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पानीय-पाया
४७४ बाँध बाँधना-किसी अनागत विपत्तिका पहलेसे ही प्रती! पापाचार-पु० [सं०] पापमय आचरण, पापसे भरा हुआ कार करने लगना, किसी संकटके आनेके पहले ही उसके कृत्य, दुराचार । वि० जिसका आचरण पापमय हो। निवारणका उपाय करने लगना । -होना-धातु आदिका पापात्मा(त्मन्)-वि० [सं०] जिसकी आत्मा सदा पापतरल अवस्थामें परिणत होना । (किसीका)-होना- में प्रवृत्त रहे, जो सदा पापमें प्रवृत्त रहे, पापी । क्रोध शांत होना।
पापिष्ठ-वि० [सं०] सबसे बड़ा पापी; अति पापी । पानीय-वि० [सं०] पीने योग्य; रक्षा करने योग्य । पु० पापी(पिन)-वि० [सं०] पाप करनेवाला, अघीनिष्ठुर,
जल; पेय, शराब (तंत्र)। -शाला-स्त्री० पौसरा, प्याऊ ।। निर्दय । पु० वह जो पाप करे, पाप करनेवाला मनुष्य । पानूस-पु० दे० 'फानूस' ।
| पाबंद-वि० [फा०] दे० 'पा'के साथ । पानौरा*-पु० पानके पत्तेकी पकौड़ी।
पाम(न्)-पु० [सं०] एक चर्मरोग, विचिका खुरंड । पान्यो-पु० पानी-'ज्यों झख पायो पान्यो'-सू० । -न-पु० गंधक । -घ्नी-स्त्री० कुटकी । पाप-वि० [सं०] निकृष्ट; खोटा, बुरा; अशुभ; नीच; दुष्टः | पामड़ा, पामरा*-पु० दे० 'पाड़ा' । (प्रायः समासमें प्रयुक्त-'पापकर्म', 'पापग्रह' आदि) । पु. पामर-वि० [सं०] नीच, दुष्ट; मूर्खः निर्धन; असहाय । बुरे कामोंसे उत्पन्न होने वाला वह अदृष्ट जिससे मनुष्य पामरी*-स्त्री० दुपट्टा, उपरना; पाँवड़ी। बुरी गतिको प्राप्त होता है। ऐसा अदृष्ट उत्पन्न करनेवाला पामारि-पु० [सं०] गंधक । कृत्य, कुकृत्य, अधार्मिक कृत्य (जैसे-हिंसा, चोरी पाय*-पु० पैर, पाँव । -चा-पु० पाजामेके उन दो आदि); अनिष्ट; अपराध, जुर्भ; पापी, पातकी व्यक्ति भागों मेंसे कोई एक जो उसके पहने जानेपर टाँगोको ढके * संकट, कठिनाई । -कर-वि० दे० 'पापकारक। रहते हैं। -जेहरि-स्त्री० पायजेव । -ता-पु०,-कर्म(न)-पु० ऐसा कर्म जिसे करनेसे पाप लगे, ती-स्त्री० चारपाई या पलँगका उधरका भाग जिधर सोनेधर्म-विरुद्ध कर्म, खोटा काम । -कर्मा(मन)-वि० वालेका पैर रहता है, पैताना सोनेवालेके पैरकी ओरकी पापी । -कारक,-कारी(रिन्),-कृत्-वि० पाप दिशा। कमानेवाला, पापी । -क्षय-पु०पापका नाश। -ग्रह- पायंदाज-पु० दे० 'पा-अंदाज' । पु० अशुभ ग्रह (जैसे मंगल, शनि)। -घ्न-वि० पापको पाय-पु० [फा०] 'पा'का समाप्समें, इजाफत लगनेसे नष्ट करनेवाला । पु० तिल (जिसके दानसे पापका नाश मिलनेवाला रूप। -कार-पु० बनानेवालेसे माल होता है)। -घ्नी-स्त्री० तुलसी । -चर-चारी(रिन्) खरीदकर दुकानदारोंके हाथ बेचनेवाला, एजेंट, खुर्दा-वि० पापाचरण करनेवाला । -चेता(तस)-वि०
फरोश, बिसाती । -खाना-पु० दे० 'पाखाना' । जिसके मनमें सदा पाप बसे, नीच, दुष्ट, दुरात्मा। -दृष्टि -जामा-पु० दे० 'पाजामा'।-जेब-पुण्दे० 'पाजेब'। -वि० जिसकी दृष्टि पवित्र न हो; जिसके देखनेसे किसी. -जेहरि*-स्त्री० पाजेब'। -तख्त-पु० राजधानी । का अमंगल हो।-धी-वि० दुर्बुद्धि, दुरात्मा ।-नाशक -तन*-पु० दे० 'पायँता'।-दान-पु० सवारी गाड़ीमें -वि० पापोंका नाश करनेवाला । -नाशन-वि० पाप- बाहरकी ओर लगाया हुआ तख्ता या लोहेका चौकोर को दूर करनेवाला । पु० विष्णुः शिव । -फल-वि० बुरे टुकड़ा जिसपर पैर रखकर गाड़ीपर चढ़ते हैं। -दारपरिणामवाला, अशुभ । -बुद्धि-वि० जिसका मन सदा! वि० मजबूत, टिकाऊ । -दारी-स्त्री० मजबूती, टिकाऊपापकी ओर प्रवृत्त रहे, दुरात्मा। -मोचन-पु० पापको पन । -पांश-पु० दे० 'पापोश'। -बंद-वि० दे० दूर करने या नष्ट करनेकी क्रिया, पापका निराकरण । | 'पाबंद'। -बंदी-स्त्री० दे० पाबंदी'। -माल-वि० -शील-वि० पाप करना जिसका स्वभाव हो, जो सदा 'दे० 'पामाल'। पाप किया करे, पापमें निरत रहनेवाला । -हर-वि० पायक-पु० दूत; सेवक पैदल सिपाही; * महल; पटेबाजा पापोंको हरनेवाला, पापनाशक । -हा(हन्)-वि० पताका। पापोंका नाश करनेवाला, पापनाशक । मु०-उदय पायड़ा-पु० दे० 'पायरा'-'हर घोड़ा, ब्रह्मा कड़ी, होना-पूर्वकृत पापका फल मिलने लगना। -कटना-- विस्तू पीठ पलान । चंद सूर दोइ पायड़ा, चढ़सी संत प्रायश्चित्त आदिसे पापका अंत होना; बाधा सुजान'-साखी । आदिका दूर होना । -कमाना-बटोरना-पापमय पायरा-* पु० रकाव; एक तरहका कबूतर । कार्य करना, ऐसे दुष्कार्य करना जिनका परिणाम बुरा पायल-स्त्री० पैर में पहननेका एक धुंघरूदार गहना, पाजेब । हो। -पड़ना-दे० 'पाप लगना'; * कठिन होना। पायस-वि० [सं०] दूध या जलसे संबद्ध दूध या जलका -मोल लेना-जान-बूझकर बखेड़े में पड़ना ।-लगना- बना हुआ। पु० दूधमें पकाया हुआ चावल, खीर । पापका भागी होना।
(स्त्री० भी)-'परम दिब्य पायस सो पूरित रजत पात्र ते पापड़-पु० उड़द या मूंगकी पीठीसे तैयार की जानेवाली ढाँपी'-रघु० । एक प्रकारकी बारीक मसालेदार. चपाती जिसे तेल या पायसा -पु. पड़ोस । घीमें तलकर अथवा आगपर सेंककर व्यंजनके रूपमें खाते पाया-पु० [फा०] चारपाई, कुरसी, तख्ते आदिके उन हैं । वि० कागजसा पतला; सूखा । मु०-बेलना-घोर टंडोंके आकार के निचले अंगोंमेंसे कोई एक जिनके बल वे परिश्रम करना; बहुत कष्ट झेलना ।
स्थित रहते हैं, पावा, गोड़ा; खंभा, टेक बुनियाद, नी; पापडाखार-पु० केलेके पेड़से तैयार किया जानेवाला क्षार । सीढ़ी दर्जा, पद, घोड़ों के पैरका एक रोग। मु०-बुलंद
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