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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यत्र-यम ६६४ बेहद, नितांत, अतिशय । जिस रूप में दिखाई दें, उसी रूपमें उनका वर्णन करना यत्र-पु० [सं०] उद्योग, उपायः सार-सम्हालरोगशांतिका चाहिये (आदर्शवादका उलटा ); यह दार्शनिक सिद्धांत उपाय, उपचार ।-पर-वि० दे० 'यत्नवान्'। -पूर्वक- कि भौतिक जगत्की स्वतंत्र सत्ता है ।-वादी(दिन्)अ० चेष्टापूर्वक, उपाय द्वारा। -शील-वि० सचेष्ट, वि० (रीयलिस्ट) यथार्थवादका अनुयायी। आग्रही, अध्यवसायी। यथार्थतः(तस्)-अ० [सं०] वस्तुतः, यथानुरूप । यत्नवती-वि० स्त्री० [सं०] यत्नमें लगी हुई। यथावकाश-अ० [सं०] जैसा अवकाश मिले । यत्नवान् (वत्)-वि० [सं०] प्रयत्नशील, यत्नमें लगा हुआ। यथावत्-वि० [सं०] ज्योंका त्यों, हू-बहू । अ० जैसा यत्र-अ० [सं०] जहाँ।-तत्र-अ० जहाँ-तहाँ; जगह-जगह।। चाहिये उसी तरह । यथांश-वि० [सं०] भागके अनुकूल; यथायोग्य । यथावसर-अ० [सं०] अवसरके अनुसार, जैसा अवसर यथा-अ० [सं०] जिस प्रकार, जैसे ।-कथित-वि० जैसा हो उसीके अनुरूप । पहले कहा गया हो।-कर्तव्य-अ० कर्तव्यके अनुकूल। यथेच्छ-वि० [सं०] इच्छानुसार, मनमाना। -कर्म(न)-अ० कर्मानुसार । -काम-अ० यथेच्छ, | यथेच्छाचार-पु० [सं०] स्वेच्छाचार, मनमाना काम मनमाने।-कामी(मिन्),-कारी(रिन)-वि० स्वेच्छा- करना। चारी, मनमाना करनेवाला । -काम्य-अ० इच्छा- | यथेच्छाचारी(रिन् )-वि० [सं०] स्वेच्छाचारी, अपने नुकूल । -कार्य-अ० कार्यके अनुकूल, जैसा करना मनकी करनेवाला। चाहिये । -काल-अ० उचित समयपर ।-कुल-वि० | यथेप्सित-वि० [सं०] यथेच्छ । कुलानुसार। -तथा-तथ्य-वि० ज्योंका त्यों, हुबहू, यथेष्ट-वि० [सं०] जितना चाहिये उतना। जैसा हुआ हो । -तृप्ति-अ० जी भरकर । :-दृष्ट-वि० | यथेष्टाचरण, यथेष्टाचार-पु० [सं०] स्वेच्छाचार, मनजैसा देखा हो।-नियम-वि० नियमानुसार ।-निर्दिष्ट माना आचरण करना, जैसा पसंद हो वैसा आचरण -वि० जैसा निर्देश दिया गया हो। -पूर्व-वि० पहले- करना। का-सा, ज्योंका त्यों। -प्रयोग-अ० प्रयोगके अनुरूप। यथेष्टाचारी(रिन)-वि० [सं०] मनमाना काम करने -भाग-वि० जितना भाग है उतना, यथोचित । | वाला। -मति-वि० समझके अनुसार । -मूल्य-वि० मूल्यके | यथोक्त-वि० [सं०] जैसा कहा गया हो, कथनानुसार । अनुसार । -यथ-अ० यथोचित रूपसे । वि. जैसा यथोचित-वि० [सं०] जैसा जाहिये वैसा, समुचित । उचित है, वैसा (साकेत)। -योग्य-वि० जैसा चाहिये, यथोपयुक्त-वि० [सं०] यथायोग्य, यथोपयोगी । उपयुक्त ।-रीति-वि० प्रचलित प्रथाके अनुसार । -रुचि | यदपि*-अ० दे० 'यद्यपि' । -वि० इच्छाके अनुरूप । अ० इच्छानुसार । -लब्ध- यदा-अ० [सं०] जब, जिस समय; जहाँ। -कदा-अ० वि० प्राप्तिके अनुसार, यथालाभ संतोषवाली (वृत्ति)।। जब-तब, कभी-कभी। -लाभ-वि० जो मिले उसीके अनुरूप। -विधि-अ० यदु-पु० [सं०] राजा ययातिका ज्येष्ठ पुत्र; यदुवंश । विधिपूर्वक, जैसी विधि हो उसीके अनुसार । -विहित- -कुल-पु० दे० 'यदुवंश'। -नंदन,-नाथ,-पति,वि०विधानके अनुसार, शास्त्रानुमोदित । -शक्ति-अ० भूप,-राज-पु० कृष्ण । -राई*-पु० यदुराज, कृष्ण । शक्तिके अनुसार, शक्तिभर ।-शक्य-वि० भरसक, जहाँ- -वंश-पु० राजा यदुका कुल । -वंशी(शिन्)-पु० तक हो सके वहाँतक। -शास्त्र-अ० शास्त्रानुसार । वि० यदुकुलमें उत्पन्न पुरुष, यादव ।-वर-वीर-पु० कृष्ण । जैसा शास्त्र में दिया हो वैसा। -शीघ्र-अ० जितनी | यदृच्छा-स्त्री० [सं०] स्वेच्छाभाव, मनमानापन; आकजल्दी संभव हो, उतनी जल्दी ।-श्रति-वि० वेदानुसार। स्मिक संयोग स्वतंत्रता । -लब्ध-वि० दैवयोगसे उप-संख्य-पु. एक अर्थालंकार, जहाँ कुछ वस्तुओंका| लब्ध, अनायास प्राप्त । वर्णन एक क्रमसे हो और आगे चलकर उनसे संबंधित यदृच्छया-अ० [सं०] मनमाने तौरपर, बिना किसी नियम वस्तुओंका वर्णन भी उसी क्रमसे किया जाय। -संभव, या कारणके अकस्मात् , दैवयोगसे । -साध्य-अ० जो हो सके, भरसक, सामर्थ्यभर ।-समय | यद्यपि-अ० [सं०] अगरचे, यदि चेत्, गो कि । -अ० निश्चित समयपर। वि० समयके अनुसार । यद्वातद्वा-अ० [सं०] कमी-कभी, जब-तब । पु० टालमटोल । -स्थान-अ० उचित स्थानपर। -स्थिति-अ० ( ऐज यम-पु० [सं०] मृत्युके देवता, यमराज; जुड़वाँ संतान, दि केस मे बी) जैसी स्थिति हो उसीके अनुसार ।-स्थिति यमज; संयम, निग्रह; एक मंत्रद्रष्टा ऋषि कौआ, शनि समझौता-पु० [हिं०] (स्टडस्टिल ऐग्रीमेंट) वर्तमान या विष्णुः वायुः दोकी संख्या ।-कात,-कातर-पु० यमका विद्यमान स्थितिको ज्योंका त्यो बनाये रखनेवालासमझौता। छुरा, खाँडा; एक प्रकारकी तलवार । -कीट-पु० यथानुपूर्वक-वि० [सं०] परंपराके अनुकूल । केंचुवा । -घंट-पु. दीपावलीका दूसरा दिन, कात्तिक यथारथ*-वि० दे० 'यथार्थ' । शुक्ला प्रतिपदा; एक दुष्ट योग जिसमें शुभ काम वर्जित यथार्थ-वि० [सं०] सत्य, प्रकृत, उचित । -में-अ० है। -चक्र-पु० यमराजका शस्त्र। -ज-पु० जुड़वाँ दरअसल, वस्तुतः। -वाद-पु० (रीयलिज़्म) जो बात बच्चे वह सदोष घोड़ा जिसका एक ओरका अंग हीन, या वस्तु जिस रूपमें हो, उसी रूपमें उसका वर्णन करना दुर्बल और दूसरी ओर वही अंग ठीक हो; अश्विनीकुमार । या ग्रहण करना; साहित्यका यह सिद्धांत कि हमें वस्तुएँ -जातना*-स्त्री० दे० 'यमयातना'। -जित्-पु० For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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