खानके कामकी निगरानी करनेवाला; खान खोदनेवाला |
भर आकर्षित - वि० [सं०] दे० 'आकृष्ट' ।
आकरी - स्त्री० [सं०] खान खोदनेका धंधा; * व्याकुलता, आकली ।
आकर्ण-अ० [सं०] कानतक । वि० कानतक पहुँचा हुआ, कानको छूता हुआ । आकर्णन - पु० [सं०] सुनना |
आकर्णित - वि० [सं०] सुना हुआ ।
आकर्ष - पु० [सं०] खींचनाः खिंचाव; चुंबक, पासा; पासेका खेल; पासेकी बिसात; कसौटी । आकर्षक - वि० [सं०] खींचनेवाला; दूसरोंका मन, ध्यान अपनी ओर खींचनेवाला, रोचक, सुंदर । आकर्षण-पु० [सं०] ( अपनी ओर ) खींचना; खिंचाव; दूरस्थ व्यक्तिको मन खींचकर बुला लेनेका तांत्रिक प्रयोग । - शक्ति - स्त्री० किसी भौतिक पदार्थको अन्य पदार्थको अपनी ओर खींचनेकी प्राकृतिक शक्ति, चुंबक-शक्ति । आकर्षन * - पु० दे० 'आकर्षण' | आकर्षना* - स०क्रि० खींचना |
आकलन - पु० [सं०] ग्रहण, पकड़ना; समझाना; इकट्टा करना;, गिनना; खोज करना, अनुसंधान; इच्छा, आकांक्षा ।
आकलित - वि० [सं०] गृहीत; संगृहीत; आवद्ध; गुँथा हुआ; कंपित किया हुआ; समझा हुआ; परिगणित । आकली*-स्त्री० बेचैनी, व्याकुलता; गौरैया नामक पक्षी । आकस्मात् * - अ० दे० 'अकस्मात् ' ।
आकस्मिक - वि० [सं०] अचानक होनेवाला, इत्तिफाकी; कारणहीन । - छुट्टी - स्त्री० अचानक आवश्यकता पड़नेपर ली जानेवाली छुट्टी । आकस्मिकतानिधि - स्त्री० [सं०] (कंटिनजेंसी फंड ) वह निधि या कोष जिसमें से अकस्मात् उपस्थित होनेवाली आवश्यकता आदिके लिए रुपया व्यय किया जा सके । आकांक्षा - स्त्री० [सं०] चाह, इच्छा; अपेक्षा; वाक्यमें
अर्थ- पूर्ति के लिए पदविशेषकी आवश्यकता; खोज - पूछ । अकांक्षित - वि० [सं०] चाहा हुआ; अपेक्षित । आकांक्षी (क्ष) - वि० [सं०] इच्छा, अपेक्षा रखनेवाला । आकार - पु० [सं०] रूप, शल; गढ़न, बनावट; लंबाईचौड़ाई, फैलाव ( छोटा-बड़ा आदि ); एकरूपता; 'आ' स्वर । - पत्र - पु० (फार्म) दे० 'प्रपत्र' | आकारी* - वि० बुलानेवाला ।
आकाश - पु० [सं०] पंच महाभूतोंमेंसे प्रथम जो शब्द गुणवाला माना जाता है, आसमान; ईथर; शून्य (ग०); शून्य स्थान; अवकाश; छिद्र, रंध्रः ब्रह्म; अभ्रक । - कुसुम,
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