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भिच्छुक भीत
६०० भिच्छक-पु० दे० 'भिक्षुक' ।
भिन्नार्थ-वि० [सं०] भिन्न उद्देश्यवाला; स्पष्ट अर्थवाला । भिजवना*-स० क्रि० भिगानेका क
ना; भिन्नोदर-पु० [सं०] सौतेला भाई । भिगोना।
भियना*-अ० क्रि० डरना, भीत होना। भिजवाना-स० क्रि० भेजनेका काम दूसरेसे कराना। भिया-स्त्री० [सं०] भय । * पु० दे० 'भिआ' (भाई)। भिजाना, भिजोना*-स० क्रि० दे० 'भिगोना' । भिरंग-पु० दे० 'भुंग' । भिटनी-स्त्री० स्तनका अग्रभाग, चूचुक ।
भिरना*-अ० कि० दे० 'भिड़ना। भिड़त-स्त्री० मुठभेड़, टकर।
भिरिंग*-पु० दे० 'भृग' । भिड़-स्त्री० ततैया, बरें । -का छत्ता-ऐसा कुल, कुटुंब | भिलनी-स्त्री० दे० 'भीलनी'। जिसके एक आदीको छेड़िये तो सब लड़नेको अमादा भिलावाँ-पु० एक जंगली पेड़ जिसका फल दवाके काम हो जायँ ।
__ आता है और उससे तेल भी निकाला जाता है। भिड़ना-अ० क्रि० टकराना; सटना; लड़ना; गुथना। मिल्ल-पु० [सं०] भील । -भूषण-पु० घुघची। भितरिया -वि० भीतर रहने, आने-जानेवाला, अंतरंग। भिल्ली-स्त्री० [सं०] लोध ।।
पु० वल्लभ-कुलके मंदिरों में भीतर रहनेवाला पुजारी। भिश्त*-पु० दे० बिहिश्त'। भितल्ला-पु० कपड़ेके भीतरका पल्ला, अस्तर । वि० भिश्ती-पु० मशकसे पानी ढोनेवाला, सका । भीतरी।
भिषक(ज)-पु० [सं०] वैद्य, चिकित्सक दवा, उपचार । भितल्ली-स्त्री० चक्की के नीचेका पार; दे० 'भितल्ला'। -पाश-पु० अताई वैद्य । -निया-स्त्री० गु.दुच । भिताना*-अ० कि० डरना, भीत होना ।
भिषग्विद-पु० [सं०] चिकित्सक, वैद्य । भित्ति-स्त्री० [सं०] भीत, दीवार; नीव चित्राधार; भेद, भिष्टा, मिसटा -स्त्री० मल, विष्ठा । दरार खंड टूटी हुई वस्तु; चटाई; दोष अवसर । -चित्र भिसत*-स्त्री० बिहिश्त, स्वर्ग । -पु० दीवारपर बना हुआ चित्र । -चौर-पु० सेंध | भिस्ती-पु० दे० 'भिश्ती' । मारनेवाला चोर ।
भिस्स-स्त्री कमलकी जड़। भित्तिक-वि० [सं०] तोड़नेवाला। पु० दीवार । भौगना-अ० कि० दे० 'भीगना' । भित्तिका-स्त्री० [सं०] दीवार; छिपकली ।
भीगी-पु० दे० 'मुंगी'। भिद*-पु० भेद, अंतर ।
भींचना* --स. क्रि० खींचना, दबाना बंद करना (आँख)। भिदना-अ० कि. छिदना, बिद्ध होना; घुसना, पैवस्त भीजना*-अ० कि० भीगना; स्नान करना; प्रविष्ट होना; होना।
मेल-जोल बढ़ाना; गद्गद होना। भिदर-पु० [सं०] भिदना, फटना; नष्ट होना; पाकरका भौंट-पु० दे० 'भोट' । स्त्री० दीवार । पेड़ वज्र; हाथी बाँधने की जंजीर । वि० छेदने, फाइने- भी-अ० अवश्य; तक; अधिक । स्त्री० [सं०] भय, भीति वाला; तुनुका मिश्रित ।
आशंका। -कर-वि० भयोत्पादक । भिद-वि० [सं०] (समासांतमें) तोड़ने, नष्ट करनेवाला। भीउ*-पु० दे० 'भीम'। स्त्री० खंडन, अंतर; प्रकार ।
भीख-स्त्री० भिक्षा, याचना; माँगनेसे प्राप्त अन्नादि, खैरात। भिद्य-वि० [सं०] भेदनीय । पु० एक नदी; करारोंको भीखन-वि० दे० 'भीषण'। काटती हुई बहनेवाली नदी।
भीखम* --पु० वि० दे० 'भीष्म' । वि० दे० 'भीषण' । भिनकना-अ० कि० भक्खियोंका भिनभिनाना; किसी भीगना-अ०, क्रि० पानासे तर होना, गीला होना । (गंदी) चीजपर मक्खियोंके झुंडका बैठना; बहुत गंदा __ -(भीगी) बिल्ली-भय या स्वार्थ से अति नम्र, दीन बना होना धिन लगना।
हुआ। -रात-आधी रातके बादकी रात जो अधिक भिनमिनाना-अ०कि. मक्खियोंका 'भिन्न भिन्न करना। ठंडी होती है। भिनसार, मिनुसार*-पु० प्रातःकाल, भोर ।
भीजना*-अ० कि० 'भीगना'। भिनही -अ० सबेरे, तड़के ।
भीट-पु०दे० 'भीटा'। भिन्न-वि० [सं०] अलग, जुदा छिन्न, खंडिता प्रस्फुटित; भीटा-पु० टीला, दूह; टीलकी शकलकी जमीन; पानकी दूसरा ढीला किया हुआ मिश्रित परिवर्तित मस्त(हाथी)। बेल चढ़ाने के लिए बनाया हुआ टीला । पु० वह संख्या जो पूर्ण संख्यासे कम हो (गणित); भीड़-स्त्री० आदमियों का जमाव, मजमा, जनसमूह; संकट रत्नका एक दोष; जख्म; फूल। -क्रम-वि० क्रमभंग (कटना, पड़ना)-भड़का-पु० दे० 'भीड़-भाद' । -भाड़ दोषयुक्त । पु० क्रमभंग । -देशीय-वि० दूसरे देशका। -स्त्री० भीड़, मजमा; धकमधक्का । -भिन्नात्मा(त्मन्)-पु० चना। मतावलंबी(बिन्)- भीड़न*-स्त्री. मलनेकी क्रिया । पु० दूसरे मत, मजहबको माननेवाला। -रुचि-वि० भीडना*-स० कि० मलना; भिड़ाना; मिलाना । जिसकी रुचि भिन्न हो। -हृदय-वि. जिसका हृदय भीड़ा*-वि० तंग, संकीर्ण । छिद गया हो।
भीडी*-स्त्री० भिंडी। भिन्नता-स्त्री० [सं०] भिन्न होनेका भाव, भेद, बिलगाव । भीत-वि० [सं०] डरा हुआ, भयग्रस्त । स्त्री० [हिं०] भिनाना-अ० क्रि० चकराना।
दीवार; छत । मु०-में दौड़ना-शक्तिसे बाहर, असंभव
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