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बागना-बाटी
५६४ पेड़-पौधे करीनेसे लगाये गये हों, बाटिका, उपवन; लगाये में बेचे-खरीदे जानेका भाव, प्रचलित दर। मु०-करना हुए पेड़ोंका झंड, बाड़ी। -बाग़-वि० अति प्रसन्न, प्रमु- -चीजें खरीदने या बेचनेके लिए बाजार जाना । -का दित (होना)। -बान-पु. बागकी देखरेख करनेवाला, गन-वह आदमी जो इधर-उधर मारा-मारा फिरे ।-की माली । -बानी-स्त्री० बागवानका काम या पद । मिठाई-आसानीसे मिलनेवाली चीज; वेश्या। -गरमबागना*-अ० क्रि० बोलना; चलना, घूमना ।
(गर्म)होना-बाजारमें खूब खरीद-बिक्री, चहल-पहल बागर-पु० नदी किनारेकी ऊँची जमीन जहाँतक उसका । होना । (किसी चीजका)-गरम(गर्म)होना-जोर, पानी बादमें भी न पहुँचता हो, (बाँगर ); * जाल, फंदा; अधिकता, प्रबलता होना (रिश्वत,गिरफ्तारियोंका बाजार०)। रस्सी; सूखी मरुमय भूमि-'बागर देश लुअनका घर है'- -गिरना-भाव घटना, मंदी होना । -तेज़ होना-भाव कवीर।
चढ़ना, बहुत माँग होना। -भाव देना या पीटना-खूब बागल*-पु० बगला ।
पीटना, पूरी मरम्मत करना।-मंदा होना-किसी वस्तुबागा-पु० एक पुराना लंबा पहनावा ।
का दाम घटना; कम बिक्री होना। -में आग लगनाबाग़ी-पु० अ०] बगावत करनेवाला, विद्रोही; न दबने- चीजोंके दाम चढ़ जाना। -लगना-बाजारमें चीजोंका वाला, सरकश।
बिक्रीके लिए रखा, लगाया जाना; दुकानें खुलना; चीजोंबाग़ीचा-पु० [फा०] छोटा बाग ।
का ढेर,अंबार लगना; भीड़ होना। -लगाना-चीजोंको बागुर*-पु० जाल, फंदा ।
इधर-उधर फैला देना भीड़ लगाना। बाघंबर-पु० बाघकी खाल; एक तरहका रोयेंदार कंबल । बाज़ारी-वि० बाजारका मामूली, साधारण लोगों में प्रचदाध-पु० सिंह के समान बल-विक्रम रखनेवाला लंबाई में | लित; अशिष्ट (प्रयोग, मुहाविरा)।-औरत-स्त्री०वेश्या। उससे कुछ छोटा एक हिंस्र जंतु, व्याघ्र । -नख-पु० -गप-स्त्री० अविश्वसनीय बात । बघनखा।
बाज़ारू-वि० दे० 'बाजारी'। बाधी-स्त्री० जाँधके जोड़में होनेवाली एक तरहकी गिलटी। बाजि-पु० दे० 'बाजी' । वि० चलनेवाला । बाच*-वि० वाच्य, वर्णनीय ।
बाजी-स्त्री० बड़ी बहन । पु० घोड़ा; * बजनिया। बाचना-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'बाँचना । बाज़ी-स्त्री० [फा०] खेल; करतब, तमाशा दा, शर्त; बाचा*-स्त्री० वचन; वाक्य; बोलनेकी शक्ति प्रतिज्ञा । ताश-शतरंज आदिका एक पूरा खेल; एक खिलाड़ीके -बंध-वि० प्रतिज्ञाबद्ध ।
खेलनेका समय, बारी; धोखा, चालाकी। -गर-पु० बाछ-पु. बाछनेकी क्रिया, छंटाई; चंदे, मालगुजारी जाद के खेल करनेवाला, नट । [स्त्री० 'बाजीगरनी' ।
आदिका आनुपातिक (रसदी) पड़ता; बाछा । स्त्री० मुखका -गरी-स्त्री० बाजीगरका काम; धोखा, चालाकी।-चाप्रांतभाग जहाँ दोनों होठ जुड़ते हैं । मु. (बाछे) पु० खेल, खिलवाड़ । मु०-आना-ताश-गंजीफेकी बाँटखिलना-अति प्रसन्न होना, खुशीसे खिल जाना। में अच्छे पत्ते मिलना । -बदना-शर्त वदना (लगाना)। बाछा -पु० बछड़ा; * बच्चा, वत्स ।
-मारना-जीतना। -ले जाना-आगे बढ़ जाना, बाछी-स्त्री० बछिया।
जीतना। बाज-*पु०घोड़ा,बाजि; दे० 'बाजा'। अ० बिना, छोड़कर- बाजु*-अ० बिना; (-के) सिवा । 'को उठाइ बैठारै बाज पियारे जीउ'-५० ।
बाज़-पु० [फा०] बाहँ, भुजा; सेनाका दाहिना या बायाँ बाज़-पु० [फा०] एक प्रसिद्ध शिकारी चिड़िया। अ० भाग, पक्ष; चिडियाका डैना; चीखटेके दाहिने बार्येकी फिर, दोबारा। वि० वंचित; कोई-कोई, कुछ विशिष्ट । खड़ी लकड़ी, बाजूबंद । -बंद-पु० बाहपर पहननेका प्र० संशापदसे संयुक्त होकर खेलनेवाला, करनेवालाका एक गहना, भुजबंद । मु०-टूटना-बाहँ टूटना, गतबल अर्थ देता है (कबूतरबाज, पतंगबाज़)। -दावा-पु० हो जाना। दावा उठाना, छोड़ना; स्वत्वका त्याग, दस्त-बरदारी। बाझ*-अ० बगेर, बिना। म०-आना-लौटना; छोड़ना, त्यागना; बचना, दूर |
बाझन*-पु० फंसाव, बझाव; उलझन: लड़ाई। रहना ।-रखना-रोकना, मना करना ।
बाझना*-अ० क्रि० दे० 'बझना'-'ते सुअटा पंडित होइ बाजड़ा-पु० दे० 'बाजरा'।
कैसे बाझा आई'-५०।। बाजन*-पु० बाजा।
बाट-पु० पत्थर, लोहे आदिका टुकड़ा जो चीजें तौलनेके बाजना*-अ०क्रि० लड़ना; लगना, बैठना (चोट आदिका); | काम आये, वजन, बटखरा । स्त्री०ऐंठन, बल; राह, मार्ग । पहुँचना-'साह आइ चितउरगढ़ बाजा'-५० दे० 'बजना'। मु०-करना*-रास्ता करना । -का रोड़ा-बाधक। बाजरा-पु० एक मोटा अनाज; उसका पौधा ।।
-जोहना,-देखना-इंतजार करना। -परना-डाका बाजा-पु० बजानेका यंत्र, वाध । -गाजा-पु० अनेक पड़ना । -पारना-रास्तेमें लूट लेना, डाका डालना। प्रकारके एक साथ बजनेवाले बाजे धूमधाम ।
बाटकी*-स्त्री० बटुली। बाज़ार-पु० [फा०] वह स्थान जहाँ साधारण आवश्यकता- बाटना-स० कि० पीसना, घोंटना; * बटना, ऐंठना । की वस्तुएँ या कोई खास चीज बेची-खरीदी जाय, हाट, बाटिका-स्त्री० दे० 'बाटिका' । मंडी; खरीद-बेचीके लिए जमा हुए लोगः भावः बाजार बाटी-स्त्री० उपलोंकी आग या अंगारोंपर सेंकी हुई छोटी, लगनेका दिन, समय 1-भाव-पु० किसी चीजके बाजार- मोटी रोटी, अंगाकड़ी; गोती; तसला; छिछला कटोरा;
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