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मृडालिनी - स्त्री० [सं०] कमलका पौधा, कमलिनी; कमलसमूह; कमलों से भरा हुआ स्थान ।
मृडाली - स्त्री० [सं०] कमलनाल | मृणाल - पु० [सं०] कमलनाल, कमलकी जड़; खस । मृणालिनी - स्त्री० [सं०] कमलनी; कमलका समूह; कमल से युक्त सर ।
मृण्मय - वि० [सं०] मिट्टीका बना हुआ । मृत - वि० [सं०] मरा हुआ, मुर्दा; मृतवत्; मारा हुआ, कुश्ता (धातु) । - कल्प - वि० मृतप्राय, मरा हुआ-सा । -गृह- पु० कम । - वेल- पु० मुरदे के ऊपर डाला गया कपड़ा । - दार- वि०, पु० रँडुआ । निर्यातक-पु० मुर्दों को श्मशान पहुँचानेका पेशा करनेवाला । भर्तृका - स्त्री० वह स्त्री जिसका पति मर चुका हो, राँड । - लेखा - पु० ( डेड अकाउंट ) ( डाकघर के सेविंग्स बैंकका) वह लेखा जिसमें लंबे अरसे से कोई रकम जमा न की गयी हो अथवा न निकाली गयी हो, और इस कारण जो चालू न रह गया हो । - वत्सा - स्त्री० वह स्त्री जिसकी संतान जीवित न रहती हो । -संजीवनी - वि० स्त्री० मुर्देको जिलानेवाली ( औषधि ) । स्त्री० मुर्देको जिलानेकी विद्या, मंत्र । - स्नान- पु० किसी व्यक्तिके मरनेपर किया जानेवाला स्नान; मृतकका स्नान । मृतक - पु० [सं०] मुर्दा, शव; मरणाशौच । मृतकांतक - वि० [सं०] गीदड़, सियार । मृताशौच - पु० [सं०] मृत्युका सूतक । मृति - स्त्री० [सं०] मृत्यु, मौत । मृत् (द्) -स्त्री० [सं०] मिट्टी । - पात्र - (द्) भांड - पु० मिट्टीका बरतन । - पिंड - पु० मिट्टीका ढेला, लोंदा । मृत्तिका - स्त्री० [सं०] मिट्टी । - लवण - पु० लोना । मृत्युंजय - वि० [सं०] मौतको जीतनेवाला । पु० शिव; शिवका एक अकालमृत्युनिवारक मंत्र ।
मृत्यु - स्त्री० [सं०] प्राणवियोग, मरण, मौत । पु० यम; ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक । -कर- वि० मरणकारक । पु० किसीकी मृत्यु होनेपर उसकी संपत्तिके संबंध में लगनेवाला कर | - काल - पु० मौतकी घड़ी । दूत-पु० मौतकी खबर लानेवाला । - पत्र - पु० वसीयतनामा । -पाशपु० यमका फंदा । - योग- पु० ग्रह-नक्षत्रोंका मृत्युकारक योग । - लेख - पु० (टेस्टेमेंट) मृत्यु के समय या मृत्युके कुछ पहले संपत्ति के विभाजन, दान आदिके संबंध में अपनी इच्छा प्रकट करनेके लिए लिखा गया लेख या पत्र | - लोक-पु० यमलोक; मर्त्यलोक 1 - शय्या - स्त्री० वह शय्या जिसपर रोगी की मृत्यु हो, मरनसेज; ऐसे रोगी की शय्या जो दो-चार दिनका मेहमान हो या जिसकी मृत्यु निश्चित हो ।
मृत्सा, मृत्स्ना - स्त्री० [सं०] अच्छी, चिकनी मिट्टी; मिट्टी । मृथा * - अ० वृथा, व्यर्थ । वि० दे० 'मृषा' । मृदंग-पु० [सं०] ढोलकी तरहका एक बाजा, मुरज । मृदंगी (गिन् ) - पु० [सं०] मृदंग बजानेवाला । मृदा - स्त्री० [सं०] मिट्टी ।
मृति - वि० [सं०] कुचला, मसला, चूर किया हुआ । मृदु - वि० [सं०] कोमल, मुलायम; दयायुक्त, जो तीखा न
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मृडालिनी - मेघ
हो, मधुर (स्वर, वचन); मंद (गति) । -कोष्ठ - वि० नरम कोठेवाला, जिसे हलके विरेचनसे दस्त आ जाय । -भाषी( चिन् ) - वि० मधुरभाषी । - स्पर्श- वि० जो छूने में मुलायम हो । पु० कोमल स्पर्श, बहुत हलके हाथों से छूना । मृदुता - स्त्री० [सं०] नरमी, कोमलता; मंद- मधुर होना । मृदुल - वि० [सं०] कोमल, मृदु । मृदुलाई * - स्त्री० मृदुलता, नरमी ।
मृदूकरण- पु० (मिटिगेशन) नरम या हलका बना देना; तीक्ष्णता कम कर देना; शमन ।
मृनाल * - पु० दे० 'मृणाल' । मृषा - अ० [सं०] झूठमूठ, झूठे तौरपर; वृथा । वि० झूठ, मिथ्या । -ज्ञान- पु० अज्ञान । - भाषी ( षिन् ) - वि० झूट बोलनेवाला । -वाद-पु० झूठ; मिथ्या वाक्य; चापलूसी । - वादी ( दिन ) - वि० झूठा, मिथ्याभाषी । मृष्ट-वि० [सं०] शोधित, साफ किया हुआ; विचारित । मेँ - प्र० अधिकरण कारकको विभक्ति । स्रं ० बकरीकी बोली । - मे - स्त्री० बकरीकी बोली । मँगनी - स्त्री० ३० 'मेगनी' । मँड़-स्त्री० खेतको हदबंदी, सिंचाई आदिके लिए उसके इर्द-गिर्द बनाया हुआ मिट्टीका घेरा, डाँड़ा; प्रतिष्ठा । - बंदी - स्त्री० हदबंदी, मेंड़ बनाना ।
मँडरानrt - अ० क्रि० मँडराना, - 'राजपंखि तेहिपर मेंडराही' - प० ।
मेंढक - पु० दे० 'मेढक' ।
मेढकी - स्त्री० दे० 'मेढकी' ।
मेंबर - पु० [अ०] सदस्य, सभासद् ।
- पु० वर्षा, झड़ी ।
मेहदी - स्त्री० दे० 'मेहंदी' ।
मेकल - पु० [सं०] अमरकंटक पर्वत । - कन्या, -सुतास्त्री० नर्मदा नदी ।
मेन - स्त्री० [फा०] खूँटा; खूँटी; कील | मु० - ठोंकना - हाथ-पाँव में कीलें ठोंक देनेकी सजा देना; हराना, दबा लेना । - मारना - कील ठोंकना; बाधक होना । मेखड़ा - पु० झावेके मुँहपर बाँधनेका बाँसकी फट्टीका घेरा । मेखल - * स्त्री० दे० 'मेखला' | पु० [सं०] दे० 'मेकल' । मेखला - स्त्री० [सं०] करधनी, किंकिणी; धागे आदिकी करधनी, कटिसूत्र; तीन लड़वाली मुंज-मेखला जो उपनयनकाल में ब्रह्मचारीको धारण करनी पड़ती है; तलवार बाँधनेका कमरबंद; पहाड़को ढाल, शैल - नितंब । मेखली - स्त्री० रामलीला आदि में व्यवहृत एक पहनावा; * करधनी ।
मेगनी - स्त्री० भेड़-बकरी आदिकी लेंड़ी ।
मेघ - पु० [सं०] वादल; छः मुख्य रागोंमेंसे एक । -कालपु० वर्षाऋतु । -गर्जन- पु०, गर्जना - स्त्री० बादलोंका गरजना । -- जाल - पु० मेघसमूह, घनघटा । - जीवन - पु० चातक । - ज्योति ( स ) - स्त्री० बिजली । - डंबरपु० बादलों का गरजना । - दीप-पु० बिजली । - दूतपु० महाकवि कालिदासका एक खंडकाव्य जिसमें एक विरही पक्षने अपनी प्रेयसीके पास अपना सँदेसा भेजने के लिए मेघको दूत बनाया है । - नाद - पु० मेघका गर्जन;
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