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एक
विध्यलंकार - पु०, विध्यलंक्रिया - स्त्री० [सं०] काव्यालंकार, जहाँ किसी सिद्ध बातका, विशेष अभिप्रायसे, पुनः विधान किया जाय । विध्याभास - पु० [सं०] एक अर्थालंकार | विध्वंस - पु० [सं०] विनाश; क्षति; वैमनस्य; अनादर । विध्वंसक - वि० [सं०] नाशक; लंपट | पु० विनाशक रण-पोत ।
विध्वंसन पु० [सं०] नाश, बरबाद करना; अपमान करना । वि० नाश करनेवाला; सतीत्व नष्ट करनेवाला । विध्वंसित - वि० [सं०] नष्ट किया हुआ । विध्वंसी (सिन्) - वि० [सं०] नष्ट होनेवाला; नाशक । विध्वस्त- वि० [सं०] नष्ट; बरबाद किया हुआ । विन* - अ० बिना, बगैर ।
विनत - वि० [सं०] झुका हुआ, नमित; विनम्र । विनतड़ी* - त्रो० दे० 'विनती' । विनता - स्त्री० [सं०] कूबड़वाली लड़की; दक्ष प्रजापतिकी पुत्री, कश्यपकी पत्नी, गरुड़की माता । -नंदन, - सुत,
[सूनु - पु० गरुड़; अरुण । विनति - स्त्री० [सं०] झुकाव, नम्रता; विनती, प्रार्थना । विनती - स्त्री० प्रार्थना ।
विनष्ट - वि० [सं०] ध्वस्त; विलुप्त; मरा हुआ; विगड़ा हुआ, विकृतः भ्रष्ट । पु० शव । - वक्षु ( स ) - वि० जिसकी आँख नष्ट हो गयी हो। -दृष्टि-वि० जिसकी दृष्टि नष्ट हो गयी हो । - धर्म - वि० जिसके विधान भ्रष्ट हों (देश)। विनष्टि - स्त्री० [सं०] नाश; पतन; लोप । विनसना * - अ० क्रि० नष्ट होना ।
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विध्यलंकार - विनियमके
गणेश; नायक; गरुड़; बुद्धदेव; देवीका एक स्थान; गुरु, आचार्य; विघ्न । - केतु-पु० गरुडध्वज, कृष्ण । - चतुर्थी - स्त्री० गणेशचौथ, माघ सुदी चौथ ।
विनम्र - वि० [सं०] झुका हुआ; विनीत, विनयी, सुशील । विनिद्र - वि० [सं०] निद्रारहित, जाग्रत्; जागकर बिताया - कंधर - वि० जिसकी गरदन झुकी हो । विनय - स्त्री० [सं०] अनुशासन; भद्रता; शिष्टता; नम्रता; आचरण; प्रार्थना । - कर्म (न्) - पु० शिक्षण । - पिटकपु० अनुशासन संबंधी नियमोंका संग्रह (बौद्ध) । -प्रमाथी (थिन्) - वि० अनुशासन भंग करनेवाला । - वाक् (च) - वि० मधुरभाषी । - शील- वि० विनम्र । विनयन - पु० [सं०] त्रिनय; शिक्षण; निराकरण । विनयवान् (वत्) - वि० [सं०] नम्र, शिष्ट । विनयावनत - वि० [सं०] विनम्र । विनयी (यिन) - वि० [सं०] विनम्र |
विनवना* - स० क्रि० प्रार्थना, अनुरोध करना । विनशन - पु० [सं०] हानि, नाश; लोप । विनशना * - अ० क्रि० नष्ट होना, बरबाद होना । विनशाना * - स० क्रि० नष्ट करना, बरबाद करना । अ० क्रि० नष्ट होना ।
विनश्वर - पु० [सं०] नष्ट होनेवाला, नाशवान्; जो चिर स्थायी न हो, अनित्य ।
विनश्वरता - स्त्री०, विनश्वरत्व - पु० [सं०] अनित्यता,
नश्वरता ।
विनसाना* - अ०क्रि० नष्ट होना । स०क्रि० नष्ट करना । विना - अ० [सं०] न होनेपर, अभाव में, बगैर | विनाती* - स्त्री० विनती, प्रार्थना ।
विनाश - पु० [सं०] अस्तित्व न रहना, नाशः क्षयः लोप; बिगड़ जाना । धर्मा (न्), - धर्मी (मिंन्) - वि० नश्वर, नष्ट होनेवाला; क्षणभंगुर - हेतु-पु० विनाश या मृत्युका कारण । विनाशक - वि० [सं०] नाश करनेवाला; बिगाड़नेवाला । विनाशन- ५० [सं०] नाश करना; लुप्त करना; हटाना । विनाशयिता (तृ) - वि०, पु० [सं०] नाश करनेवाला । विनाशी (शिन्) - वि० [सं०] नश्वर; नाश करनेवाला । विनाशोन्मुख - वि० [सं०] नाशकी ओर प्रवृत्त विनास - वि० [सं०] नासिकाहीन । * पु० दे० 'विनाश' । विनासक, विनासिक - वि० [सं०] नासिकाहीन | विनासन - पु० दे० 'विनाशन' |
विनासना * - स० क्रि० नष्ट करना, बरबाद करना; खराब करना ।
विनिंदक - वि० [सं०] निंदा करनेवाला ।
विनिंदित - वि० [सं०] जिसकी बहुत निंदा की गयी हो, लांछिन ।
विनियंत्रण- पु० [सं०] (डी-कंट्रोल) युद्ध स्थिति या उपलब्धिकी कमी आदि के कारण किसी वस्तुपर लगायी गयी मूल्य या वितरण संबंधी नियंत्रण व्यवस्थाका उठा लिया जाना । विनियताहार - वि० [सं०] जिसका आहार संयत हो, मिताहारी, अधिक खानेसे परहेज करनेवाला । विनियम - पु० [सं०] रोक; संयम; नियंत्रण; शासन; (रेगुलेशन) वह विशेष नियम जो किसी संस्था आदिके प्रबंध या नियंत्रणके लिए प्राधिकृत आदेशसे या विशेष निश्चयके अनुसार बनाया गया हो ।
. विनायक - वि० [सं०] ले जानेवाला; हटानेवाला । पु० | विनियमक - वि० ( रेगुलेटर ) ( पंखे आदिकी ) गति या
हुआ; खिला या फैला हुआ ।
विनिद्रता - स्त्री०, विनिद्रत्व - पु० [सं०] प्रबोध, जागरूकता; निद्राका अभाव; जाग्रत् अवस्था । विनिपतित-वि० [सं०] नीचे गिरा हुआ । विनिपात - पु० [सं०] पतन; ध्वंस, विनाश; संकट; मृत्यु; वध, इत्या; अनादर, अवमान असफलता । विनिपातक - वि० [सं०] विनाशकारी; गिरानेवाला । विनिपातित-वि० [सं०] गिराया हुआ; नष्ट किया हुआ । विनिमय - पु० [सं०] अदल-बदल, प्रतिदान; बंधक; वर्णपरिवर्तन | - अधिकोष-पु० (एक्सचेंज बैंक) वह अधिकोष (बैंक) जहाँ एक देशकी मुद्राके बदले दूसरे देशकी मुद्रा देने या बाहर प्रेषित करने आदिका काम होता है । विनिमीलन- पु० [सं०] बंद होना, मुँदना ( आँख, फूल आदिका ) ।
विनिमीलित - वि० [सं०] जो बंद हो गया हो, मुँदा हुआ । विनिमीलितेक्षण - वि० [सं०] जिसने आँखें बंद कर ली हों या जिसकी आँखें बंद हो गयी हों । विनिमेष, विनिमेषण- पु० [सं०] पलकोंका गिरना;
पलक मारना ।
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