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खसकना-खाड़ी
१८८ पु० खसकी टट्टियोंसे घिरा हुआ स्थान, कमरा ।
खाँभ*-पु० खंभा दे० 'खाम' । खसकना-अ.क्रि० दे० 'खिसकना।
खाँवाँ-पु० खेत या बागके चारों ओर खोदा हुआ गढ़ा या खसकाना-स० क्रि० दे० 'खिसकाना'।
मेंड़, कम चौड़ी, गहरी खाई। खसखस-पु० पोस्तेका दाना।
खाँसना-अ० क्रि० गलेसे बलगम आदि निकालने या खसखसा-वि० भुरभुरा बहुत छोटा पोस्तेके दानेसा । संकेतके लिए फेफड़ेसे झटके और आवाजके साथ हवा खसना*-अ० क्रि० खिसकना; गिरना।
बाहर निकालना। खसबो*-स्त्री० दे० 'खुशबू' ।
खासी-स्त्री० खाँसनेकी क्रिया गले या श्वासनलीमें सुरखसम-पु० [अ०] दुश्मन, लड़नेवाला; मालिक, पति ।। सुराहट होनेसे फेफड़ेसे झटके और आवाजके साथ हवाका खसरा-पु० एक तरहकी खुजली; पटवारीकी बही जिसमें । बाहर निकलना। गाँवके हर खेतका नंबर, रकबा, काश्तकारका नाम इ० खाई, खाई-स्त्री०किले, परकोटे आदिके चारों ओर रक्षार्थ लिखे रहते है। हिसाबका कच्चा चिट्टा, खर्रा।
खोदी हुई नहर, खंदक । ख़सलत-स्त्री० [अ०] आदत, स्वभाव; गुण ।
खाऊ-वि० बहुत खानेवाला; घूस लेनेवाला ।-मीत-पु. खसाना-स० क्रि० गिराना; फेंकना।
खानेके लिए दोस्ती करनेवाला, मतलबका यार । खसासत-स्त्री० [अ०] खसीसपन, कंजूसी; क्षुद्रता, ख़ाक-स्त्री० [फा०] धूल, मिट्टी; राख, भस्म; तुच्छ वस्तु नीचता।
मृतत्व । वि० तुच्छ; छोटा । अ० कुछ नहीं; किस लिए। खसिया-पु० आसामकी एक पहाड़ी; उस पहाड़ीके आस- -का पुतला-मनुष्य । -सार-वि० तुच्छ, नाचीज; पासका प्रदेश । * वि०, पु० दे० 'खसी'।
दीन; विनीत । मु०-उड़ना-तबाह, बरबाद हो जाना खसियाना-स० क्रि० खसी करना ।
बदनामी, बेइज्जती होना। -उड़ाना-भटकते फिरना, खसी-वि० [अ०] बधिया; हिजड़ा; नपुंसक । पु० बधिया । खाक छानना । -करना-जलाकर राख कर देना; बकरा । मु०-करना-बधिया करना ।
तबाह कर देना। -चाटकर-अति नम्रतापूर्वक ( कोई खसीस-वि० [अ०] कंजूसा क्षुद्रहृदय ।
बात कहना)। -छानना-किसी चीजकी तलाशमें बहुत खसोट-स्त्री० खसोटनेकी क्रिया या भाव ।
हैरान होना, मारा-मारा फिरना। -डालना-(ऐबपर) खसोटना-स० क्रि० नोचना, उखाड़ना; छीन लेना। पर्दा डालना, छिपाना; भूल जाना। -बरसना-उजाड़ खसोटी-स्त्री० दे० 'खसोट' ।
लगना, धूल उड़ना। -में मिलना-धूल में मिलना; खस्तगी-स्त्री० [फा०] खस्तापन ।
नष्ट, बरबाद होना। खस्ता-वि० [फा०] घायल; खिन्न, लांत; दुर्दशाग्रस्त | खाकसी-स्त्री० [फा०] एक वनस्पतिका दाना जो दवाके जरासा दबानेसे चूर हो जानेवाला; बहुत नरम ।-हाल- काम आता है। वि० खिन्न; विपन्न, दुर्दशाग्रस्त, फटेहाल ।
खाकसीर-स्त्री० दे० 'खाकसी। खस्सी -वि०, पु० [अ०] दे० 'खसी' ।
खाका-पु० [फा०] नकशे या चित्रपर पारदशी कागज खाँखरी-वि० जिसमें बहुत सूराख हों; झीना ।
रखकर बनाया हुआ नक्शा या चित्र; कचा नक्शा खाँग-प० काँटा; जंगली सूअरका वह दाँत जो बाहर रेखाचित्र; ढाँचा; स्थूल योजना; एक तरहका कशीदा निकला रहता और शस्त्रकासा काम देता है; गड़ेके मुँह- (उतारना, खींचना)। मु०-उड़ाना-खिल्ली उड़ाना । पर रहनेवाला सींग; तीतर, मुर्ग आदिके पैरका काँटा; खाकी-वि० [फा०] मिट्टीका बना; मिट्टीके रंगका, गाय-बैल आदिके खुर पक जानेका रोग । स्त्री० + कमी, मटियाला । पु० मटियाला रंग; इस रंगका कपड़ा; पुलिस त्रुटि-'बरिस बीस लगि खाँग न होई'-५० ।
| या फौजकी वदी; साधुओंका एक संप्रदाय । खाँगना-अ० क्रि० लँगड़ा हो जाना; घटना। स० क्रि० खाख*-स्त्री० खाक, धूल; चूर्ण । छेदना।
खाखरा*-पु० एक तरहका बाजा। खाँगी -स्त्री० कमी।
खागना*-अ० क्रि० चुभना । खाँचना*-स० कि० दे० 'खौचना' ।
खाज-स्त्री० त्वचामें खुजली होनेका रोग, खारिश । खाँचा-पु० अरहरके डंठल आदिका बना टोकरा, झाबा। खाजा-पु० खाद्य, खानेकी चीज; मैदेकी बनी एक मिठाई । खाँची-स्त्री० छोटा खाँचा, बँचिया ।
खाजी*-स्त्री० खाद्य पदार्थ । खाँड़-स्त्री० गुड़का वह भेद जो गीला होता है और जिससे खाट-स्त्री० चारपाई, खटिया । -खटोला-पु० गृहस्थीका शक्कर बनाते हैं, राब; शकर, कच्ची चीनी; दे० 'खाड़' । सामान, बोरिया-बधना। मु०-पर पड़ना-बीमार -सारी-स्त्री० दे० 'खडसारी।
होना । -से उतारा जाना-आसन्नमरण होना । -से खाँड़ना -स० क्रि० कुचलना; टुकड़े-टुकड़े करना; चबाना। लगना-रोगके कारण उठने-बैठने में अशक्त हो जाना। खाडर*-पु० बँडरा कतला ।
खाटा, खाटो*-वि० खट्टा, अम्ल । खांडविक-पु० [सं०] हलवाई ।
खाड़*-पु० गड्ढा । खाँडा-पु० खङ्गा सीधी और कुछ चौड़ी तलवार; भाग, खाड़व-पु० छः स्वरोंवाला राग, षाडव । खंड । मु०-बजना-तलवार चलना, युद्ध होना। खाड़ी-स्त्री० समुद्रका वह भाग जो तीन ओर खुश्कीसे खाँधना*-सक्रि०खाना-'चोरि दधि कौने खाँधो-सू०।। घिरा हो, खलीज।
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