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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुतक-बाँधना ५६२ पूरा । अ० अधिक मात्रामें, ज्यादा ।-अच्छा-(स्वीकृति बाँकड़ी, बाँकुड़ी-स्त्री० साड़ी आदिपर टाँकनेका सुनहला सूचक) बेहतर है, ऐसा ही होगा। -करके-अधिकतर, या रुपहला फीता । प्रायः, बहुत संभव है। -कुछ-काफी, थोड़ा नहीं। बाँकना*-स० क्रि० टेढ़ा करना । अ० कि० टेढ़ा होना। -खूब-बहुत अच्छा । बाँका-वि० टेढ़ा, तिरछा, वक्रासज धजका, शौकीन, छलबहुतक*-वि० बहुतसे । छबीला शोख वीर, साहसी; गुंडा । पु० एक अर्धचंद्राकार बहुता-स्त्री०, बहुत्व-पु० [सं०] बहुतायत, आधिक्य ।। औजार जिससे बाँसका काम करनेवाले बाँस छीलतेबहुताइत-स्त्री० दे० 'बहुतात'। काटते हैं। बहुतात, बहुतायत-स्त्री० अधिकता, ज्यादती, इफरात । बाँकिया-पु० नरसिंहा नामका बाजा । बहुतेरा-वि० बहुतसा । अ० बहुत-बहुत तरहसे । बाँकुरा*-वि० टेढ़ा, बाँका; चतुर, वीर, साहसी पैना । बहुतेरे-वि० बहुतसे, अनेक । बाँग-स्त्री० [फा०] आवाज, बोली;मुगेकी आवाज; अजान । बहुधा-अ० [सं०] अनेक प्रकारसे; बहुत करके, अकसर । बाँगड़-पु० हिसार, रोहतक और करनाल जिले । बहरना-अ० क्रि० लौटना, वापस आना, फिर मिलना । बाँगड़ -स्त्री० बाँगड़ देशकी बोली । वि० मूर्ख, उजड़ । बहरि*-अ० फिर पीछे, अनंतर । बाँगर-पु० ऊँची जमीन, वह जमीन जो बाढ़ में न डूबे; बहुरिया-स्त्री० दुलहिन, नयी बहू । एक तरहका बैल । बहरी*-अ० दे० 'बहुरि'। बाँगुर-पु० चिड़ियाँ फँसानेका जाल, फंदा-'तुलसिदास बहुल-वि० [सं०] बहुत, अनेक; बहुतसा, प्रचुर; काला। __ यह विपति बाँगुरो तुमहिंसों बने निबेरे'-विनय० । बहुलता-स्त्री० [सं०] बहुतात, प्रचुरता। बाँचना-स० कि० पढ़ना; * बचाना; चुनना, चयन बहला-स्त्री० [सं०] इलायची; गाय; नीलका पौधा, एक करना । अ० क्रि० बचना, बाकी रहना; रक्षा पाना। देवी; चंद्रमाकी बारहवीं कला। -चौश-स्त्री० [हिं०] | बाँछना* -स्त्रा० दे० 'बांछा' । * स० कि. चाहना; भाद्र-कृष्णा चतुर्थी । -वन-पु० वृंदावनके ४४ वनी- दे० 'बाछना' । मेंसे एक। बांछा*-स्त्री० दे० 'बांछा। बहुलालाप-वि० [सं०] वकवादी । बांछित*-वि० दे० 'वांछित' । बहली*-स्त्री० इलायची। बांछी*-वि० वांछा करनेवाला । बहलीकृत-वि० [सं०] बढ़ाया हुआ, वधित; प्रकट किया बाँझ-वि० जिससे संतान या फल उत्पन्न न हो। स्त्री० हुआ। बंध्या स्त्री, गाय आदि । -पन,-पना-पु० बाँझ होना, बहुशः(शस्)-अ० [सं०] बहुत बार, बहुत तरहसे । । वंध्यत्व। बहुँटा-पु० बाँहपर पहननेका एक गहना । बाँट-स्त्री० बाँटनेकी क्रिया, बटवारा ताश आदिके पत्तोंका बहू-स्त्री० पुत्रवधू; दुलहिन; पत्नी। बाँटा जाना; हिस्सा, बाँटा-'याहूमें कछु बाँट तुम्हारो'बहुपमा-स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार-उपमेयके एक ही सू० दे० 'बाट' । -बूंट-स्त्री० बटवारा, हिस्साबखरा । धर्मके लिए अनेक उपमानोंका कथन । मु०-पड़ना-दे० 'बाँटेमें आना। बहेड़ा-पु० एक जंगली पेड़। बाँटना-स० क्रि० हिस्से करना, कई भाग कर देना; बहेतू-वि० जो इधर-उधर मारा-मारा फिरे, आवारा। बहुतोंको थोड़ा-थोड़ा देना, वितरण करना; * पीसना, बहेरा-पु० दे० 'बहेड़ा'। घोंटना। बहेलिया-पु० चिड़ियाँ फँसानेवाला, चिड़ीमार । बाँटा-पु० बाँटनेकी क्रिया; हिस्सा, वखरा; बाटे में मिलनेबहोर*-पु० बहोरनेका भाव, लौटाना; वापसी । अ० दे० वाली वस्तु । मु. (बाँटे)में आना या पड़ना-हिरसे में 'बहुरि'। आना। बहोरना*-स० क्रि० लौटाना, वापस करना । बाँड़-पु० दो नदियोंके संगमके बीचकी जमीन । + वि० बहोरि*-अ० दे० 'बहुरि'। बाड़ा। बह्र-स्त्री० [अ०] छंद, शेरका वजन । पु० महासमुद्र बाँड़ा-वि० (पशु) जिसकी पूंछ कट गयी हो; (पुरुष) समुद्र; बड़ा दरिया, नद; उदार व्यक्ति; तेज घोड़ा; जिसके आगे-पीछे कोई न हो, असहाय । जहाजोंका बेड़ा। बाँद*-पु० दास, टहलू ; बंधन, फंदा । बाँक-पु० टेढ़ापन, वक्रता; गन्ना छीलनेका सरौतेकी बाँदर*-पु० बंदर।। शकलका औजार; एक तरहकी टेढ़ी छुरी; एक तरहका बाँदा-पु. एक तरहका पौधा जो आम आदिके वृक्षोंमें शिकंजा जिसमें किसी चीजको दबाकर रेतते हैं; दे० लगकर उनके रससे पुष्ट होता है । 'बाँका'; बाजूपर पहननेका एक गहना; पैरका एक गहना; | बाँदी-स्त्री० दासी, लोड़ी। एक तरहकी चौड़ी चूड़ी, बाँक लड़नेकी कला; नदीका बाँदू*-पु० बंदी, बंधुआ। धुमाव; धनुप् । वि० दे० 'बाँका' । -पन,-पना-पु. बाँध-पु. पानी रोकनेके लिए बनायी हुई कची या पक्की टेढ़ापन, वक्रता; सुंदरता, छवि; छबीलापन, शौकीनी मेंड़, बंद । शोखी, अदा। बाँधना-स० क्रि० ररसी, जंजीर आदिमे लपेटकर कसना, बाँकड़ा-वि० वीर, साहसी। गाठ देना, बंधन में लाना; रस्सी आदिमें फंसाकर खूटे For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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