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स्पंदन - स्फुरित
स्पंदन - पु० [सं०] कंपन, हिलना; विस्फुरण, फड़कना । स्पंदित - वि० [सं०] कंपायमान, काँपता हुआ; गतिशील किया हुआ; गया हुआ । पु० स्पंदन, फड़कन; कंपन | स्पर्द्धन, स्पर्धन- पु० [सं०] होड़; ईर्ष्या । स्पर्द्धनीय, स्पर्धनीय - वि० [सं०] स्पर्द्धा करने योग्य; अभिलषणीय ।
स्पर्द्धा स्पर्धा - स्त्री० [सं०] छोड़, प्रतियोगिता; ईर्ष्याः हौसला, अभिलाषा की बराबरी; चुनौती । स्पर्दी (नि), स्पर्धी (र्धिन्) - वि० [सं०] होड़, प्रति योगिता करनेवाला; ईर्ष्यालु; घमंडी । स्पर्श - पु० [सं०] छूना, संपर्क, संपर्कशान; त्वचाका विषयः छूने से होनेवाला ज्ञान ( ताप आदिका ); प्रभाव; रोग; 'क्' से 'म्'तकके वर्ण; ग्रहणको छायाका आरंभ | - कोण - पु० परिधिके किसी विंदुपर किसी सीधी रेखाका संपर्क होनेसे बननेवाला कोण । -ज- वि० स्पर्शसे उत्पन्न होनेवाला । -जन्य - वि० दे० 'स्पर्शज' । - दिशा - स्त्री० ग्रहण में छाया के स्पर्शकी दिशा । -मणि - पु० पारस पत्थर । - रेखा - स्त्री० ( टैनजेंट ) वृत्तकी परिधिको एक विंदुपर स्पर्श करती हुई बाहर ही बाहर एक ओरसे दूसरी ओर जानेवाली सरल रेखा । - वर्ण - पु० 'कु' से 'म' तक के वर्ण । - वेद्य- वि० स्पर्शके द्वारा जिसका ज्ञान हो । - संचारी (रिन् ) - वि० संक्रामक | - सुख - वि० जिसका स्पर्श आनंददायक हो । - स्नान - पु० ग्रहण आरंभ होनेके समयका स्नान । - हानि - स्त्री० त्वचाकी स्पर्शसे संवेदन ग्रहण करनेकी - शक्तिका नष्ट हो जाना ।
स्पर्शक - वि० [सं०] छूनेवाला; अनुभव करनेवाला । स्पर्शनीय - वि० [सं०] छूने योग्य | स्पर्शनेंद्रिय - स्त्री० [सं०] स्पर्शकी इंद्रिय, त्वचा । स्पर्शी (शि) - वि० [सं०] छूनेवाला, प्रवेश करनेवाला (समासांतमें) ।
स्पर्शेद्रिय- स्त्री० [सं०] स्पर्शका शान प्राप्त करनेवाली इंद्रिय, त्वचा ।
स्पर्शोपल - पु० [सं०] पारस पत्थर |
स्पष्ट - वि० [सं०] जो साफ-साफ देखा जा सके; व्यक्त; प्रत्यक्ष; बोधगम्य; सरल, सीधा (वक्रका उलटा ); वास्तविक, सत्यः सही । - गर्भा - स्त्री० वह स्त्री जिसके गर्भके साफ चिह्न देख पढ़ें । - तारक- वि० साफ दिखाई देने वाले तारोंवाला (आकाश) । - भाषी ( चिनू ), - वक्ता - ( क्तृ ); - वादी ( दिन्) - वि० साफ-साफ कहनेवाला स्पष्टार्थ - वि० [सं०] जिसका अर्थ साफ, सुबोध दो । स्पष्टीकरण-पु० [सं०] किसी बातको सुगम करके समन झाना, स्पष्ट करना ।
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स्पष्टीकृत - वि० [सं०] स्पष्ट किया हुआ । स्पृश्य - वि० [सं०] छूने लायक; अधिकृत करने योग्य । स्पृष्ट-वि० [सं०] छुआ हुआ; " से प्रभावित; पहुँचनेवाला | पु० 'क्' से 'म्'तकके वर्णोंके उच्चारणमें होनेवाला आभ्यंतर
प्रयत्न ।
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स्पृहणीय - वि० [सं०] जिसके लिए स्पृहा की जाय, अभिलषणीयः ईर्ष्या करने योग्य; रमणीय, मोहक । स्पृहयालु - वि० [सं०] इच्छा करनेवाला, अभिलाषी । स्पृहा - स्त्री० [सं०] अभिलाषा; धर्मानुकूल पदार्थ की प्राप्तिकी कामना (न्या० ); ईर्ष्या । स्पृहालु - वि० [सं०] दे० ' स्पृहयालु' |
स्पृही ( हिन्) - वि० [सं०] इच्छुक; ईर्ष्या करनेवाला । स्पृह्य - वि० [सं०] बांछनीय ।
स्फटन, स्फटिकीकरण- पु० [सं०] ( क्रिस्टेलिजेशन ) ऐसी - प्रक्रिया करना जिससे कोई वस्तु स्फटिकका (या स्फटिक सश) रूप ग्रहण कर ले; निश्चित और ठोस आकार धारण करना ।
स्फटा - स्त्री० [सं०] साँपका फन । स्फटि, स्फटी-स्त्री० [सं०] फिटकिरी । स्फटिक- पु० [सं०] बिलौर; सूर्यकांत मणिः कपूर; फिटकिरी | वि० (क्रिस्टलाइन) पीसनेपर जिसके कण चमकीले और खुरदरे जान पड़ें। -प्रभ - वि० स्फटिक जैसा चमकीला, पारदर्शी । - मणि - पु०, - शिला - स्त्री० बिलौर पत्थर ।
स्फटिकाचल- पु० [सं०] कैलास पर्वत । स्फटिकाद्रि- पु० [सं०] कैलास पर्वत । स्फटित - वि० [सं०] विदीर्ण |
स्फरण - पु० [सं०] काँपना; फड़कना; प्रवेश करना । स्फार - वि० [सं०] बड़ा; बढ़ा हुआ; विकट; घना; ऊँचा (स्वर); फैला हुआ; बहुत, प्रचुर । पु० वृद्धि; धक्का | स्फारण - पु० [सं०] स्फुरण, कंपन । स्फारित - वि० [सं०] फैलाया हुआ ।
स्फालन - पु० [सं०] हिलाना, कपाना; फटफटाना; थपथपाना; घर्षण ।
स्फीत - वि० [सं०] बढ़ा हुआ; घना; मोटा; फूला हुआ; सफल; समृद्ध; बहुत अधिक ।
स्फीति - स्त्री० [सं०] वृद्धि; प्राचुर्य; मुद्रा आदिका परिमाण बहुत अधिक बढ़ जाना ।
स्फुट - वि० [सं०] फटा हुआ; खिला हुआ, विकसित; व्यक्त, प्रकट; स्पष्टः प्रथित; फैला हुआ; अत्युच्च (स्वर); फुटकर । - चंद्रतारक - वि० चंद्रमा और ताराओंसे प्रकाशित (रात्रि) । - पुंडरीक - पु० (हृदयका) खिला हुआ कमल । स्फुटन- पु० [सं०] फटना, विदीर्ण होना; विकसित होना; ( जोड़ों का) चटकना ।
स्फुटा - स्त्री० [सं०] साँपका फन ।
स्फुटित - वि० [सं०] फटा हुआ; खिला हुआ । स्फुटीकरण - पु० [सं०] प्रकट, स्पष्ट करना; ठीक करना । स्फुत्कार - पु० [सं०] फुफकार |
स्फुरण - पु० [सं०] काँपना, हिलना; फड़कना ( अंग); फूटकर व्यक्त होना; चमकना; मनमें एकाएक आना । स्फुरति * - स्त्री० दे० 'स्फूर्ति' ।
स्फुरना* - अ० क्रि० हिलना; फड़कना; व्यक्त होना; प्रकाशित होना ।
स्पृष्टास्पृष्ट- पु०, स्पृष्टास्पृष्टि - स्त्री० [सं०] छुआछूत, स्फुरित- वि० [सं०] स्पंदनयुक्त, कंपित; अस्थिर; चमकता स्पर्शास्पर्श, परस्पर स्पर्शन ।
हुआ; व्यक्त, प्रकट ।
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