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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ बाँधनीपौरि-बाग़ आदिसे अटकाना लपेटना (पगड़ी, पट्टी); लपेटकर कसना, अदबके साथ, विनयपूर्वक । -असर-वि० असर रखनेसमेटना (गठरी, विस्तर ); बाँधकर धारण करना (घड़ी, वाला, प्रभावशाली।-आबरू-वि० आबरूदार, प्रतितलवार); जोड़ना (हाथ ); कैद करना; नियम, वचन ठित । अ० इज्जतके साथ। --इस्तियार-वि० अधिकार आदिसे बंधनमें डालना, पाबंद करना; मेंड़ या बाँध रखनेवाला। -ईमान-वि० ईमानदार । अ० ईमानके बनाकर रोकना; गतिहीन करना; कीलना, शक्ति, प्रभाव साथ। -कार-वि० जो कुछ करता हो, बैठा-ठाला, नष्ट कर देना; जमाना (निशाना); नियत करना (हद, बेकार न हो। -कायदा-वि० नियमित । अ० कायदेके गुजारा, बारी आदि); चूर्ण, चाशनी आदिको गोली, साथ, नियमानुसार ।-ग़रज़-वि० गरजमंद । जाब्तालड्डू आदिका रूप देना ठीक करना (धड़ा); व्यवस्थित, अ० जाबतेसे, नियमानुसार । वि० नियमयुक्त, बाकायदा। क्रमयुक्त करना; जोड़ना, बटोरना (दल, गोल ); बनाना -मज़ा-वि० मजेदार, स्वादिष्ठ । -मरोवत-वि० (मोरचा); लगातार करना, लगाना (झड़ी, ताँता); मुरौवतवाला । -वजूद-अ० होते हुए, यद्यपि, अगरचे । सोचना (खयाल, मंसूबा ); भावको गद्य या पद्य-रचनाका -वा-वि० वफादार प्रीति निभानेवाला वचन पालक । रूप देना, निबंधन । -शऊर-वि०शऊरदार, सलीकादार, चतुर । -सलीक़ाबाँधनीपौरि*-स्त्री० पशुशाला। वि० जिसे काम करनेका सलीका, ढंग आता हो। बाँधन-पु० मंसूबा, बंदिश मनमें बनायी हुई योजना | बाइ*-स्त्री० दे० 'बाई'। खयाली पुलाव; झूठी तोहमत; लहरियादार रंगाईमें बाइनि*-स्त्री० वयना। कपड़ेको जगह-जगह बाँध देना; इस तरह बाँधकर रँगा| बाइबिल-स्त्री० ईसाइयोंकी इलहामी धर्मपुस्तक, इंजील । हुआ कपड़ा।मु०-बाँधना-मंसूबा बाँधना। बाइस-वि०, पु०दे० वाईस' । पु०[अ०] कारण,सबब,हेतु। बांधव-पु० [सं०] भाई-बंधु; स्वजन, निकट-संबंधी, मित्र । बाइसिकिल-स्त्री० [अं॰] दो पहियोंकी गाड़ी जो सवारके बाँबी, बॉमी-स्त्री० दीमकोंका भीटा,बमीटा सापका बिल। पाँवोंकी हरकतके ही सहारे चलती है,साइकिल, पैरगाड़ी। बाँभन*-पु० ब्राह्मण । | बाई-स्त्री० वायु; वातव्याधि । मु०-चढ़ना-सन्निपात बाँस-पु० तिनकेका जातिका एक लंबा, सीधा, गिरहदार होना; मिजाज बिगड़ना। -पचना-बातकोपका शांत पौधा जो बहुतसे काम में आता है, वंश; भूमिकी एक होना; घमंड टूटना। माप; नावकी लग्गी। -पूर-पु० एक बारीक कपड़ा। बाई-स्त्री० स्त्रियोंके लिए आदरसूचक शब्द; प्रतिष्ठित मु०-पर चढ़ना-लदनाम होना । -पर चढ़ाना-बद- महिला; वेश्या। -जी-स्त्री० वेश्या: नायिका । नाम करना। -बजना-लाठी चलना, मारपीट होना। बाईस-वि० बीस और दो। पु० बाईसकी संख्या, २२ । -बजाना-लाठी चलाना, मार-पीट करना ।-बराबर- बाउ*-पु० वायुः अपान वायु । बहुत लंबा । (बाँसी)उछलना-बेहद खुश होना; बहुत बाउर-* वि० बावला; मूर्ख; गूंगा; + खराब, बुरा । उछल-कूद करना। बाउरी -स्त्री० दे० 'वावली'। बाँसली-स्त्री० दे० 'बाँसुरी'।। बाऊ*-स्त्री० दे० 'वायु'। बाँसा-पु० नाकके बीचकी उभरी हुई हड्डी; रीढ़ पिया- बाक-* पु० वाक्य, वचन, शब्द; [सं०] बगलोंका समूह । वामा; बीज गिरानेके लिए हलके साथ लगा हुआ बाँसका -चाल*-वि० वाचाल, बातूनी । नल । -गड़ा-पु० कुश्तीका एक पेंच। मु०-फिर बाकना-अ० क्रि० 'बकना' । जाना-नाककी हड्डीका टेढ़ा होना ( मृत्यु-निकटताका बाकल*-पु० बकला, छाल । सूचक)। बाकला-पु० एक छोटा फसली पौधा जिसकी फलियाँ बाँसी*-स्त्री० बाँसुरी। तरकारीकी तरह खायी जाती हैं। बाँसुरी-स्त्री० पतले पोले बाँसका बना एक वाजा जो मुँहसे बाका*-स्त्री० वाणी, वाकशक्ति । फूंककर बजाया जाता है, वंशी।। बाकी*-अ० लेकिन, मगर । स्त्री० एक धान । बाह-स्त्री. हाथका कंधेमे हथेलीतकका भाग, बाहु, भुजा बाकी-वि० [अ०] बचा हुआ, अवशिष्ट; जो सदा वना (ला०) बल; भरोसा; शरण; आस्तीन; एक कसरत । रहे; मीजूद, विद्यमान; देय, न चुकाया हुआ (पावना)। -तोड़-पु० कुश्तीका एक पेंच । -बोल-पु० रक्षा ग स्त्री० एक संख्याको दूसरीमेंसे घटानेका गणित,व्यपकलन सहायता करनेका वचन । -मरोड़-पु० कुश्तीका एक (निकालना ); घटानेसे निकलनेवाली संख्या। -दारपेंच । मु०-की छाँह लेना-शरणमें आना ।-गहना- वि० जिसके यहाँ लगान या पावना बाकी हो। पकड़ना-भरण रक्षणका भार उठाना; अपनाना; विवाह बाकुल-पु० वल्कल, छाल, वाकल । करना । -चढ़ाना-लड़नेको तैयार होना, आस्तीन बाखरी-पु० एक तृण । चढ़ाना; कोई काम करनेके लिए तैयार होना।-टूटना-बाखरि*-स्त्री० दे० 'बखरी' । सबसे बड़े सहायकका उठ जाना; भाईका मरना ।-देना- बाग-स्त्री० लगाम, रास । -डोर-स्त्री. लगाममें बाँधी सहारा, सहायता देना। जानेवाली रस्सी । मु०-उठाना-चल पड़ना । (किसी बा-* पु० पानी, बार, दफा। स्त्री० [गुजराती माता। ओर)-मोड़ना-घुमाना, ले जाना ।-हाथसे छूटनाअ० [फा०] पास, साथ ( संज्ञापदसे मिलकर युक्तताका | बेकाब होना; मौका हाथसे जाता रहना । अर्थ देता है।)-अदब-वि० अदबवाला, विनीत । अ० | बाग़-पु० [फा०] जमीनका टुकड़ा जिसमें फल-फूलके For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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