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यक्ष-यत्
यक्ष-पु० [सं०] एक देवयोनि; कुबेरके सेवक; कुबेर प्रेत, -मुख-पु० यज्ञका आरंभ। -यूप-पु० यशका बलिभूत । -कर्दम-पु० कपूर, अगर, कस्तूरी और कंकोलके पशु बाँधनेका खंभ, यूपकाष्ठ, यशरतंभ ।-रस-पु०सोम । संयोगसे बना हुआ अंगराग (राम)। -ग्रह-पु० एक -राज-पु० चंद्रमा। -वराह-पु० शूकरावतार (विष्णु, कल्पित ग्रह; प्रेतबाधा ।-नायक,-प,-पति-पु०कुबेर । यशरूप बराह)। -वाह-पु० यज्ञ करनेवाला । -वाहन -पुर-पु० यक्षोंका नगर, अलकापुरी। -रस-पु० -पु० यश करनेवाला; ब्राह्मण; विष्णु; शिव । -वाहीफूलोंके रससे तैयार की हुई शराब । -राज-पु० कुबेर । (हिन्)-पु० यज्ञका सब काम करनेवाला । -वेदीयक्षाधिप, यक्षाधिपति-पु० [सं०] कुबेर ।
स्त्री० यशकी वेदिका। -शत्रु-पु० राक्षस, असुर। - यक्षिणी, यक्षी-स्त्री० [सं०] यक्षकी स्त्री कुबेरकी सी। शाला-स्त्री० यज्ञ करनेका स्थान, यशमंदिर । -सदनयक्ष्म, यक्ष्मा(क्ष्मन्)-पु० [सं०] क्षयरोग, तपेदिक । पु० यज्ञमंडपका स्थान, यज्ञभूमि । -स्थाणु-पु० दे० यक्ष्मनी-स्त्री० [सं०] दाख, अंगूर ।।
'यज्ञयूप'। -होता(तृ)-पु० यज्ञमें देवताओंका आवायक्ष्मी (क्ष्मिन्)-पु० [सं०] क्षयरोगी।
हन करनेवाला; मनुका एक पुत्र । यखनी-स्त्री० [फा०] शोरबा, उबले हुए मांसका रसा। यज्ञक-पु० [सं०] यशकर्ता यश । यगाना-वि० [फा०] आत्मीय, स्वजन; अकेला; अद्वितीय । | यज्ञांग-पु० [सं०] यज्ञ-सामग्री; गूलर, खैर विष्णु । यग्य*-पु० दे० 'यश'।
यज्ञागार-पु० [सं०] यशस्थान, यज्ञशाला। यच्छ*-पु० दे० 'यक्ष' ।
यज्ञामा(स्मन्)-पु० [सं०] विष्णु । यच्छिनी*-स्त्री० दे० 'यक्षिणी'।
यज्ञारि-पु० [सं०] शिव; राक्षस । यजन-पु० [सं०] यश करना ।
यज्ञिय-वि० [सं०] यज्ञ संबंधी या यज्ञके उपयुक्त यशका यजमान-पु० [सं०] यश करनेवाला; दक्षिणा आदि देकर मंगलकर्ता, कर्मकांडके लिए उपयोगी पवित्र । पु० देवता। ब्राह्मणीसे धार्मिक कृत्य करानेवाला।
-देश-पु० होमादिके लिए उपयुक्त देश, भारतवर्ष यजमानी-स्त्री० यजमानोंका वासस्थान; यजमानका भाव या धर्म; विवाह आदिके अवसरोंपर पुरोहित, नाई, बारीके यज्ञीय-वि० [सं०] यश-संबंधी; यशका । काम करनेका अधिकार; पुरोहिती।
यज्ञेश्वर-पु० [सं०] विष्णु । यजुविद,यजुर्वेदी(दिन)-पु०[सं०] यजर्वेद जाननेवाला। यज्ञेष्ट-पु० [सं०] रोहित घास । यजुर्वेद-पु० [सं०] चारों वेदोंमेंसे एक; वह वेद जिसमें यज्ञोपवीत-पु० [सं०] यज्ञ द्वारा संस्कार किया हुआ यजुओं(गद्य मंत्री)का संग्रह है, इसमें विशेषतया यशकी उपवीत, यशसूत्र, जनेऊ । -संस्कार-पु० उपनयनक्रियाओं और उसके भेद-प्रभेदोंका विवरण और प्रति- संस्कार, जनेऊ पहनानेका संस्कार (द्विज-ब्राह्मण, क्षत्रिय पादन है।
और वैश्योंका । भिन्न-भिन्न वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न वयःयजुर्वेदी-वि० दे० 'यजुर्वेदीय'।
काल निर्धारित किया गया है)। यजुर्वेदीय-वि० [सं०] यजुर्वेदका शाता; यजुवेंदके अनु- | यज्य-पु० [सं०] यजन करने योग्य, पूजनीय ।
सार कृत्य करनेवाला (ब्राह्मण); यजुर्वेद-संबंधी। यज्वा(ज्वन)-पु० [सं०] यश करनेवाला। यज्ञ-पु० [सं०] हवन-पूजनयुक्त एक वैदिक कृत्य, ऋतु, यतन-पु० [सं०] यत्न करना । मख, याग; लोकहितके विचारसे की हुई पूजा; अनुष्ठान, यतनीय-वि० [सं०] यल करने योग्य । होम, यश-देवता । -काल-पु० यशका शास्त्रनिर्दिष्ट | यतमान-पु० [सं०] यत्न करता हुआ, कोशिशमें लगा ममय; पूर्णमासी । -कुंड-पु० हवन करनेका कुंड, हुआ, चेष्टाशील । अनलकुंड । -कृत्-वि० यज्ञ करने, करानेवाला। यतात्मा(त्मन्)-वि० [सं०] संयतमना, संयमी। -घ्न,-द्रुट (ह)-पु० यशविध्वंसका राक्षस ।-तुरंग- यति-पु० [सं०] जितेंद्रिय, विरक्त होकर मोक्षके लिए पु० यशका घोड़ा । -वाता ()-पु० यशरक्षक विष्णु । प्रयत्न करनेवाला; संन्यासी; योगी; श्वेतांबर जैन साधु -दक्षिणा-स्त्री० शुल्क, यश करानेके उपलक्ष्य में ब्राह्मणों- ब्रह्माका एक पुत्र; नहुषका एक पुत्रा ब्रह्मचारी; छप्पयका को दिया हुआ धन ।-द्वेषी (पिन)-पु० यशविरोधी। एक भेद । स्त्री० छंदोंमें विश्रामका स्थान; रोक, रुकावट; -द्रव्य-पु० यज्ञकी सामग्री । -धर-पु० यशधारणकर्ता | मनोविकार; विधवा; शलक रागका एक भेद, संधि; पुरुष, विष्णु । -धूम-पु. होमका धुआँ। -पति-पु० मृदंगका एक प्रबंध । -धर्म-पु० संन्यास । -पात्र-पु० यजमान; विष्णु । -पत्नी-स्त्री० यशकी स्त्री, दक्षिणा । यतिका भिक्षापत्र । -भंग-पु० छंददोष जिसमें यति -पशु-पु० यशका बलिपशु (घोड़ा, वकरा)। -पात्र- निश्चित स्थान पर न हो। -भ्रष्ट-पु. यतिभंग दोषसे भांड,-भाजन-पु० यशके कामोंके लिए बने हुए काठके युक्त छंद ।-सांतपन-पु० पंचगव्य और कुश-जल पीकर बरतन । -पुरुष-पु० विष्णु । - फलद-पु० यशका फल पोलन किया जानेवाला तीन दिनोंका एक व्रत । देनेवाले विष्णु । -भाग-पु० यशका अंश; (यशांश पाने | यती(तिन्)-पु० [सं०] दे० 'यति' ।। वाले) देवता । -भूमि-स्त्री० यज्ञका स्थान । -भूपण- यतीम-पु० [अ०] बे माँ बापका बच्चा, अनाथ। वि० बिना पु० कुश । -भृत्-वि० यज्ञका आयोजन करनेवाले माँ बापका (बच्चा); बेजोड़ । -खाना-पु. अनाथालय । विष्णु । -भोक्ता(क्त)-पु० विष्णु ।-मंडप-पु० यज्ञ-यत्-सर्व० [सं०] जो। -किंचित्-अ० थोड़ासा, कुछ का मंडप । -महोत्सव-पु० यज्ञका विशाल समारोह ।। बहुत कम । -परो नास्ति-जिससे उत्तम नहीं है,
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