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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलिका-मृडा मूलिका-स्त्री० [सं०] जड़; जड़ोंका ढेर जड़ी। सींग, अनहोनी बात। मली-स्त्री० एक पौधा जिसकी जड़ और पत्ते शाककी तरह मषिका-स्त्री० [सं०] चहिया; कुल्हिया।। खाये जाते हैं । मु०-गाजर समझना-तुच्छ समझना। | मूस-पु० चूहा। -दानी-स्त्री० चूहा फंसानेका संदूक मूल्य-पु०[सं०] वस्तुके बदले में दिया जानेवाला धन, कीमत, या पिंजड़ा। दाम वेतन, पारिश्रमिक; उपयोगिता ।-तल,-स्तर-पु० मूसना-स० क्रि० चुराना चुराकर ले जाना। (लेवल ऑफ प्राइसेज़) मूल्योंकी ऊपरी रेखा या सतह । मूसर*-पु० दे० 'मूसल'। -नियंत्रण-पु० (प्राइस कंट्रोल) वस्तुओंके मूल्य में अनु- मूसल-पु० लकड़ीका मोटा डंडा जिससे धान कूटते हैं, चित वृद्धि न होने देनेकी दृष्टिसे किया जानेवाला नियंत्रण मुघल । -चंद-पु० मुस्तंडा; धींगड़ा । -धार-अ० दे० या प्रतिबंधन । -निरूपण-पु० (वैलुएशन) किसी वस्तु, 'मुसलाधार'। मु०-(लौं) ढोल बजाना-बहुत खुशी संपत्ति या किसीकी योग्यता आदिका मूल्य निश्चित मनाना, अत्यंत प्रसन्नता प्रकट करना। करना, किसी जानकार द्वारा किसी वस्तु आदिके मूल्यका मसली-स्त्री० एक पौधा जिसकी जड़ दवाके काम आती है। अनुमान लगाया जाना । -रहिता-हीन-वि० जिसका मूसा-पु० चहा; यहूदी धर्मके प्रवर्तक जो पैगंबर या कुछ मूल्य न हो, निकम्मा । -वृद्धि-स्त्री० दाम बढ़ना। । ईश्वरके संदेशवाहक माने जाते हैं। -सूचनांक-पु० ( इंडेक्स नंबर) खाद्यान्न, वस्त्र तथा | मृग-पु० [सं०] पशु, जंगली जानवर; हिरन; कपोत; अन्य वस्तुओंका विभिन्न समयोंका मूल्य बतलानेवाला मृगशिरा नक्षत्र, मार्गशीर्ष मास; चंद्रमाका लांछन कामअंक । (सामान्य स्थितिके समयका मूल्य प्रायः१०० मान शास्त्रमें माने हुए पुरुषके चार भेदोंमेंसे एक । -काननलिया जाता है । इससे बढ़ते या घटते हुए अंक आपेक्षिक पु० उद्यान; शिकारके जानवरोंसे भरा हुआ वन । महँगी या सस्तोके परिदर्शक होते हैं ।)-हास कोष-पु० -चर्म (न)-पु० हिरनकी खाल जो पवित्र मानी जाती (डेप्रीशियेशन फंड) यंत्र, सामान, उपकरणों आदिके घिस है। -छाला-पु० [हिं०] दे० 'मृगचर्म' । -छौना-पु० जाने, पुराने तथा बेकाम हो जाने के कारण उनके मूल्य में । [हिं०] मृगशावक, हिरनका बच्चा।-जल-पु० मृगतृष्णा । क्रमशः होनेवाली घटी पूरी करनेके उद्देश्यसे स्थापित -जल-स्नान-पु० मृगजल में स्नान, अनहोनी बात । कोष या निधि । -तृषा,-तृष्णा,-तृष्णिका-स्त्री० कड़ी धूप में रेतीले मूल्यन-पु० [सं०] (वैलुएशन) दे० 'मूल्य-निरूपण'। मैदानों में होनेवाली जलधाराकी मिथ्या प्रतीति । -दावमूल्यवान् (वत्)-वि० [सं०] मूल्यवाला, दामी, कीमती। पु० शिकारके जानवरोंसे भरा हुआ बन; सारनाथ । मूल्यांकन-पु० [सं०] मूल्य निर्धारित या निश्चित करनेकी -धर-पु० चंद्रमा ।-नयना,-नयनी-वि०स्त्री० हिरन क्रिया (वैलुएशन) मूल्य-निरूपण। या मृगशावककीसी आँखोंवाली (स्त्री)।-नाभि-पु० कस्तूरी; मूल्यादेय वस्तुएँ-स्त्री० (वैल्युपेयेबिल आर्टिकिल्स) डाक- कस्तूरीमृग । -पति-पु० सिंह । -मद-पु० कस्तूरी । खाने द्वारा भेजी गयी वे वस्तुएँ, (या रेल द्वारा भेजे गये -मास-पु० मार्गशीर्ष मास । -मेद* --पु० मृगमद, मालकी बे) रसीदें, बिल्टियाँ आदि जो पानेवालेके हाथ कस्तूरी । -राज-पु० सिंह; व्याघ्र ।-राट (ज)-पु० उनपर अंकित मूल्य लेकर ही अर्पित की जा सकती है। सिंह । -रोचना-स्त्री० पीला अंगराग। -लांछन-पु० मूल्याधिरोह-पु० [सं०] (एप्रीशियेसन) दे० 'मूल्योत्कर्ष' । चंद्रमा । -लेखा-स्त्री० चंद्रमाका धब्बा, मृगांक । मूल्यानुपाती कर (शुल्क)-पु० [सं०] (ऐड वैलोरिम | -लोचना,-लोचनी-वि० स्त्री० मृगनयनी । -वारिड्यूटी) किसी वस्तुपर उसके मूल्यके अनुसार लगनेवाला पु० मृगजल |-शाव,-शावक-पु० मृगछौना, हिरनका कर या शुल्क । सुकुमार बच्चा । -शिर (स)-पु०,-शिरा-स्त्री० २७ मूल्यापकर्ष-पु० [सं०] (टेप्रोशियेशन) मुद्रा, सरकारी नक्षत्रोंमेंसे पाँचवाँ । -शीर्ष-पु० मृगशिरा नक्षत्र मार्गऋणपत्रों, कारखानों में प्रयुक्त यंत्रादिके मूल्यमें कमी हो शीर्ष मास । -श्रेष्ठ-पु० व्याघ्र । जाना, उतार आ जाना, मूल्यहास, मूल्यावरोहण । मृगया-स्त्री० [सं०] शिकार; आखेट ।-वन-पु० शिकारमूल्यावपात-पु० [सं०] (स्लंप) वस्तुओंके मूल्यमें एकाएक तथा तेजीसे होनेवाली कमी, अर्घपतन, सस्ती।। | मृगांक-पु० [सं०] चंद्रमा, चंद्रमाका धन्या; कपूर; वायु मूल्यावरोहण-पु० [सं०] (डेप्रीशियेशन) दे० 'मूल्यापकर्ष'। एक प्रसिद्ध रसौषध । मूल्योत्कर्ष-पु० [सं०] (एप्रीशियेशन) मुद्रा, सरकारी ऋण- मृगांतक-पु० [सं०] चीता। पत्रों आदिके सापेक्ष मूल्यमें वृद्धि होना, मूल्याधिरोह। मृगाक्षी-वि० स्त्री० [सं०] मृगनयनी। मूश-पु० [फा०] चूहा। -दान-पु. चूहा फँसानेका मृगाजिन-पु० [सं०] मृगचर्म । संदूक या पिंजड़ा। मृगादन-पु० [सं०] शेर, चीता। मप-पु० [सं०] चूहा, मूसनेवाला; गवाक्ष, मोखा; सोना- मृगाश, मृगाशन-पु० [सं०] सिंह । चाँदी गलानेकी कुल्हिया। मृगी-स्त्री० [सं०] हिरनी स्त्रियोंका एक भेद । मूषक-पु० [सं०] चूहा; चोर । -वाहन-पु० गणेश। मृगेंद्र-पु० [सं०] सिंह; व्याघ्र । मूषण-पु० [सं०] मूसना, चुराना । मृग्य-वि० [सं०] जिसका पीछा या अन्वेषण किया जाय । मूषिक-पु० [सं०] चूहा; चोर, सिरसका पेड़, एक प्राचीन मृड-पु० [सं०] शिव । जनपद । -रथ-पु० गणेश। -विषाण-पु० चूहेका मृडा, मृडानी-स्त्री० [सं०] पार्वती, दुर्गा । | गाह। For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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